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सुंदरकांड में हनुमान जी की महिमा बताने वाले 108 दोहे हैं। यहाँ कुछ प्रमुख सुंदरकांड के दोहे अर्थ सहित हिंदी में प्रस्तुत है:

सुंदरकांड के प्रमुख दोहे अर्थ सहित
Sunderkand Ke Dohe
दोहा 11
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच।।11।।
दोहा 12
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब।
जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ।।12।।
दोहा 13
कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास।।
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास।।13।।
दोहा 14
रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।
अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर।।14।।
दोहा 15
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु।।15।।
दोहा 16
सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल।।16।।
दोहा 17
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु।।17।।
दोहा 18
कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि।।18।।
दोहा 19
ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।।19।।
दोहा 20
कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिषाद।।20।।
दोहा 21
जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।
तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि।।21।।
दोहा 22
प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि।।22।।
दोहा 23
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान।।23।।
दोहा 24
कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ।।24।।
दोहा 25
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।।
दोहा 26
पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि।।26।।
दोहा 27
जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह।।27।।
दोहा 28
जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज।
सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज।।28।।
दोहा 29
प्रीति सहित सब भेटे रघुपति करुना पुंज।
पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज।।29।।
दोहा 30
नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।30।।
दोहा 31
निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।
बेगि चलिय प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति।।31।।
दोहा 32
सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत।।32।।
दोहा 33
ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल।
तब प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल।।33।।
दोहा 34
कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ।
नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ।।34।।
दोहा 35
एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर।
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर।।35।।
दोहा 36
राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक।
जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक।।36।।
दोहा 37
सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।।37।।
दोहा 38
काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत।।38।।
दोहा 39
बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस।।39(क)।।
मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात।।39(ख)।।
दोहा 40
तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार।
सीत देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार।।40।।
दोहा 41
रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मै रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि।।41।।
दोहा 42
जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।
ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ।।42।।
दोहा 43
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि।।43।।
दोहा 44
उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।
जय कृपाल कहि चले अंगद हनू समेत।।44।।
दोहा 45
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर।।45।।
दोहा 46
तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।
जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम।।46।।
दोहा 47
अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज।
देखेउँ नयन बिरंचि सिब सेब्य जुगल पद कंज।।47।।
दोहा 48
सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम।।48।।
दोहा 49
रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड।
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेहु राजु अखंड।।49(क)।।
जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्ह रघुनाथ।।49(ख)।।
दोहा 50
प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि।
बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि।।50।।
दोहा 51
सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह।
प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह।।51।।
दोहा 52
कहेहु मुखागर मूढ़ सन मम संदेसु उदार।
सीता देइ मिलेहु न त आवा काल तुम्हार।।52।।
दोहा 53
की भइ भेंट कि फिरि गए श्रवन सुजसु सुनि मोर।
कहसि न रिपु दल तेज बल बहुत चकित चित तोर।।53।।
दोहा 54
द्विबिद मयंद नील नल अंगद गद बिकटासि।
दधिमुख केहरि निसठ सठ जामवंत बलरासि।।54।।
दोहा 55
सहज सूर कपि भालु सब पुनि सिर पर प्रभु राम।
रावन काल कोटि कहु जीति सकहिं संग्राम।।55।।
दोहा 56
बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस।
राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस।।56(क)।।
की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग।
होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग।।56(ख)।।
दोहा 57
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति।।57।।
दोहा 58
काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच।।58।।
दोहा 59
सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ।
जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ।।59।।
दोहा 60
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।।60।।
सुंदरकांड पाठ का महत्व (Sunderkand Path Benefits)
सुंदरकांड पाठ के 10 अद्भुत लाभ (10 Benefits of Sunderkand Path)
- संकटों का नाश (Destroys Problems)
🌟 “जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहिं बंदि महा सुख होई।”
• हनुमान जी भक्तों के सभी संकट (आर्थिक, स्वास्थ्य, मानसिक) दूर करते हैं। - नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा (Protection from Evil)
• भूत-प्रेत, बुरी नजर और वास्तुदोष का प्रभाव कम होता है। - आत्मविश्वास बढ़ाए (Boosts Confidence)
• हनुमान जी का साहस भक्तों में निडरता भरता है (विशेषकर छात्रों/नौकरीपेशा लोगों के लिए)। - मानसिक शांति (Mental Peace)
🧘♂️ “सुंदरकांड का पाठ अशांत मन को शीतलता देता है।” – रामचरितमानस - शत्रुओं पर विजय (Victory Over Enemies)
• किसी भी विवाद/कानूनी केस में शीघ्र सफलता मिलती है। - रोगों से मुक्ति (Health Benefits)
• नियमित पाठ से मधुमेह, हृदय रोग और तनावजनित बीमारियाँ घटती हैं। - धन प्राप्ति (Financial Growth)
💰 “सुंदरकांड + हनुमान चालीसा का संयोजन धनवृद्धि में सहायक।” - पारिवारिक सद्भाव (Family Harmony)
• पति-पत्नी या पारिवारिक झगड़े शांत होते हैं। - कार्यसिद्धि (Success in Endeavors)
• नौकरी, बिज़नेस या विदेश यात्रा में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं। - मोक्ष की प्राप्ति (Spiritual Liberation)
• मृत्यु के बाद आत्मा को श्रीराम के धाम की प्राप्ति होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
उत्तर:
• शुभ समय: मंगलवार या शनिवार सुबह ब्रह्म मुहूर्त (4-6 बजे)।
• विशेष अवसर: हनुमान जयंती, रामनवमी, या संकटमोचन एकादशी।
उत्तर:
• न्यूनतम: 1 बार (पूर्ण फल के लिए 11, 21, या 108 बार)।
• संकटकाल: 40 दिन लगातार पाठ (चालीसा के साथ)।
उत्तर:
• हाँ! कोई प्रतिबंध नहीं। हनुमान जी सभी भक्तों पर समान कृपा करते हैं।
• मिथक भ्रम: मासिक धर्म के दौरान पाठ वर्जित होना एक अंधविश्वास है।
उत्तर:
• शुद्धता: स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनें।
• आसन: कुशा/ऊनी आसान पर बैठें।
• मनोभाव: श्रद्धा और एकाग्रता सबसे महत्वपूर्ण है।
उत्तर:
• तुरंत: मानसिक शांति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
• दीर्घकालिक: 21-40 दिनों में संकटों का नाश होना शुरू।
• भक्ति पर निर्भर: “जैसी प्रीति मकरी के, वैसी होय न कोय” – तुलसीदास जी।
निष्कर्ष
सुंदरकांड के दोहे भक्ति और साहस का अद्भुत संगम हैं। इन्हें अर्थ समझकर पढ़ने से आध्यात्मिक लाभ बढ़ता है।
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पढ़िए प्रभु राम और हनुमान जी को समर्पित यह रचनाएं :-
- सम्पूर्ण हनुमान चालीसा पाठ हिंदी में pdf download
- हनुमान चालीसा की रचना और इतिहास
- राम नाम की महिमा | राम सेतु निर्माण की रामायण की कहानी
- भगवान राम पर तुलसीदास जी के दोहे अर्थ सहित
- श्री राम भगवान पर शायरी | राम के नाम की प्रभु भक्ति शायरी
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धन्यवाद।
1 comment
Thanks for a good and rare collection