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बेरोजगारी पर कविता | Berojgari Ki Samasya Par Hindi Poem

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बेरोजगारी पर कविता

बेरोजगारी पर कविता में देश में कम हो रहे रोजगार के अवसरों पर चिन्ता व्यक्त की गई है। रोजगार के अभाव में देश के युवा गहन निराशा की स्थिति में हैं। शहर हो या गाँव, सभी जगह मन्दी फैली हुई है जिसके कारण कमाने और खाने के भी लाले पड़े हुए हैं। बेरोजगारी के कारण समाज में अपराध बढ़ रहे हैं। सरकार को ठोस कार्ययोजना बनाकर बेरोजगारी की समस्या का स्थायी समाधान निकालना चाहिए।

बेरोजगारी पर कविता | Berojgari Ki Samasya Par Hindi Poem

आज देश में रोज घट रहे
रोजगार के अवसर,
काट रहे हैं युवक थके – से
हर दफ्तर के चक्कर।
कोरोना ने आकर कर दी
हालत सबकी खस्ता,
चीज हुई हर जाती मँहगी
जीवन लगता सस्ता ।

जिन गाँवों को बरसों पहले
मजदूरों ने छोड़ा,
पुनः गाँव की ओर उन्होंने
अपने मुँह को मोड़ा ।
गाँवों में तो पहले से ही
फैली है कंगाली,
ठीक नहीं है वहाँ कृषक की
हालत भी अब माली।
शहरों में भी उद्योगों पर
लटक रहे हैं ताले,
हुआ मशीनीकरण पड़े हैं
मजदूरी के लाले।

गाँवों से लेकर शहरों तक
रोजगार का संकट,
इसके कारण तरह-तरह के
होते झगड़े- झंझट।
युवक – युवतियाँ पढ़-लिखकर भी
नहीं नौकरी पाते,
गहन निराशा में बेचारे
पल- पल डूबे जाते।
सारे धन्धे ही चौपट हैं
अब मन्दी के मारे,
बड़े कारखानों ने छीने
लघु उद्योग हमारे।

किसी तरह की भी भर्ती का
आता नहीं बुलावा,
नौकरियाँ देने के वादे
निकले मात्र छलावा।
निजी क्षेत्र में रोज रोज ही
छँटनी होती रहती
और जिन्दगी छँटे श्रमिक की
आँसू में ही बहती।
नौकरियाँ तो ऊँटों के मुँह
बनी हुई हैं जीरा,
युवाशक्ति की देख दुर्दशा
लगता दिल पर चीरा।

हो उपयोग उचित अब श्रम का
अवसर का हो सर्जन,
वरना अबतक के विकास का
अर्थहीन है अर्जन।
कोई खाली हाथ न बैठे
बने योजना ऐसी,
आ पाएगी तब खुशहाली
रामराज्य के जैसी।

सुरेश चन्द्र “सर्वहारा”

बेरोजगारी पर कविता और हमारे देश में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या पर आपकी क्या राय है हमारे पाठकों को जरुर बताये। धन्यवाद। हमारे कविताओ का आनंद लेने के लिए हमारे Youtube Channel से जुड़े >> Youtube|ApratimKavya

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