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कविता नव वर्ष पर – नए वर्ष का अभिनन्दन | Kavita Nav Varsh Par

by Sandeep Kumar Singh
1 minutes read

कविता नव वर्ष पर

कविता नव वर्ष पर

कल को जो प्रारम्भ हुआ था
आज वर्ष वह भी बीता,
साथ इसी के हुआ उम्र का
भरा हुआ घट कुछ रीता।

कोई हारा जीवन का रण
जीत गया कोई बाजी,
रूठ समय यह गया किसी से
हुआ किसी से है राजी।

नश्वरता खेला करती है
हर पल ही खेल निराले,
फिर भी मानव बढ़ता आगे
आँखों में सपने पाले।

डाली पर जो फूल खिला है
निश्चित उसका मुरझाना,
ऐसे ही चलता है जग में
लोगों का आना – जाना।

जीवन के इन बदलावों को
हँस – हँसकर हमको सहना,
आते – जाते इन सालों के
साथ हमें भी है चलना।

करें विदाई हम जाते की
आने वाले का स्वागत,
बीते कल से लेकर अनुभव
नवाचार की हो चाहत।

पतझर का हम दर्द भूलकर
नई बहारों में झूमें,
गले लगाएँ हर पड़ाव को
पथ के कंकर को चूमें।

नए साल का सूर्योदय यह
किरण खुशी की बिखराए,
नया उजाला हो सबके मन
कण – कण ज्योतित हो जाए।

महक उठे फिर अपनेपन से
अखिल विश्व का जन – जीवन,
आओ ! आज करें हम सब मिल
नए वर्ष का अभिनन्दन।

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कविता नव वर्ष पर आपको कैसी लगी ? अपने विचार कमेन्ट बॉक्स में जरूर लिखें।

धन्यवाद।

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