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विश्व की सबसे पुरानी नगरीय सभ्यता सिन्धु घाटी सभ्यता का इतिहास बहुत पुराना है। जिस से हमें पता चलता है कि हमसे पहले का मानव हम लोगों से ज्यादा विकसित था। आइये पढ़ते हैं सिन्धु घाटी से जुड़ी और भी रोचक जानकारियाँ ( Sindhu Ghati Sabhyata In Hindi ) सिन्धु घाटी सभ्यता का इतिहास में :-
Sindhu Ghati Sabhyata In Hindi
सिन्धु घाटी सभ्यता का इतिहास
Sindhu Ghati Sabhyata Ki Khoj Kisne Ki
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज किसने की
सिन्धु घटी सभ्यता विश्व की प्रथम नगरीय सभ्यता है। इसके साथ ही ये विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक सबसे महत्वपूर्ण सभ्यता है। ईराक की मेसोपोटामिया सभ्यता व मिस्त्र की नील नदी सभ्यता के समकालीन सभ्यता थी। इस सभ्यता को सबसे पहले 1826 में चार्ल्स मैसेन ने खोजा था। यहाँ पर मिट्टी की खुदाई के समय ईंटों के साक्ष्य मिले थे।
एक बार फिर उसके बाद 1853 में कनिघम ने कराची से लाहौर के मध्य भारत में रेलवे लाइन के निर्माण कार्य के दौरान बर्टन बंधुओं ( जॉन बर्टन व विलियम बर्टन ) को भेजा था। बर्टन बंधुओं को यहाँ से पक्की ईंटों के साक्ष्य मिले। इसके बाद 1921 में जॉन मार्शल ( तत्कालीन भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक ) के समय में हड़प्पा नामक स्थान पर इस सभ्यता की खोज की। दयाराम सहनी को इसका खोजकर्ता कहा जाता है। उन्होंने इस सभ्यता का उत्खनन किया था।
भूमिका
इस महत्वपूर्ण सभ्यता की एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। इस सभ्यता के व्यापक क्षेत्र से हम अंदाजा लगा सकते है कि अपने समय में यह सभ्यता कितनी विस्तृत रही होगी। इस सभ्यता का क्षेत्र मेसोपोटामिया व नील नदी की सभ्यता से 12 गुना बड़ा है। इस सभ्यता को 5 नामों से जाना जाता है।
- हड़प्पा सभ्यता
- सिन्धु घाटी सभ्यता
- सरस्वती सभ्यता
- कांस्य युगीन सभ्यता
- प्रथम नगरिया सभ्यता
इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि सबसे पहले हड़प्पा नमक स्थान पर इसे खोजा गया था। इस सभ्यता का क्षेत्र सिन्धु नदी के किनारे पर बहुत ही विस्तृत रूप से फैला हुआ है। इसलिए इसे सिन्धु घाटी सभ्यता भी कहा गया है। इसका क्षेत्र सरस्वती नदी के किनारे भी बहुत विस्तृत है। इसलिए इसे सरस्वती सभ्यता भी कहते हैं।
(नोट :- घघ्घर नदी प्राचीन सरस्वती, जोकि राजस्थान में है। यह विन्सन नमक स्थान पर विलुप्त हो जाती है।)
इसे प्रथम नगरीय सभ्यता भी कहा गया है क्योंकि यह सभ्यता अपने आप में एक विकसित सभ्यता थी। इतनी पुरानी सभ्यता में नगरीय विकास होना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी। इस सभ्यता में सर्वप्रथम लोग पत्थर से बने हथियार का इस्तेमाल करते थे। उसके बाद उस समय के लोग ताम्बे का इस्तेमाल करने लगे। उसके कुछ समय बाद लोग कांसे का इस्तेमाल करने लगे। सबसे पहले इसी सभ्यता में कांसे के इस्तेमाल के अवशेष मिले हैं। इसी वजह से इस सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता कहा गया है।
सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति
यह सभ्यता चित्राक्षर लिपि में है। इस लिपि को अभी तक किसी के द्वारा पढ़ा नहीं गया है। इस सभ्यता की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों ने अलग-अलग मत दिए थे। कुछ विद्वानों ने सिन्धु घाटी सभ्यता को विदेशी उत्पत्ति का बताया है। वहीं कुछ अन्य ने इसे देशी सभ्यता का बताया है।
