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दीपों के उत्सव को शब्दों में प्रस्तुत करती दीपावली त्यौहार पर कविता। दिवाली पर छोटी कविता :-
दिवाली पर छोटी कविता
आज अन्धकार भी लगता प्यारा
दीपों के समूह से लगता बेचारा,
नन्हें दीपों से ये आज है हारा
दीपों से हारी वमिनी काली,
देखो सखा आई दिवाली।
जो सब जन के मन को भायी
सोंधी सी महक आँगन में लायी,
संस्कृति, परंपरा पुनः दोहराकर
अपनी मर्यादा बहनों ने संभाली,
देखो सखा आई दिवाली।
मित्रों ने द्वार पर दीप रखा
सहसा दौड़ा आया एक सखा,
लिए पटाखे, चकरी था दृश्य अनोखा
चकरी की रौशनी मानो भानू लाली,
देखो सखा आई दिवाली।
प्रफुल्ल हुए दृश्य देख मेरे नैना
अगाध स्मृति क्षण लायी थी रैना,
मनमोहक से थी दीपों की सेना
दीपों की थाली हुयी न खाली,
देखो सखा आई दिवाली।
पटाखे, चकरी दिए मुझे मेरे तात
चकरी चलायी रोशन हुयी रात,
मन ही मन सोचू न हो प्रभात
दिवाली सच में मन मोहने वाली,
देखो सखा आई दिवाली।
गूँज रहे हैं चारों दिशाओं में गीत
मानो असत्य पर हुयी सत्य की जीत,
आज बने अपने दुशमन भी मीत
सुविचारों का वरदान प्रकृति दे डाली,
देखो सखा आई दिवाली।
लुप्त हुए अम्बर से तारे
दीप बन गए वसुधा पर सारे,
निशा के समस्त सहचर हैं हारे
रात हुयी है मतवाली,
देखो सखा आई दिवाली।
थम सा जाये क्षण, थी अभिलाषा
जन-जन की मधुर प्रेम की भाषा,
छंट गयी थी सबकी निराशा
चारों ओर फैली खुशहाली,
देखो सखा आई दिवाली।
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नमस्कार प्रिय मित्रों.
मेरा नाम सूरज कुमार है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए। क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।
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