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‘ श्रम पर कविता ‘ में श्रमिकों के योगदान को दर्शाते हुए उनकी वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। श्रमिकों के योगदान को सम्मानित करने के लिए प्रति वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय श्रम दिवस मनाया जाता है, लेकिन श्रमिकों की स्थिति में अभी भी अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। उनके श्रम का शोषण निरन्तर जारी है। जहाँ श्रमिक महिलाओं के श्रम का हम अभी तक मूल्य नहीं समझ पाए हैं, वहीं बाल-मजदूरी हमारे लिए लज्जा की बात है। श्रमिकों पर ही हमारे समाज की आर्थिक उन्नति निर्भर है, अतः श्रमिकों की दशा सुधारने के लिए श्रम संगठनों, राजनीतिक दलों और सरकारों को गम्भीरता से प्रयास करना चाहिए।
श्रम पर कविता
आशाएँ बोता रहा, ढो चिंता का भार।
सही श्रमिक ने उम्र भर, कठिन समय की मार।।
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श्रम करने को बाध्य जब, कोमल कच्चे हाथ।
कैसे ऊँचा गर्व से , उठे देश का माथ।।
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रात – दिवस ही कर रही, नारी श्रम के काम।
पर भौतिक उत्थान में, कहीं न उसका नाम।।
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तपे भूमि अम्बर जले, नहीं दूर तक छाँव।
श्रमिक ढो रहा बोझ को, फिर भी नंगे पाँव।।
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कब कहता मजदूर है, रोकर अपनी पीर।
खुश रहता हर हाल में, समझ इसे तकदीर।।
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नहीं हथौड़े दीखते , हुई दराँती दूर।
घुट – घुटकर अब मर रहे, कृषक और मजदूर।।
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श्रम से दूर दरिद्रता, पुण्य कर्म से पाप।
इच्छाओं के दमन से, दूर सभी संताप।।
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धन्यवाद।