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विश्व पर्यावरण दिवस पर निबंध – विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है


विश्व पर्यावरण दिवस पर निबंध में हम जानेंगे कैसे हुई पर्यावरण दिवस मनाने  की शुरुआत और विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है ?

विश्व पर्यावरण दिवस पर निबंध

विश्व पर्यावरण दिवस पर निबंध

इंसान धरती पर एकमात्र ऐसा प्राणी है जो पृथ्वी की रूप रेखा को बदल सकता है। इंसान ने ही जंगलों को काट कर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर ली हैं। नदियों को बाँध कर डैम बना लिए हैं। परन्तु इस विकास में उसने धरती की हालत बिगाड़ कर रख दी है। हमारे पर्यावरण को आज खतरे में डाल दिया है। विज्ञान के बढ़ते अविष्कारों ने जहाँ इंसान के जीवन को सरल बना दिया है वहीं प्रदूषण को इस स्तर तक बढ़ा दिया है कि हर 10 व्यक्ति में सांस लेने के लिए बस 1 व्यक्ति को ही शुद्ध वायु मिल रही है।

अगर यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो एक दिन मानव जाति तो क्या पूरी पृथ्वी का ही अस्तित्व ख़त्म हो जाएगा। इसी बात का आभास जब संयुक्त राष्ट्र ( United Nations ) को हुआ तब उन्होंने अपने धरती के पर्यावरण को बचाने के लिए उन्होंने कदम उठाया।

पर्यावरण दिवस मानाने का संकल्प कब लिया गया था ?

सन 1972 में पर्यावरण को बचाने के लिए स्टॉकहोम ( स्वीडन ) में बहुत बड़े सम्मलेन का आयोजन किया गया। यह सम्मलेन 5 जून से 16 जून तक चला था। जिसमें 119 देशों ने भाग लिया। जिसका मुख्य उद्देश्य मानव पर्यावरण को सामान्य दृष्टिकोण से बचाना और आगे बढ़ाना था।

15 दिसम्बर 1972 को इस संदर्भ में महासभा द्वारा यह संकल्प लिया गया कि 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाएगा। हालाँकि यह संकल्प 1972 में लिया गया था लेकिन पहली बार पर्यावरण दिवस 1974 में मनाया गया था। उसके बाद से यह प्रतिवर्ष 5 जून को संपूर्ण विश्व में मनाया जाता है। इसे विश्व में कुल 143 देश मिलकर मानते हैं।

इसके साथ ही महासभा ने एक और संकल्प लिया जिसने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ( UNEP – United Nations Environment Programme ) का निर्माण किया। इनका मुख्यालय नैरोबी, केन्या में स्थित है। जो वैश्विक पर्यावरण एजेंडा सेट करता है और संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर उसके सतत विकास और स्पष्ट परिपालन को बढ़ावा देता है।

यह दिवस मात्र एक दिन का दिवस नहीं है। हमें इसका महत्त्व समझना चाहिए। किसी ख़ास दिन नहीं बल्कि सदैव रही प्रयास करना चाहिए कि हम पर्यावरण को साफ़ और सुरक्षित रख सकें।



यह जिम्मेदारी मात्र संस्थाओं की ही नहीं है। यह हमारी भी नैतिक जिम्मेदारी है कि धरती माँ के को बचाने के लिए कुछ न कुछ करें। यदि धरती ही नहीं रहेगी तो हमारा अस्तित्व भी कैसे रहेगा।

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धन्यवाद।

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