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कविता मनभावन बसन्त – हँसता है धरती का कण-कण

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कविता मनभावन बसन्त

कविता मनभावन बसन्त

हँसता है धरती का कण-कण
दिशा – दिशा मुस्काई,
फूल खिलाती वन-उपवन में
ऋतु बसन्त की आई।

नए – नए पत्तों से सजकर
पेड़ सभी हैं झूमे,
गुन – गुन करते भँवरों के दल
कली – कली पर घूमे।

इठलाती उड़ती है तितली
अपने पंख पसारे,
पंचम सुर में गीत गा रही
कोयल प्यारे – प्यारे।

मादक गंध लुटाते भीनी
आम बहुत बौराए,
लहलह करती सरसों पर हैं
पीले फूल सुहाए।

फूट रही है पूर्व दिशा से
नई सुबह की लाली,
धूप सुनहरी नीला नभ है
सभी ओर हरियाली।

डाल – डाल पर फुदक-फुदककर
खुश हो चिड़िया चहकी,
वासन्ती जब चली हवा तो
चाल सभी की बहकी।

ऋतु बसन्त की यह मनभावन
जब – जब भी है आती,
तब – तब जीवन में खुशियों के
रंग कई भर जाती।

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धन्यवाद

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