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” बाल कविता लोमड़ सब्जीवाला ” में जंगल में सब्जी बेचने वाला एक लोमड़ अपनी सब्जियों का बढ़चढ़कर गुणगान करता है हाथी उसको इस तरह झूठा विज्ञापन नहीं करने को कहता है, इस पर लोमड़ कहता है कि आज के युग में बातें बनाने पर ही सामान की बिक्री होती है। यह विज्ञापन का युग है। साथ ही लोमड़ यह भी कहता है कि वह अनुचित लाभ नहीं उठाता है और सब्जियों को उचित मूल्य पर ही बेचता है। लोमड़ की बातों को सुनकर हाथी उसकी लाचारी को समझ जाताहै और लोमड़ को अपना साथी बना लेता है।
बाल कविता लोमड़ सब्जीवाला
वन में एक बनाकर झोंपड़
बेच रहा था सब्जी लोमड़,
कोई भी जब आता जाता
बड़े जोर से वह चिल्लाता।
ले लो मेरी सब्जी ताजा
खाता है जंगल का राजा,
इसको खा वह खूब दहाड़े
दुश्मन के भी सीने फाड़े।
खाकर मेरे ताजा आलू
मोटा होता जाता भालू,
ता ता थैया नाच दिखाता
पेड़ों पर झट से चढ़ जाता।
खरहे खाकर मूली गाजर
हँसते गाते कान उठाकर,
कौन दौड़ में इनसे जीता
देख इन्हें घबराता चीता।
बैंगन भिंडी खाकर गीदड़
बाघों से भी जाते हैं लड़,
दे जरखों को खूब पटकनी
याद दिला देते हैं नानी।
पत्तों वाली सब तरकारी
नीलगाय को लगती प्यारी,
खाकर करती धमा-चौकड़ी
भुला हरिण को रही हेकड़ी।
खाकर मेरा मीठा केला
करता बन्दर बहुत झमेला,
उछल कूद पेड़ों पर करता
वनमानुष भी इससे डरता।
लौकी खीरा खाकर बिल्ली
उड़ा रही शेरों की खिल्ली,
कुत्ते भी इससे कतराते
उठते-गिरते जान बचाते।
आओ भाई बहिनों आओ
जल्दी से सब्जी ले जाओ,
ऐसी सब्जी नहीं मिलेगी
खाकर मन की कली खिलेगी।
यह सब सुनकर हाथी आया
देख उसे लोमड़ घबराया,
हाथी बोला – सुन रे ! लोमड़
क्यों करता है बातें बढ़चढ़।
सूंड उठा मारूँ क्या फटका
या दूँ पूँछ पकड़कर लटका,
ठीक नहीं झूठा विज्ञापन
हो सच से ही जीवन – यापन।
बोला लोमड़ – हाथी दादा !
माल बात से बिकता ज्यादा,
यहाँ सभी उनके गुण गाते
जो केवल बातों की खाते।
मैं हूँ अपना धन्धा करता
पेट बाल – बच्चों का भरता,
बात बनाकर जैसे तैसे
कमा रहा हूँ बस दो पैसे।
लो खाओ तुम तो यह गन्ना
मुझे सेठ ना बनना धन्ना,
लाभ नहीं मैं अधिक कमाता
बस बातों से मन बहलाता ।
लोमड़ की बातों को सुनकर
मन आया था हाथी का भर,
खुश होकर तब बोला हाथी
मुझे बना लोअपना साथी।
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धन्यवाद।