हिंदी कविता संग्रह

गूगल का कमाल कविता :- गूगल को समर्पित एक हिंदी कविता


दोस्तों गूगल के बारे में कौन नहीं जनता ? लोग अपने माँ – बाप का नाम भूल सकते हैं मगर गूगल का नहीं क्यूंकि जो भी हम इंटरनेट पे चलाते हैं वो सब गूगल के ज़रिए ही चलता है। अगर आज कोई ऐप्लिकेशन भी डाउनलोड करता है तो वो गूगल के प्ले स्टोर से ही करता है। इसका अच्छा और बुरा असर समाज पे भी हो रहा है। अगर मैंने आज कहीं जाना हो तो मैं अपने किसी सगे संबंधी से नहीं पूछूंगा कि वो स्थान कहाँ है, मैं गूगल पे खोजूंगा और चला जाऊंगा। अब तो गूगल पे आप बोलकर भी सब कुछ खोज सकते हैं। आपको अपनी उँगलियों को भी कष्ट नहीं देना पड़ेगा बहुत सी महत्त्वपूर्ण जानकारियां गूगल से ही मिल जाती हैं। आपको किसी तरह की किताब की जरूरत नहीं है। गूगल ने बहुत सारे खोजने वाले इंजनों को भी मात दी है और लोगों की बुद्धि को भी। अब कोई कुछ याद नहीं रखना चाहता क्यूंकि गूगल है ना।आइये पढ़ते हैं उसी गूगल को समर्पित गूगल का कमाल कविता :-

गूगल का कमाल कविता

गूगल का कमाल कविता

आज का बच्चा बेमिसाल है ,
सब गूगल का कमाल है ,
अब लिखना भी नहीं पड़ता ,
बोलो जो भी सवाल है ,
सब गूगल का कमाल है
आज का बच्चा बेमिसाल है।

बुद्धि को गूगल ने खाया,
ना इस्तेमाल कोई कर पाया,
सब कुछ गूगल पे ही मिलता,
गूगल ने ये खेल रचाया,
हीरा जितना चमकाओगे,
उतनी ही चमक पाओगे,
बुद्धि को जितना घिसाओगे,
उतने ही तेज़ हो जाओगे,
जो फस गया वो निकल ना सकता,
गूगल भैया का जाल है,
आज का बच्चा बेमिसाल है,
सब गूगल का कमाल है।

इसकी महिमा अपरम्पार,
गूगल पे जो जाए यार,
पैसे का भी लेन देन हो,
गूगल पे से हज़ार बार,
बड़ा मुनाफा होता है,
क्या गूगल से समझौता है,
गूगल ने प्यार दबोचा है,
गूगल रिश्ता इकलौता है,
घर में समय कोई ना देता,
गूगल में व्यस्त हर बाल है,
आज का बच्चा बेमिसाल है,
सब गूगल का कमाल है।

फ़ायदे तो हैं यार अनेक,
इस्तेमाल जो करता देख,
ग़लत हाथ जो इसको लगते,
वहीं प्रवेश करे क्लेश,
यही अनोखी बात है,
ये एक भयंकर आघात है,
सुन यशु जान सौगात है,
चाहे दिन है या रात है,
जानकारी तो अच्छी अच्छी,
गूगल की ही संभाल है,
आज का बच्चा बेमिसाल है,
सब गूगल का कमाल है।

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yashu jaanयशु जान (9 फरवरी 1994-) एक पंजाबी कवि और अंतर्राष्ट्रीय लेखक हैं। वे जालंधर शहर से हैं। उनका पैतृक गाँव चक साहबू अप्प्रा शहर के पास है। उनके पिता जी का नाम रणजीत राम और माता जसविंदर कौर हैं। उन्हें बचपन से ही कला से प्यार है। उनका शौक गीत, कविता और ग़ज़ल गाना है। वे विभिन्न विषयों पर खोज करना पसंद करते हैं।

उनकी कविताएं और रचनाएं बहुत रोचक और अलग होती हैं। उनकी अधिकतर रचनाएं पंजाबी और हिंदी में हैं और पंजाबी और हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय वेबसाइट पर हैं। उनकी एक पुस्तक ‘ उत्तम ग़ज़लें और कविताएं ‘  के नाम से प्रकाशित हो चुकी है। आप जे. आर. डी. एम्. नामक कंपनी में बतौर स्टेट हैड काम कर रहे हैं और एक असाधारण विशेषज्ञ हैं।

उनको अलग बनाता है उनका अजीब शौंक जो है भूत-प्रेत से संबंधित खोजें करना, लोगों को भूत-प्रेतों से बचाना, अदृश्य शक्तियों को खोजना और भी बहुत कुछ। उन्होंने ऐसी ज्ञान साखियों को कविता में पिरोया है जिनके बारे में कभी किसी लेखक ने नहीं सोचा, सूफ़ी फ़क़ीर बाबा शेख़ फ़रीद ( गंजशकर ), राजा जनक,इन महात्माओं के ऊपर उन्होंने कविताएं लिखी हैं।

‘ गूगल का कमाल कविता ‘ के बारे में अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे रचनाकार का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

धन्यवाद।

2 Comments

  1. लोग हमेसा दिल से यही दुवा करते हे की कोइ हो जो खामोसी को समजे पर यार यहो कीसी के पास इतनी फुरसत कहा की वो कीसी को समजे दुनिया की ये केसी जीद हे की सब लोग वही सब लेके चलो जो सब लेके चलते हे रीस्तो का बोज कभी कीसी को ना बनाये अकेला पण कीसे केहते हे लोग क्या कोइ नीद भी साथ मे लेते हे क्या निद के पल पल मे कोइ था क्या आपके साथ नही ना वो आठ गंटे क्या आपने साथ मे थे नही कोइ भी जी सकता हे ये दुनिया मे जाहे अकेला होया कोइ उसके साथ हो

  2. कहानी या तो हजारो लीखते हे लोग मगर क्या कीस लीये इतन रोते हे लोग पता हे हमारे पास नाही दुख आना हे नाही सुख तो फीर कीस बात का रोना पता हे आये हो रोते रोते तो इस दुनिया से जाव तो हस्ते हस्ते दुनिया सारी मेरी हे यहा हर पछी मेरा हे यहा पुरा आसमा मेरा हे पुरा सम्दर मेरा हे यहा बारीस की बुंदे मेरी हे हर कीसी की मुसकुराहट मे हस लेना पता नही अगले पल तुम होया नाहो कब तक खामोस रहोगे जो केहना हे वो आज ही केह लो

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