खोजकर्ताओं ने सिन्धु घाटी सभ्यता का इतिहास बताते हुए कहा है कि इस सभ्यता उत्पत्ति मेसोपोटामिया सभ्यता से हुयी है। और यह भी कहा कि विसरणवादी सिद्धांत के अनुसार सुमेरियन सभ्यता के लोग उस जगह से दूसरी जगह विस्थापित हो गए। इस सिद्धांत का समर्थन गार्डनचाइल्ड, जॉन मार्शल, एच.डी., सांकलिय लियोनार्ड व क्रैमर नमक इतिहासकारों ने किया था।
सुमेरियन साक्ष्यों में सिन्धु सभ्यता का उल्लेख ‘दिलमुन’ नाम से है। सुमेरियन सभ्यता के साक्ष्यों में भी पक्की ईंटों के भवन, पीतल व ताम्बे का प्रयोग, चित्रमय मोहरें आदि प्राप्त हुयी थीं। पर आगे और खोजबीन करने पर पता चला कि सुमेरियन सभ्यता व सिन्धु सभ्यता के बीच कुछ स्तर पर व्यापारिक संबंध व सांस्कृतिक संबंध थे। जिसकी वजह से सुमेरियन सभ्यता की मोहरें सिन्धु सभ्यता में मिली थीं। तो हम यह ख सकते हैं कि सिन्धु सभ्यता की उत्पत्ति विदेशी तो नहीं होगी।
सिन्धु सभ्यता को कई खोजकर्ताओं द्वारा देशी उत्पत्ति के अंतर्गत ईरानी, बलूचिस्तानी संस्कृति से उत्पन्न या सोथी संस्कृति से उत्पन्न बताया था। और इसके बारे में कहा था कि क्रमिक वादी सिद्धांत के अनुसार सिन्धु सभ्यता देशी उत्पत्ति की सभ्यता है। इस सिद्धांत के बार एमे यह कहा गया है कि अगर हम या कुछ लोग किसी जगह पर रहते हैं तो हम अपने आप को उसी जगह पर धीरे-धीरे विकसित करते हैं और अपनी संस्कृति को बढ़ाते हैं।
रोमिला थापर और फेयर सर्विस ने इसे ईरानी या बलूचिस्तानी संस्कृति से उत्पन्न बताया था। उन्होंने अलग-अलग जगहों पर खुदाई के द्वारा प्राप्त साक्ष्यों से बताया कि नाल, कुल्ली व आमरी में खुदाई करवाई। कहीं पर ग्रामीण साक्ष्य प्राप्त हुए, कहीं पर अर्ध ग्रामीण व कहीं नगरीय साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
वहीं अमलानंद घोष ने सिन्धु सभ्यता को सोती संस्कृति ( भारतीय ) से माना है। 1953 में उन्होंने राजस्थान में खुदाई द्वारा प्राप्त साक्ष्यों से बताया कि इन दोनों संस्कृतियों के पूर्वज एक सामान मिले व बर्तनों में पीपल के पत्तों के निशान भी प्राप्त हुए हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता का कालक्रम
यह प्राचीन सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी होगी। (‘नेचर’ पत्रिका के शोध के अनुसार ) इस सभ्यता के कालक्रम के बारे में भी खोजकर्ताओं के अलग-अलग मत थे। फादर हेरास ने इसे 6000 ई.पू. का बताया था। वहीं सर जॉन मार्शल ने इस सभ्यता को 3250-2750 ई.पू. का बताया था। पर कार्बन डेटिंग तकनीक के द्वारा सिन्धु घाटी सभ्यता को 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू. का बताया गया है।
(नोट :- कार्बन डेटिंग ऐसी तकनीक है जिसमें C-14 कार्बन के द्वारा अवशेषों की आयु ज्ञात की जा सकती है।)
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार
भौगोलिक व सामाजिक दृष्टि से यह सभ्यता विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता थी। इसका क्षेत्र पूर्व में उत्तर प्रदेश के अलमगीरपुर से पश्चिम में सुतकांगेडोर तक और उत्तर में जम्मू कश्मीर के मांडा से दक्षिण के दायमाबाद जोकि महाराष्ट्र में है, तक फैला हुआ है।
