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वायु प्रदूषण पर कविता ( Air Pollution Poem In Hindi ) ‘चिमनी का धुआँ ‘ कविता में बढ़ते औद्योगिकीकरण से गाँवों पर पड़े दुष्प्रभाव का चित्रण किया गया है। औद्योगिकीकरण के कारण कल – कारखानों की चिमनियाँ रात – दिन धुआँ छोड़ती रहती हैं जिसके कारण आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों की वायु बहुत अधिक प्रदूषित हो गई है। कारखाने अपना रासायनिक कूड़ा – कचरा भी नदियों में डाल रहे हैं जिसके कारण नदियाँ जहरीली हो रही हैं और उनका प्रवाह अवरुद्ध हो रहा है।
औद्योगिक क्षेत्रों का विकास होने से जंगलों का सफाया हो रहा है, कंक्रीट के मकान बन रहे हैं, पशुओं के चारागाहों पर अतिक्रमण हो रहा है, कुटीर उद्योग धन्धे दम तोड़ रहे हैं। बेरोजगारी में वृद्धि के कारण युवक विभिन्न व्यसनों में लिप्त हो रहे हैं। औद्योगिकीकरण के कारण जहाँ लोगों की सुख – सुविधा में वृद्धि हुई है वहीं मानवीय मूल्यों का क्षरण होकर आदमी की स्वार्थपरता में बढ़ोतरी हुई है। गाँव के लोग भी अब निश्छल व्यवहार और भोलेपन को खोकर शहरी लोगों की तरह आत्मकेन्द्रित होने लगे हैं।
वायु प्रदूषण पर कविता
लील गया गाँव को
चिमनी का धुआँ।
सूख कर जल नदी का
बन गया भाप,
वायु भी दूषित हो
बढ़ा रही ताप।
लोगों ने पाट दिया
रहा – सहा कुआँ।
बन गए फर्नीचर
जंगल के पेड़,
चारागाह नष्ट हुए
भटक रही भेड़।
खो गई सियारों की
अब हुआँ हुआँ
हरियाले खेत में
उग गए मकान,
उजड़ी है अमराई
पनघट सुनसान।
कामकाज छोड़ सब
खेल रहे जुआँ।
गाँवों को लग गया
शहरों का रोग,
अनजाने हो गए
अपने ही लोग।
भर गया स्वार्थ से
तन का हर रुआँ।
लील गया गाँव को
चिमनी का धुआँ।
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