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भारत में भादों का ये महीना गणेश चतुर्थी उत्सव का होता है। इसी गणेश उत्सव को ध्यान में रखते हुए हमने गणेश जी की कहानी और उनके कुछ रोचक कथाओं को अपने पाठको तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे है। जिसमे गणेश जन्म कथा और गणेश चतुर्थी उस्तव मनाने की कहानी हमारी पहला कथा थी। ये कथा गणेश जी की कहानी का दूसरा भाग है जिसमे आप ये जान पाएंगे की गणेश जी का सिर क्यों कटा और हाथी का ही मस्तक उनके सर पर क्यों लगाया गया?
गणेश जी की कहानी
गणेश जी के सर काटने का कारण:
बात पुरातन समय की है। किसी कारण भगवान् शंकर को सूर्य देवता पर क्रोध आ गया। क्रोध भी थोड़ा नहीं बहुत ही ज्यादा आया। इतना ज्यादा कि भगवान् शिव ने अपने त्रिशूल से सूर्य देवता का वध कर दिया।
सारा संसार अन्धकारमय हो गया। हर ओर त्राहि-त्राहि मच गयी। सभी देवता इस अन्धकार से परेशान होने लगे। उधर सूर्य देवता के पिता महर्षि कश्यप अपने पुत्र सूर्य के शरीर को गोद में लेकर विलाप कर रहे थे।
जी हाँ वही महर्षि कश्यप जिन्होंने कश्मीर बसाया था। महर्षि कश्यप ब्रह्मा जी के पुत्र थे। अपने पुत्र की मृतक देह को अपनी गोद में देखकर किस पिता का खून नहीं खौलेगा। बस फिर क्या था। महर्षि कश्यप ने भगवान् शिव को श्राप दे दिया,
“जैसे तुमने मेरे पुत्र का वक्ष स्थल विदीर्ण किया है। उसी तरह तुम्हारे पुत्र का मस्तक भी छिन्न हो जाएगा।”
जिन्हें नहीं पता वो जान लें वक्ष स्थल छाती को कहा जाता है और विदीर्ण का अर्थ फाड़ना होता है।
तो हम ये बता रहे थे कि कश्यप जी ने श्राप दे दिया। आगे ये हुआ कि शंकर जी को फिर से महर्षि कश्यप के ऊपर क्रोध आ गया। जैसे ही भगवान् शिव महर्षि कश्यप को श्राप देने लगे। तभी ब्रह्मा जी ने बीच में आकार भगवान् शंकर को ये करने से रोका और सूर्य देवता को पुनर्जीवित करवाते हैं।
जब सूर्य देवता दुबारा जीवित होते हैं तो वैराग्य धारण कर लेते हैं। वे कहते हैं जब जिंदगी का कोई भरोसा ही नहीं तो इतना काम करने का क्या फ़ायदा? इस पर ब्रह्मा जी उन्हें समझाते हैं कि सबका जन्म कर्म करने के लिए ही होता है। जीवन का धर्म ही कर्म है। जो भी कर्म से पीछे हटता है उसका जीवन व्यर्थ होता है। ब्रह्मा जी के समझाने पर सूर्य देवता ने भगवान् शंकर भगवान् से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी और उनसे आशीर्वाद लेकर फिर से गतिमान हुए।
गणेश भगवान को हाथी का मस्तक:
अब बात करते हैं कि गणेश भगवान् को हाथी का ही मस्तक क्यों लगा?
एक बार देवराज इंद्र पुष्पभद्रा नदी के निकट ठहरे हुए थे। वहां चारों और दूर-दूर तक कोई मनुष्य न रहता था। कुछ था तो बस सुन्दर-सुन्दर फूल और हरे-भरे वृक्ष। इंद्रा वहीँ घूम रहे थे। तभी वहाँ से महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ वहाँ से जा रहे थे। इंद्रा देव उन्हें देखते ही नतमस्तक हो गए।
ये देखकर महर्षि दुर्वासा अत्यंत प्रसन्न हुए। उस समय महर्षि दुर्वासा भगवान् विष्णु से मिल कर आ रहे थे। जहां प्रभु नारायण ने महर्षि दुर्वासा को एक फूल दिया था। वही फूल उन्होंने इंद्र को दे दिया और उन्हें बताया की ये फूल जिसके भी माथे पर सुशोभित होगा वह हर जगह विजयी रहेगा। संसार उसकी सबसे पहले पूजा करेगा। उसकी बुद्धि सारे संसार में सबसे तेज होगी। लक्ष्मी जी सदैव उनके साथ रहेंगी और उनका पराक्रम भगवान् हरी के समान हो जाएगा। इतना कहकर महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ कैलाश की और चल दिए।
उनके जाने के बाद इंद्रा ने वह पुष्प अपने मस्तक पर न रख अनजाने में अपने हाथी के ऊपर रख दिया। उसके बाद इंद्र जब स्वर्ग वपस जाने के लिए तैयार हुए तो उनके हाथी ने उन्हें अपने ऊपर न बैठने दिया। इंद्रा देव ने बहुत प्रयास किया उस हाथी को रोकने का परन्तु विफल रहे। क्योंकि अब वह हाथी महातेजस्वी हो चुका था। उसने इंद्र को वहीं छोड़ दिया और जंगल में आगे चला गया।
थोड़ा आगे जा के उसे एक हथिनी मिली। हाथी का तेज तेज देख कर वह हाथिनी उस हाथी की और आकर्षित हो गयी। ये सब देख उस हाथी को अपने ऊपर अभिमान हो गया। उसके बाद वह जंगल के सभी जानवरों को तंग करने लगा और पेड़-पौधे उखाड़ कर फैंकने लगा।
उस पर भगवान् का आशीर्वाद आ जाने के कारण प्रभु का उसके अभिमान को खंडित करना जरूरी था। अब जबकि वह हाथी महा तेजस्वी और महा पराक्रमी बन गया था। ऐसे समय में उसका अस्तित्व भी बचा रहना चाहिए थे और अभिमान भी खंडित होना चाहिए था। इसलिए प्रभु श्री हरी ने उस हाथी का मस्तक उसके धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार उस हाथी का अभिमान खंडित हो गया। वह सिर गौरी पुत्र गणेश के धड़ पर लगा दिया गया। जिससे उसका अस्तित्व भी बचा रहा।
तो ये थी गणेश जी का कहानी उनके धड़ से उनके मस्तक के अलग होने की।
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अब जबकि आपको पता चल चुका है कि गणेश जी का सिर उनके धड़ से अलग क्यों हुआ था और ये भी पता चल चुका है की संसार में इतने सुन्दर प्राणियों के होते हुए भी सिर्फ हाथी का सिर क्यों लगा। तो क्यों न गणेश जी की कहानी दूसरे लोगों तक पहुंचाई जाए। तो फिर देरी क्यों कर दीजिये इस कथा को शेयर अपने फेसबुक, व्हाट्सएप्प और अन्य सोशल साइट्स और एप्पस् पर।
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