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रास्ता भटक गया हूँ मैं – जीवन एक सफ़र है, जिसमे हर किसी को सफ़र करना है। हम सब मुसाफिर है इस सफ़र के। इस सफ़र में रास्ते हम खुद चुनते है, कभी-कभी ये बहारो वाली और मजेदार होती है। कभी-कभी काँटों वाली और कष्टदायक होती है। लेकिन बहुत से लोग ऐसे है जिनके जीवन सफ़र में कोई साफ़ मंजिल नही होता। ऐसे में वो इस रस्ते से उस रस्ते भटकते रहते है। ऐसे ही अपने सफ़र से एक भटके हुए मुसाफ़िर की कविता आप पढेंगे : रास्ता भटक गया हूँ मैं ।
रास्ता भटक गया हूँ मैं

खुशियों के इस सफर में,
गमों ने किया है बसेरा।
रास्ता, भटक गया हूं मैं,
कारवां छूट गया मेरा।
मैं दर-दर ठोकर खाता हूँ,
हर कदम पर गिरता जाता हूँ,
कोशिश करता हूँ लाखों मैं,
पर फिर भी संभल न पाता हूँ।
खोया है उजाला जीवन का,
है चारों ओर अंधेरा ,
रास्ता, भटक गया हूं मैं,
कारवां छूट गया मेरा।
जब मिलता कोई मुसाफिर है,
मैं संग उसके हो लेता हूँ,
किसी मोड़ पर कोई अजनबी,
जब मुझको छोड़ के जाता है,
मैं गुजरे राह को तकता हुआ,
खुद को तनहा सा पाता हूँ।
न पता न कोई ठिकाना है,
जहाँ रुके वहीं है डेरा,
रास्ता भटक गया हूं मैं,
कारवां छूट गया मेरा।
हर ओर अजनबी दिखते हैं,
रहा न अब कोई मेरा,
न रात अंधेरी कटती है,
न होता है अब सवेरा।
बेबस सी है जिंदगी अब तो,
हर ओर मुसीबत ने घेरा,
रास्ता, भटक गया हूं मैं,
कारवां छूट गया मेरा।
पढ़िए :- जिंदगी का सफ़र बताती एक हिंदी कविता
” रास्ता भटक गया हूँ मैं “ कविता आपको कैसे लगी हमें जरूर बताएं। अगर आप भी कोई मुसाफ़िर है तो अपने अनुभव भी हमारे साथ शेयर करें।
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धन्यवाद।
6 comments
Such me incredible poem I like it
Thanks Sachin Kumre ji….
इस ब्लॉग का मैं फैन हो गया हूँ।
वो सब मिला जिसकी मुझे जरूरत थी ।
बहुत बहुत बढ़िया
you are great I impressed with your poems
Thank you
बहुत सुंदर सुंदर रचनाएं!!!
धन्यवाद Joshi जी….