इस सभ्यता का क्षेत्र त्रिकोणाकार रूप में फैला हुआ है। इस सभ्य्त्य के अवशेष भारत, पाकिस्तान व अफगानिस्तान में प्राप्त हुए हैं। अबतक सिन्धु घाटी के 3% क्षेत्र के अवशेष ही प्राप्त हो सके हैं। सिन्धु सभ्यता के अवशेष भारत कि आज़ादी के पहले सिर्फ 40 स्थानों से प्राप्त हुए थे। भारत के आज़ादी के पश्चात से अब तक 1600 स्थानों पर इस सभ्यता के अवशेष प्राप्त हो चुके हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता के कुछ प्रमुख स्थल भारत, पाकिस्तान अफगानिस्तान में हैं। जो इस प्रकार हैं :-
- अफगानिस्तान :- मुंडीगाक और शुर्तगोई
- पाकिस्तान :- बलूचिस्तान में प्रमुख स्थल बालाकोट, सुतकांगेडोर व डाबरकोट। सिंध प्रान्त में मोहन जोदड़ो ( खोजकर्ता :- राखलदास बैनर्जी) जिसका अर्थ है मृतों का टीला, चनहुदड़ो। पंजाब प्रान्त में हड़प्पा (रावी नदी के तट पर स्थित), रहमानढेरी, दारा इस्माइल खां
- भारत :- मांडा, रोपड़, बनवाली, राजखेड़ी, कालीयंगा, दायमाबाद (प्रवरा नदी के तट पर), सहारनपुर, आलमगीरपुर, लोथल (गुजरात – खम्बात की खाड़ी ), धोलावीरा (गुजरात -कच्छ की खाड़ी ), रोपड़, रंगपुर, राखीगढ़ी, हुलस आदि।
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषता
1. सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसका नगर-नियोजन था।
2. इसमें नगर आयताकार में बने थे। सभी सड़कें मुख्या नगर को जोड़ती हैं, यानि एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
3. मोहन जोदड़ो में मुख्या सड़कों को राजपथ कहा गया है क्योंकि ये पक्की ईंटों से बनी 10 मीटर चौड़ी थीं।
4. ये नगर ग्रिड पैटर्न में बने हुए थे व हर भाग को पक्की ईंटों द्वारा विभाजित किया गया था।
5. घरों के दरवाजे मुख्या सड़क पर नहीं बल्कि गलियों में खुलते थे। इसका प्रमुख कारण शायद सुरक्षा थी।
6. हर घर में रसोईघर व स्नानागार था।
7. निकासी के लिए नालियां भी बनी हुयी थीं।
नगर
इस सभ्यता के सभी महत्वपूर्ण स्थलों में समरूपता मिलती है। नगर के भवनों के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि यह जाल की तरह फैले थे। सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त नगरों में दो टीले होते थे।
एक शासक वर्ग के लिए, जोकि पश्चिम भाग में स्थित था। दूसरा नगर या आवास क्षेत्र जो कि पूर्व में स्थित होता था। स्मारकों से पता चलता है कि यहाँ शासक मजदूर जुटाने व क्र संग्रह में कुशल थे। वहां मौजूद इमारतों के अवशेषों से पता चलता है कि शासक कितने प्रतापी व प्रतिष्ठावान थे।
मकान
सिंधु घाटी के मकानों से पता चलता है कि प्रत्येक माकन के बीच में एक आंगन हुआ करता था। मकान में आगे कुछ जगह छोड़कर एक दीवार होती थी जोकि सुरक्षा के लिए होती थी। दीवार भी पूरी तरह बंद नहीं होती थी बल्कि दीवार के दोनों छोर पर आने-जाने के लिए दरवाजे होते थे। इसके साथ ही स्नानागार व कुओं के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। कुछ घरों में सीढियां भी प्राप्त हुयी हैं। इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोग कितने समृद्ध रहे होंगे। इस से उनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। इनमे लगी ईंटों का अनुपात 4:2:1 था।
सड़कें
