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एडिडास कंपनी की कहानी – बंद पड़ी लांड्री से इंटरनेशनल ब्रांड तक का सफर

by Sandeep Kumar Singh
6 minutes read

एडिडास कंपनी की कहानी – एडिडास के बारे में आज कौन नहीं जानता। स्पोर्ट्सवियर बनाने के मामले में एडिडास विश्व में दूसरे स्थान पर है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस कंपनि को बनाने वाले अडोल्फ़ ने बेकरी ( Bakery )  का काम सीखा था। उसके बाद बंद पड़ी लांड्री से इतना बड़ा साम्राज्य स्थापित  किया। आइये जानते हैं उनके एडिडास कंपनी की कहानी :-

एडिडास कंपनी की कहानी

एडिडास कंपनी की कहानी

अडोल्फ़ डेजलर का बचपन

अडोल्फ़ डेजलर एडिडास कंपनी के संस्थापक थे। एडोल्फ डैजलर का जन्म न्यूरमबर्ग के बाहर लगभग 20 किमी दूर एक छोटे से शहर, हर्ज़ोगनौराच के फ्रेंकोनियन शहर, जर्मनी में 3 नवंबर 1900 को हुआ था। दो भाई और एक बहन के बाद ये सबसे छोटे चौथा भाई थे।

अडोल्फ़ के बचपन में ही औद्योगिक उत्पादकों से प्रतिस्पर्धा के कारण स्थानीय कपड़ा उद्योग का पतन हो गया जिसके कारण अडोल्फ़ के पिता क्रिस्टोफ ने अपने पूर्वजों के व्यापार को छोड़ दिया, एक मोची बनने के लिए आवश्यक जटिल सिलाई कौशल सीखना शुरू किया और एक स्थानीय कारखाने में रोजगार प्राप्त किया,  अंत में उन्होंने चप्पल बनाने में महारत हासिल कर ली।

 एडोल्फ डैजलर की माँ पॉलिन डैजलर ने अपना लांड्री का काम शुरू किया। उस समय तीनों भाई धुले हुए कपड़े लोगों तक पहुँचाया करते थे। जिस वजह से उन्हें लांड्री बॉयज भी कहा जाता था।

पढ़ाई पूरी करने के बाद अडोल्फ़ को बेकर ( Baker ) के पास भेजा गया लेकिन उसका मन बेकरी के काम में नहीं बल्कि खेल कूद में लगता था। इसलिए वह अपना खाली समय खेलने में ही बिताता था। वो अपने खेलने की चीजें भी ज्यादातर खुद ही बनाना पसंद करता था। जैसे डंडे से जेवलिन बनाना और पत्थर से डिस्कस।

बेकरी का काम सीख लेने के बाद अडोल्फ़ ने वो काम शुरू करने के बजाय अपने पिता से सिलाई सीखी और जूते सिलने लगा। वह हमेशा यही कोशिश करता कि किस तरह जूते का डिजाईन बदले जिस से खिलाड़ी के खेल में सुधार हो सके।

बंद पड़ी लांड्री से एडिडास तक का सफर

एडी ( अडोल्फ़ का छोटा नाम ) 18 साल का होने ही वाला था कि उसे जून सन 1918 में आर्मी में भरती कर दिया गया। अक्टूबर 1919 में जब रुडोल्फ वापस घर आया तो उसने पाया कि प्रथम विश्व युद्ध के कारण उसकी माँ का लांड्री का काम बंद हो चुका था। ऐसे में एडी ने जूते बनाने का काम शुरू किया।

युद्ध में सब कुछ तबाह हो चुका था। एडी काम तो करना चाहता था लेकिन उसके पास काम करने के लिए ना महंगी मशीन थी और ना ही जरूरत का सामान। घर का खर्च भी चलाना था। ऐसे में एडी का सामने एक बड़ी चुनौती थी लेकिन एडी ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने युद्धग्रस्त देश में सेना के मलबे को खंगालना शुरू किया। जिसमें उन्होंने सैनिकों के हेलमेट, ब्रेड के पाउच और पैराशूट के कपड़े मिले और उन्होंने उनका प्रयोग टूटे हुए जूते-चप्पलों की मरम्मत में किया। जिस से उनके घर का खर्च निकल सके।

