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सुबह तो रोज एक जैसी होती है लेकिन जिस दिन हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति का उद्देश्य लेकर उठते हैं। उस दिन की सुबह कुछ खास ही होती है। इस अनुभूति को वही लोग समझ सकते हैं जो पहले दिन किसी काम की शुरुआत करते हैं। वैसे तो एक नयी शुरुआत करने के लिए किसी सुबह का इंतजार नहीं करना चाहिए। जिस दिन भी आपके मन में कुछ करने की ठन जाए वही सुबह ख़ास होती है। ऐसी ही एक सुबह का जीकर हमने इस कविता में करने का प्रयास किया है। तो आइये पढ़ते हैं सुबह के सूरज पर कविता “सुख का सूरज है निकल रहा” :-
सुबह के सूरज पर कविता
ये जो रात अँधेरी काली है
बस पल भर में ढलने वाली है
सुख का सूरज है निकल रहा
नयी सुबह होने वाली है।
न सोने का ये अवसर है
उठ कर अब आगे बढ़ना है
सूरज की तरह हमको भी बस
उस आसमान पर चढ़ना है,
चहक रहे पंछी सारे
कूके कोयल काली है
सुख का सूरज है निकल रहा
नयी सुबह होने वाली है।
नींद है टूटी सपनों भरी
ख्वाबों को पूरा करने को
है आसमान भी साफ़ हुआ
ऊँची उड़ाने भरने को,
भरी हुयी बह रही जोश में
पवन भी अब मतवाली है
सुख का सूरज है निकल रहा
नयी सुबह होने वाली है।
स्वयं में भर कर साहस
आलस्य को तुम मात दो
बुरा वक़्त न फिर आये
उसे ऐसा तुम अघात दो,
अपनी किस्मत खुद ही लिखना
आगे बढ़ते कहाँ सवाली हैं
सुख का सूरज है निकल रहा
नयी सुबह होने वाली है।
एक बार जो चला गया
ये मौका फिर न आएगा
जिन्दगी की राहों में
इक दिन फिर ठोकर खायेगा,
तू माने या न माने
ये घड़ी बहुत ही निराली है
सुख का सूरज है निकल रहा
नयी सुबह होने वाली है।
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