सिन्धु घाटी सभ्यता में सड़कों का जाल नगर को कई भागों में विभाजित करता था। सड़कें एक दूसरे को पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर समकोण पर काटती थीं। मोहनजोदड़ो में मुख्या सड़कों को राजपथ कहा जाता था। यहाँ की मुख्या सड़क 9.15 मीटर से 10 मीटर तक चौड़ी होती थी। सड़कों के दोनों तरफ थोड़ी-थोड़ी दूर पर मेनहोल बनाये गए थे। जिन्हें मानुष माखे कहते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का नगर नियोजन
सिन्धु घाटी सभ्यता में शासक वर्ग के लिए पश्चिमी टीला व सामान्य वर्ग के लिए पूर्वी टीला होता था। पश्चिमी टीला दुर्ग या गढ़ी कहलाता था। यह दुर्ग कच्ची ईटों से बना होता था। पर सुरक्षा के लिए रक्षा प्राचीर पक्की ईटों से बनी हुयी थी। वहीं पूर्वी टीला मात्र कच्ची ईटों से ही बना होता था।
अपवाद
1. कालीबंगा – कालीबंगा घघ्घर नदी के तट पर स्थित है। कालीबंगा में दुर्ग क्षेत्र व नगर क्षेत्र वाले टीले दोनों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग प्राचीर बनायीं गयी थी।
2. लोथल – गुजरात में भोगवा नदी के तट पर स्थित है। यह अपने समय में बंदरगाह रहा था। यहाँ से चावल के साक्ष्य भी मिले हैं। दुर्ग व नगर क्षेत्र दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए हैं।
3. धौलावीरा – यह गुजरात में स्थित है। यहाँ पर दुर्ग, माध्यम टीला, नगर क्षेत्र का टीला प्राप्त हुआ था।
सामाजिक जीवन
सामाजिक पृष्ठभूमि
सिन्धु सिन्धु घाटी के कालीबंगा व धौलावीरा से प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि यहाँ पर दुर्ग में शासक वर्ग निवास करता रहा होगा। मध्य टीले में शिल्पकार, शिक्षक, बुनकर, व्यापारी वर्ग निवास करता रहा होगा। नगर टीले में सामान्य वर्ग व नौकर निवास करते रहे होंगे।
स्त्रियों की दशा
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग मातृसत्तात्मक थे। वे माता प्रकृति की पूजा करते थे। मोहनजोदड़ो से प्रकृति की देवी की पूजा के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिसमें एक स्त्री की मूर्ती के गर्भ से पौधा निकल रहा है और सभी जानवर उसे देख कर उसकी पूजा कर रहे हैं।
वस्त्र
इस सभ्यता के लोग सूती व ऊनी वस्त्र पहनते थे। सूती वस्त्र में वे लोग साधारण व कढ़ाईदार कपडे का प्रयोग करते थे।
गहने
इस काल में लोग सोने व चांदी के घने पहना करते थे। वे सीप के गहनों का भी प्रयोग करते थे। गहनों के अवशेष निम्न जगहों से मिलते हैं :-
हाथी दांत की चूड़ियाँ – कालीबंगा से
काजल व सिंदूर – नोसारी (बलूचिस्तान)
लिपस्टिक – चनहूदड़ो (पाक-सिंध प्रान्त)
मेकअप का डिब्बा – हड़प्पा (पाक-पंजाब)
भोजन
इस समय में लोग शाकाहारी व मांसाहारी भोजन दोनों खाते थे।
मनोरंजन
इस समय लोग मनोरंजन के लिए पासे का ख एल खेलते थे। वे हाथियों से लड़ने वाले खेल भी खेला करते थे।
प्रशासन एवं आर्थिक जीवन
कृषि
सिन्धु सभ्यता के समय लोगों को कृषि के लिए भरपूर सिंचाई साधन प्राप्त थे। यह प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर क्षेत्र था। सिंधु घाटी सभ्यता के समय मुसलाधार बारिश व सिन्धु जैसी सहायक नदियाँ थीं जो कृषि के लिए उपजाऊ मिटटी अपने साथ बहा कर लाती थीं। जो गेहूँ व जौ की खेती में सहायक थीं।
मोहनजोदड़ो के आस-पास के क्षेत्र को सिंध का बगीचा भी कहा जाता है। सिन्धु सभ्यता के लोग बाढ़ के उतर जाने के बाद नवम्बर में बाढ़ वाले मैदानों में बीज बो देते थे और अगली बाढ़ आने से पहले अप्रैल में गेहूँ व जौ की फसल काट लेते थे। यहाँ से ओई फावड़ा या फाल तो नहीं मिला हा परन्तु कालीबंगा में एक हड़प्पा सभ्यता से जो हलरेखा प्राप्त हुयी है उससे पता चलता है कि राजस्थान में इस काल में हल चलाया जाता था।