इसके साथ ही उन्होंने मशीन का भी जुगाड़ किया और अपना काम बढ़ाना शुरू किया। यह काम करने के पीछे उनका मकसद पैसा कमाना नहीं था। यह काम करना उनका शौक था। वो ऐसे जूते बनाने की कोशिश करते जो हलके हों और मजबूत हों। जिस से पहनने वाले खिलाड़ी का प्रदर्शन अच्छा हो सके। सन 1923 में एडी के भाई रुडोल्फ भी अपने भाई के साथ लाम करने लगे। सन 1924 में एडोल्फ ने डेजलर ब्रदर्स स्पोर्ट्स शू फैक्ट्री. हर्ज़ोगनौराच ( Dassler Brothers Sports Shoe Factory, Herzogenaurach ) के नाम से रजिस्टर करवा ली।

सन 1925 तक उन्होंने फुटबाल खेलने और दौड़ प्रतियोगिता में पहनने वाले जूते बनाना शुरू  कर दिया था।

कैसे एक लोकल कंपनी की बनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान

एडी की कंपनी के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर होने के दो कारण थे। पहला कारण थे जर्मन ओलंपिक ट्रैक-एंड-फील्ड टीम के कोच, जोसेफ वेइटर। जिन्होंने जब उनके जूतों के बारे में सुना तो उनसे मिलने खुद गए। वे उनके जूतों का डिजाईन देख कर इतने खुश हुए कि उन्होंने सन 1936 में होने वाले बर्लिन ओलंपिक्स में उन्होंने ये अडोल्फ़ के हाथ के बने हुए जूते जेस्सी ओवेंस को पहनाये। जेस्सी ओवेंस ने ये जूते पहन कर दौड़ प्रतियोगिता और लंबी कूद में कुल मिलाकर 4 गोल्ड मैडल जीते। इस तरह एडी के जूते को एक नयी पहचान मिली।ऐसा नहीं था कि पहली बार उनके जूते किसी बड़ी प्रतिस्पर्धा में पहने गए थे।

इस से पहले भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सन 1928 में एमस्टर्डम ओलिम्पिक  में खिलाड़ियों ने  अडोल्फ़ डैजलर द्वारा बनाये गए जूते पहने थे। इंटरनेशनल ब्रांड बनने का एक और बड़ा कारण था दोनों भाई का अडोल्फ़ हिटलर की नाजी पार्टी में शामिल होना। नाजी पार्टी में तीनों भाई शामिल हो गए। उनमें से रुडोल्फ ही था जो पूरी निष्ठा के साथ हिटलर के साथ था। वहीं एडी का ध्यान अभी भी अपनी कंपनी को आगे लेकर जाने पर था। एडी ने हिटलर द्वारा चलाये गए यूथ मूवमेंट का फायदा उठाया और इस मूवमेंट में भाग लेने वाले खिलाड़ियों को जूते दिलवा कर अपना ब्रांड बड़ा किया। यही वो समय था जब दोनों भाइयों के बीच दूरियां बढ़नी शुरू हुयीं। भाइयों के बीच पड़ी दरार

