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अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस जो कि 1 मई को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1 मई 1886 को पहली बार मनाया गया था। उसके बाद आज यह दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में एक साथ 1 मई को मनाया जाता है। भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1923 से हुयी थी। मजदूर जो अपनी जिंदगी दूसरों के ख्वाब पूरा करने में लगा देते हैं और खुद एक गुमनाम मौत ही मर जाते हैं। उन्हीं मजदूरों और उनके जीवन को समर्पित मजदूर दिवस पर शायरी संग्रह :-
मजदूर दिवस पर शायरी
1.
जिस रास्ते पर राही बेझिझक चलता जाता है
उसे बनाने के लिए मजदूर ही पसीना बहाता है,
उसे तो नसीब तक नहीं होता फुटपाथ पर सोना भी
गर हो जाए ये खता तो किसी गाड़ी से कुचला जाता है।
2.
जिनकी वजह से रहते हैं ऐश-ओ-आराम से पैसे वाले
नियत सच्ची होती है उनकी और हाथों में होते हैं छाले।
3.
पड़ोस के भूखे को भी अपने हिस्से की रोटी खिला देता है,
वो मजदूर ही होता है जो नेकी कर भुला देता है।
4.
महलों में रहने वालों को नींद तक नहीं आती
थका हारा मजदूर चैन से फुटपाथ पर सो जाता है।
5.
जिसका हर लम्हा किसी जंग से आसान नहीं होता,
वो मजदूर ही होता है जो कभी बेईमान नहीं होता।
6.
अगर इस जहाँ में मजदूर का न नामों निशाँ होता,
फिर न होता ताजमहल और न ही शाहजहाँ होता।
7.
किसी का मसीहा और किसी की जान होता है,
मजदूर मजदूर होने से पहले एक इन्सान होता है।
8.
जिसके होने से कई लोगों का सपना साकार होता है,
वो मजदूर ही इस दुनिया का रचनाकार होता है।
9.
वो प्यार, मोहब्बत और अपनापन
मिलता न किसी भी हस्ती से,
दुनिया से चाहे कुछ न मिलता
मिलता सब कुछ मजदूर की बस्ती में।
10.
कितना मजबूर वो हो जाए पर हाथ न कभी फैलता है,
मजदूर जो होता है वो बस अपने हक़ की रोटी खाता है।
11.
पास भी है वो दूर भी है हर शय में उसका नूर भी है,
दुनिया का रचनाकार है जो वो मालिक और मजदूर भी है।
12.
हर शख्स यहाँ मजबूर सा है,
खुद के ही वजूद से दूर सा है,
खुशियों की तलाश में भटक रहा
अब लगता एक मजदूर सा है।
13.
कोई खेत में है कोई दफ्तर में,
कोई नौकर में कोई अफसर में
मजदूर हैं सब मजदूर यहाँ,
कोई हर दिन है कोई अवसर में।
14.
उनके कर्ज को कोई उतार सके
इतनी किसी की औकात नहीं होती,
मजदूर मजदूर होते हैं, इन्सान होते हैं
उनकी कोई जात नहीं होती।
15.
मजदूरों को हो डर कैसा
वो तो अपने हक की खाते हैं,
जिनके पास हो पाप का पैसा
वो चैन से कहाँ सो पाते हैं।
16.
हालातों से मजबूर हैं सब
इस जिंदगी के मजदूर हैं सब,
पास यहाँ सब जिस्मों से
जज्बातों से अब दूर हैं सब।
पढ़िए :- एक गरीब मजदूर की कहानी ‘बदला’
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