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जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी | Jallianwala Bagh Kahani

by Sandeep Kumar Singh
7 minutes read

जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी

जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी

13 अप्रैल, 1919 का दिन, जिस दिन जनरल डायर ने बेरहमी से कितने ही हिन्दुस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया था। जहाँ बैसाखी के दिन खुशियाँ मनाई जानी चाहिए थी वहां मातम पसर गया। क्या हुआ था उस दिन और क्या कारण थे जिस वजह से ये हत्याकांड हुआ। कैसे पड़ा जलियांवाले बाग़ नाम ? आइये जानते हैं उस घटना के बारे में विस्तार से ” जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी ” में।

जलियांवाला बाग का नाम

सन 1919 के हत्याकांड के समय जलियांवाला बाग़ एक बाग़ नहीं था। उस समय यह एक गैर आबाद जगह थी। इसकी जमीन काफी ऊंची-नीची थी। 19वीं सदी के मध्य में इस जगह के मालिक पंडित जल्लाह ने इस जगह पर एक सुन्दर बाग़ का निर्माण करवाया। जिस कारण इस बाग़ का  नाम जलियांवाला बाग़ पड़ गया। पंडित जल्लाह की मृत्यु के बाद बाग़ उजड़ गया और नाम मात्र का बाग़ रह गया।

जलियांवाला बाग कहां स्थित है

अमृतसर में  7-एकड़ में फैला हुआ जलियांवाला बाग़ स्वर्ण मंदिर से महज 100 गज की दूरी पर स्थित है।

जलियांवाला बाग हत्याकांड

भारत में जब रॉलेट एक्ट पारित हुआ तब सभी देशवासियों ने इसका विरोध किया। गाँधी जी ने इसके विरुद्ध सत्याग्रह शुरू किया। इसी दौरान यह फैसला लिया गया कि रॉलेट एक्ट के विरोध में 30 मार्च को पूरे देश में हड़ताल की जाएगी। बाद में यह हड़ताल की तारीख 30 मार्च से बदल कर 6 अप्रैल को कर दी गयी। लेकिन पंजाब और दिल्ली में इसकी सूचना न पहुँचने 30 मार्च को ही हड़ताल कर दी गयी। पंजाब में तो यह हड़ताल शांतिपूर्ण रही मगर दिल्ली में रेलवे स्टेशन पर दंगे हो गए। जिसे रोकने के लिए पुलिस की तरफ से गोलियां भी चलाई गयीं। जिसमे 8 आदमी मरे और 11 लोग ज़ख़्मी हो गए।

निश्चित की गयी तारीख 6 अप्रैल को राष्ट्रव्यापी हड़ताल हुई और शांतिपूर्वक ढंग से हुयी। इसके कुछ ही दिन बाद 9 तारीख को अमृतसर में रामनवमी का त्यौहार पूरे उत्साह के साथ मनाया गया। खास बात रह रही कि रामनवमी के उपलक्ष्य में निकाली गयी रैली में महात्मा गाँधी जिंदाबाद के नारे लगाये गए। अंग्रेजी सरकार को लगने लगा यदि इन आन्दोलनकारियों को अभी न रोका गया तो आगे चल कर ये हमारे लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं।

यह सब बातें उस समय के पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ ड्वायर को बिलकुल भी पसंद ना आई। बगर बिना कारण वह कोई कार्यवाही भी नहीं कर सकते थे। इसलिए उन्होंने 10 अप्रैल को डा. किचलू और डा. सतपाल की गिरफ़्तारी के हुक्म दे दिए। वह जानता था कि ऐसा करने से बाकी सब आन्दोलनकारी गुस्से में आ जाएँगे और कोई न कोई गलत कदम जरूर उठाएंगे।

10 अप्रैल को सुबह 10 बजे डा. किचलू और डा. सतपाल को गिरफ्तार कर धर्मशाला भेज दिया गया। जब स्थानीय लोगों को इस घटना के बारे में पता चला तो लोग डिप्टी कमिश्नर के घर का घेराव करने के लिए इकट्ठा होने लगे। अंग्रेजी अफसरों की तरफ से उन्हें रोकने का प्रयास किया गया। इसी प्रयास में सैनिकों की तरफ से गोलियां चलाई गयीं। जिस से सभी लोग आक्रोशित होकर अंग्रेजी सेना का सामना करते हुए आगे बढ़ने लगे।

इसके बाद शाम को 5 बजे तक बैंकों और सरकारी दफ्तरों में तोड़-फोड़ जारी रही। उसके बाद दो दिन तक अमृतसर में शांति का माहौल बना रहा। इसी दौरान अमृतसर में जनरल डायर का आगमन हुआ। उसके आते ही अमृतसर में मार्शल लॉ ( पुलिस को हटा कर कानून व्यवस्था फ़ौज को सौंप देना ) लगा दिया गया।

आन्दोलनकारियों ने डा. किचलू और डा. सतपाल की रिहाई के लिए 13 अप्रैल को शाम 6 बजे एक मीटिंग करने का फैसला किया। इस बात की जानकारी जब जनरल डायर को हुई तो उसने उसी सुबह हथियारबंद सैनिकों के साथ एक रैली निकाली। जिसका उद्देश्य लोगों के मन में भय भरना था। यह आगे होने वाली घटना के लिए एक संकेत भी था।

13 अप्रैल को बैसाखी का त्यौहार होने के कारण जलियांवाला बाग़ के आस-पास बहुत ज्यादा भीड़ थी। लोग इतने ज्यादा उत्साहित थे कि 2 बजे से ही जलियांवाला बाग़ में इकट्ठे होने शुरू हो गए। इस बात की सूचना शाम को 4 बजे के करीब जनरल डायर को मिली। सूचना मिलते ही जनरल डायर अपने हथियारबंद सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग़ पहुँच गया।

बाग़ में पहुँचते ही उसने अपने सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दे दिया। जैसे ही गोलियां चलनी शुरू हो गयी वैसे ही बाग़ में भगदड़ मच गयी। कुछ लोग वहीं बाग़ में 1.5 मीटर ऊंची एक दीवार फांद कर बहार निकलने का प्रयास करने लगे। कुछ और लोग दरवाजों से भागने की कोशिश करने लगे। लेकिन जनरल डायर इतना क्रूर था कि उसने सैनिकों से दरवाजे से भागने की कोशिश कर रहे लोगों पर गोलियां चलवाई।

15 मिनट तक चले इस हत्याकांड में 1650 गोलियां चलायी गयी। इस घटना में शहीद हुए देशभक्तों की सही संख्या अंग्रेजों द्वारा नहीं बताई गयी।

( अंग्रेजों द्वारा मरने वालों की संख्या तकरीबन 200 के आस-पास बताई जाती है जबकि कई हिन्दुस्तानियों का कहना था की 1000 से ऊपर लोग इस हत्याकांड में शहीद हुए थे। )

डर ऐसा फ़ैल गया था कि इस हत्याकांड की रात को जख्मियों के इलाज के लिए कोई डॉक्टर नहीं आया।

यह एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया। इसके बाद आज़ादी के लिए लड़ने वालों के अन्दर ऐसी आग जली जिसने अंग्रेजी राज को जला कर हमे आज़ाद हवा में सांस लेने के काबिल बनाया।

” जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी ” से संबंधित कोई प्रश्न आपके मन में हो तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें?

पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग की यह रोचक जानकारियां :-

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

1 comment

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Sarvan varma अगस्त 4, 2022 - 7:25 अपराह्न

Jay hind

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