सिन्धु घाटी सभ्यता में प्राप्त अवशेषों से पता चला है कि कृषि में लोग गेहूँ, जौ, तरबूज, खरबूजा, कपास, मटर, सरसों, काला तिल उगाते थे। कृषि के लिए वे लोग पत्थर व लकड़ी से बने औजार इस्तेमाल करते थे।बलूचिस्तान व अफगानिस्तान के क्षेत्र में उस समय बाँध बना कर पानी को भविष्य में उपयोग के लिए संरक्षित कर के रखते थे। लेकिन यहाँ नहर होने का कोई सुराग नहीं मिला है। वे दो प्रकार के गेहूँ और जो उगाते थे।
बनावली से पर्याप्त मात्र में जौ और सरसों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। लोथल में प्राप्त अवशेष कुछ अलग थे, जिनसे पता चलता है कि 1800 ई.पू. में लोग चावल (धान) की खेती करते थे। खाद्य पदार्थ को संरक्षित रखने के लिए बड़े-बड़े भंडारगृह भी मोहनजोदड़ो, हड़प्पा व संभवतः कालीबंगा से प्राप्त हुए थे। कालीबंगा के लोग कपास उगाने वाले प्रथम लोग थे। सिंध नदी के पास रहने के कारण ग्रीक और यूनानी लोग उन्हें सिन्धु कह कर बुलाते थे। जो आगे चल कर हिन्दू शब्द में बदल गया। लोथल से आटे की चक्की, चावल, जौ और रोजड़ी से रागी व ज्वार प्राप्त हुए हैं।
पशुपालन
हड़प्पा सभ्यता के लोग कृषि, व्यापर, भोजन व अन्य कार्यों के लिए पशुपालन करते थे। जानवरों में हठी, शेर, बिल्ली, कुत्ता, भैंस के अवशेष प्राप्त होते हैं किन्तु गाय, ऊँट, घोड़ा आदि के बारे में ये लोग नहीं जानते थे।
बैल, भैंस, बकरी, भेड़ व सूअर आदि घरेलु या पालतू जानवरों में आते थे। कूबड़ वाले सांड का अवशेष हड़प्पा से प्राप्त हुए हैं।
शिल्पकला व उद्योग
इस समय में लोग मनका बनाने सीप बनाने, मृदभांड, कपड़ा उद्योग में कार्यरत रहते थे। कपड़ा उद्योग में उन्हें साधारण सूती वस्त्र व कशिदाकारी वाले कपड़े बनाते थे। मनका बनाने के अवशेष में मोतियों के अवशेष लोथल व चनहूदड़ो से प्राप्त होते हैं। सीपों के अवशेष बालकोट व लोथल से प्राप्त हुए हैं। मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) में लाल मिट्टी व काली मिट्टी के बर्तनों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो से सूती वस्त्रों के अवशेष प्राप्त ही हैं। उस समय लोग सोने-चांदी व अन्य बेशकीमती पत्थरों के बने हुए गहने पहना करते थे।
खनिजों के अवशेष जिन जगहों से प्राप्त हुए हैं वे निम्न हैं :-
टीन – अफगानिस्तान, ईरान
चाँदी – ईरान
सोना – कोलार, फारस की खाड़ी, अफगानिस्तान
बतख्शा – अफगानिस्तान
पत्थर – महारष्ट्र
सीसा – अफगानिस्तान
शिलाजीत – हिमालय
तांबा – खेतड़ी (राजस्थान)
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग निम्न देशों के साथ व्यापार करते थे :-
1. अफगानिस्तान व ईरान
2. पर्शिया की खाड़ी (दिलमुन)
3. मिस्त्र
4. मेसोपोटामिया
व्यापर एवं वाणिज्य
यहाँ के लोग पत्थर, धातु, शल्क/हड्डी आदि का व्यापर करते थे। सील एकरूप लिपि व मानकीकृत मापतोल के प्रमाण मिले थे। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग पहिये से परिचित थे। वे अफगानिस्तान व ईरान से व्यापर करते थे। वे नव बनाने के कार्य से भी परिचित थे।
राजनैतिक जीवन