सन 1943 में दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने के साथ ही दोनों भाइयों में गलतफहमियों की दीवार खड़ी हो गयी। जिसने दोनों को लग कर दिया। दूसरे विश्व युद्ध  में अमेरिकी फौजों से हारने के बाद हिटलर ने आत्महत्या कर ली। तभी 25 जुलाई सन 1945 में अमेरिकी सेना ने उन लोगों को तलब किया, जिन पर हिटलर को सहयोग देने का शक था। रुडोल्फ को अमेरिकी सैनिकों ने पकड़ लिया। एक साल बाद 31 जुलाई सन 1946 में रुडोल्फ को रिहा कर दिया गया। उस समय एडी पर हिटलर के सहयोगी होने के आरोप लगे हुए थे। रुडोल्फ को लगता था कि उसके पकड़े जाने के पीछे एडी का हाथ था। इसलिए उस समय रुडोल्फ ने एडी को फंसाने की कोशिश की जिस से वह कंपनी का अकेला मालिक बन जाए। एडी राजनीति से दूर था इसलिए वो बच गया लेकिन दोनों भाइयों के बीच अब बहुत दूरियां हो गयी थीं।

इन सब के चलते एडी ने कभी भी अपना काम नहीं रुकने दिया। दूसरे विश्व युद्ध से पहले जहाँ एडी प्रति वर्ष 200,000 जोड़ी जूते बेच रहे थे। वहीं 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद उनकी कंपनी की हालत फिर शुरूआती दिनों जैसी हो गयी थी। कच्चे माल ( Raw Material ) की कमी के चलते एडी  ने टैंक में लगी रबर और टेंट में लगे कपड़े को अपना हथियार बनाया और उस से ही जूतों का उत्पादन जारी रखा।

डेजलर ब्रदर्स स्पोर्ट्स शू फैक्ट्री का एडिडास और प्यूमा बनना

सन 1948, जर्मनी में दोनों भाई अलग हो गए। इसके बाद एडी यानि की अडोल्फ़ डेजलर ने 18 अगस्त 1949 में डेजलर ब्रदर्स स्पोर्ट्स शू फैक्ट्री. हर्ज़ोगनौराच (Dassler Brothers Sports Shoe Factory, Herzogenaurach) को बदलकर एडिडास ( Adidas ) नाम से रजिस्टर करवाया। वहीं उनके भाई रुडोल्फ ने एक अलग कंपनी बनायी जिसका नाम उन्होंने रुडा ( Ruda ) रखा। जो बाद में बदलकर प्यूमा ( Puma ) हो गयी।

मजे की बात

ये बंटवारा बस दो भाइयों के बीच ही नहीं बल्कि पूरे शहर के बीच था। दोनों भाइयों के अलग होने के बाद शहर के आधे लोग एडी के साथ थे और आधे लोग रुडोल्फ के साथ। लोग किसी भी  अजनबी की शकल देखने से पहले उसके जूते देखते थे।

इसीलिए उस शहर का एक छोटा नाम “ झुकी हुयी गर्दनों का शहर ” पड़ गया था। इतना ही नहीं जब दोनों भाइयों की मौत हुयी तो उन्हें एक ही शमशान घाट के दो किनारों पर दफनाया गया ताकि उनके बीच दूरी बनी रहे।

आपको एडिडास कंपनी की कहानी कैसी लगी? अपने विचार कमेंट बॉक्स में लिखना न भूलें।


पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग पर इन कंपनी के शुरू होने की कहानी :-

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

4 comments

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ali bahadur अप्रैल 12, 2020 - 9:54 पूर्वाह्न

बेह्त्रीन कहानी कुछ इस्लामिक कहनियाँ भी एड कीजिये जेसे हजरत मूसा की कहानिया बहुत ही रोचक और नई होंगी आपके दर्शको के लिए

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अप्रैल 13, 2020 - 3:35 अपराह्न

जी बिलकुल अली बहादुर जी आपकी इस सलाह पर हम काम जरूर करेंगे।

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Rishav Kumar अप्रैल 2, 2020 - 9:08 पूर्वाह्न

आपने बहुत अच्छी और रोचक जानकारी शेयर किया इसके लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अप्रैल 7, 2020 - 6:22 अपराह्न

पढ़ने के लिए आपका भी बहुत धन्यवाद। ऐसी ही रोचक जानकारियां पाने के लिए बनें रहें हमारे साथ।

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