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ऋतु रानी वसंत, सबका मनपसंद मौसम। वो मौसम जब चारों ओर हरियाली रहती है और रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। बसंत के मौसम की हर सुबह देखने लायक होती है। और अगर बात वसंत की पहली सुबह की हो तो बात ही क्या। आइये ऐसी ही वसंत की सुबह का मधुरमय वर्णन पढ़ते हैं वसंत ऋतु की सुबह पर कविता में :-
वसंत ऋतु की सुबह पर कविता
सूरज की पहली किरण देखो धरती पे आई,
उठो चलो अंगड़ाई लो सुबह हो गयी भाई,
देखो देखो बगिया में कलि खिलने को आई.
चारों तरफ सुन्दरता की लाली सी छाई,
बागों में है फूल खिले, पेड़ो पर हरियाली छाई,
कितना सुन्दर मौसम है, लो फिर से है वसंत आई,
ठंडी-ठंडी हवा चल रही, कोमलता सी लायी,
गलियों में चौराहों में, फूलों की खुशबू छाई,
हम भी मिल कर जरा, वसंत का गीत गायें
आओ इन बहारों संग घुल-मिल सा जाएँ,
इस मौसम में आकर देखो सब दूरी है मिटाई
झूमो नाचो और गाओ, खाओ खिलाओ जरा मिठाई,
चहकते हुए पक्षियों ने स्वागत में तान लगायी,
वाह! क्या नजारा है, दिल में ख़ुशी सी छाई,
वसंत के प्यारे इस दिन में जीवन में खुशिया आयीं
हर गम दुःख भुलाकर हंस लो थोड़ा भाई,
हर तरफ खुशनुमा आनंद सा छाया है,
रातों की काली स्याही ये सूरज छांट आया है,
सूरज के आ जाने से, उम्मदी की किरण है पायी.
उठो चलो अंगड़ाई लो, सुबह हो गयी भाई,
कुदरत का ये खेल भी ना जाने क्या कह जाता है
हर पल हर समय, अहसास नया सा दे जाता है,
आसमा की झोली से, अरमान नया सा लाया है
आज ही हमें पता चला, जिंदगी ने खुलकर गाया है,
बहारों की इस उमंग से, सब में मस्ती सी आई,
उठो चलो अंगड़ाई लो सुबह हो गयी भाई।
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वसंत ऋतु की सुबह पर कविता को हमें भेजा है अंगेश्वर बैस जी ने जो छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में रहते है। अंगेश्वर बैस जी कविता और गीत लिखने के शौक़ीन है। हमारे ब्लॉग में ये उनकी तीसरी कविता है और आगे भी हमारे पाठकों को उनकी कुछ बेहतरीन कविताएँ इस ब्लॉग में पढने को मिल सकती है।
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धन्यवाद।