इतनी विकसित नगरीय सभ्यता से पता चलता है कि इस समय भी राजनैतिक सत्ता तो रही होगी पर इसका कोई पुख्ता सबूत अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है कि उस समय के शासक किस तरह की शासन प्रणाली से शासन करते रहे होंगे। हड़प्पा सभ्यता से दुर्ग व नगर क्षेत्र के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जिससे यह पता चलता है कि दुर्ग क्षेत्र में शासक व उच्च वर्ग के लोग रहते होंगे और नगर क्षेत्र में सामान्य वर्ग रहता होगा और शासक कर के रूप में अनाज लेते रहे होंगे।
धार्मिक जीवन
सिन्धु घाटी सभ्यता में मंदिर के कोई अवशेष प्राप्त नहीं होते हैं। वे लोग मातृ पूजा पशुपतिनाथ व कूबड़ वाले एक श्रृंगी बैल की पूजा करते थे। मातृपूजा के अवशेष में एक स्त्री जिसके गर्भ से एक पौधा निकल रहा है, के अवशेष प्राप्त हुए हैं। जिससे यह पता चलता है कि वे लोग प्रकृति की देवी की पूजा करते थे। इसलिए हड़प्पा के लोग पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानकर पूजा करते थे जैसा कि मिस्त्र के लोग नील नदी की देवी ईसिस की पूजा करते थे।
सिन्धु सभ्यता से प्राप्त सील से पता चलता है कि वे लोग पशुपतिनाथ भगवान् की पूजा करते थे क्योंकि सील में तीन सींग वाले एक योगी ध्यानमुद्रा में बैठे हुए हैं और उनके बांये हाथ की तरफ भैंस व गैंडा और दांये हाथ की तरफ हाथी व शेर उनकी ओर देख रहे हैं। जिससे पता चलता है कि वे उन योगी की पूजा कर रहे हैं।
एक सील और प्राप्त हुयी है जिसमें पीपल के पत्तों के निशान प्राप्त हुए हैं। मतलब वे पेड़ों की भी पूजा करते थे। वे सांप, पेड़, सूर्य व जल की पूजा भी करते थे।
हड़प्पा सभ्यता की लिपि
हड़प्पा के लोगों ने मेसोपोटामिया के लोगों की तरह ही लिखने की कला सीखी। लिपि के अवशेष सर्वप्रथम 1853 में प्राप्त हुए। इसकी पूरी लिपि 1923 में प्राप्त हुयी। चित्राक्षर लिपि जोकि सिंधु सभ्यता के अवशेषों से प्राप्त हुयी है इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। हड़प्पा सभ्यता की लिपि के अब तक 4000 अवशेष अब तक प्राप्त हुए हैं। इन लिपि में सबसे ज्यादा अंग्रेजी के ‘U’ अक्षर का ज्यादा उपयोग हुआ है। चित्रों में सबसे ज्यादा मछली का चित्र प्राप्त हुआ है।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन
सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन का अब तक कोई कारण पता नहीं चला है। अलग-अलग जगहों से प्राप्त अवशेषों से खोजकर्ताओं ने अलग-अलग मत दिए हैं। भिन्न-भिन्न मतों के अनुसार ये सभ्यता बाढ़ के कारण, वातावरण में परिवर्तन बताया जाता है। कामादेज ने इस सभ्यता के अंत का कारण मलेरिया बताया है वहीं निमिथा देव ने प्राकृतिक आपदा को मुख्या कारण बताया है।
तो दोस्तों ये था ‘ सिन्धु घाटी सभ्यता का इतिहास ‘ जो हमें भेजा है चित्रा मालविया जी ने इंदौर, मध्य प्रदेश से। आशा करते हैं कि आपको सिन्धु घाटी सभ्यता का इतिहास लेख से सिन्धु घटी सभ्यता के बारे में सारी जानकारी प्राप्त हो गयी होगी। तो आइये जानते हैं लेखिका के बारे में।
मेरा नाम चित्रा मालवीया है। मैं इंदौर, मध्य प्रदेश से हूँ। मुझे नई-नई भाषाएँ सीखने, नॉवल पढने और नए-नए लोगों से मिलने व उनकी संस्कृति के बारे में जानने का शौक है।
‘ सिन्धु घाटी सभ्यता का इतिहास ‘ के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढने का मौका मिले।
धन्यवाद।
1 comment
achha lga pdhakar