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मौत के दोहे – मौत एक शाश्वत सत्य है। जो इस जग में आया है उसे एक दिन जरूर जाना है। एक साधारण व्यक्ति मृत्यु को बस मृत्यु के ही रूप में देखता है लेकिन एक महान व्यक्ति मृत्यु को किन रूपों मे देखता है आइए जानते हैं इन मृत्यु पर दोहों में :-
मौत के दोहे
रैदास जन्मे कउ हरस का, मरने कउ का सोक।
बाजीगर के खेल कूं, समझत नाहीं लोक।।
– संत रविदास
अर्थ :- संत रैदास जी कहते हैं कि जन्म के समय कैसा हर्ष और मृत्यु पर कैसा दुःख! यह सब तो ईश्वर की लीला है। संसार इसे नहीं समझ पाता। जिस प्रकार लोग बाज़ीगर के तमाशे को देखकर हर्षित और दुःखी होते हैं, उसी प्रकार ईश्वर भी संसार में जन्म−मृत्यु की लीला दिखाता है। अतः ईश्वर द्वारा की जाने वाली इस लीला पर हर्षित अथवा दुःखी नहीं होना चाहिए।
सदा नगारा कूच का, बाजत आठों जाम।
रहिमन या जग आइ कै, को करि रहा मुकाम।।
– रहीम
अर्थ :- आठों पहर कूच करने का ( जाने का ) नगाड़ा बजता रहता है। यानी हर वक़्त मृत्यु सक्रिय है, कोई न कोई मर ही रहा है। यही सत्य है। रहीं कहते हैं कि इस नश्वर जगत में आने के बाद कौन अमर हुआ है।
मरनु भलौ बरु बिरह तैं, यह निहचय करि जोइ।
मरन मिटै दुखु एक कौ, बिरह दुहूँ दुखु होइ।।
– बिहारी
अर्थ :- एक सखी नायिका से कह रही है कि किसी पड़ौसिन ने मृत्यु को विरह से श्रेष्ठ समझकर मरने का निश्चय कर लिया है। वास्तव में उसने ठीक ही किया है, क्योंकि विरह के ताप में धीरे-धीरे जलते हुए मरने से एक साथ मरना कहीं अधिक श्रेयस्कर है। कारण यह भी है कि मरने से केवल प्रिय को दुख होगा, किंतु प्रिया विरह के दुख से सदैव के लिए मुक्त हो जाएगी। विरह में तो प्रेमी और प्रिय दोनों को दुख होता है, किंतु मृत्यु में केवल प्रेमी को दुख होगा।
गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल ख़ुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस।।
– खुसरो
अर्थ :- ख़ुसरो जी कहते हैं कि आत्मा रूपी गोरी सेज पर सो रही है, उसने अपने मुख पर केश डाल लिए हैं, अर्थात वह दिखाई नहीं दे रही है। तब ख़ुसरो ने मन में निश्चय किया कि अब चारों ओर अँधेरा हो गया है, रात्रि की व्याप्ति दिखाई दे रही है। अतः उसे भी अपने घर अर्थात परमात्मा के घर चलना चाहिए।
गोरी सोवै सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल ख़ुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस।।
– खुसरो
अर्थ :- ख़ुसरो जी कहते हैं कि आत्मा रूपी गोरी सेज पर सो रही है, उसने अपने मुख पर केश डाल लिए हैं, अर्थात वह दिखाई नहीं दे रही है। तब ख़ुसरो ने मन में निश्चय किया कि अब चारों ओर अँधेरा हो गया है, रात्रि की व्याप्ति दिखाई दे रही है। अतः उसे भी अपने घर अर्थात परमात्मा के घर चलना चाहिए।
मृत्यु पर कबीर के दोहे
माली आवत देखि के, कलियाँ करैं पुकार।
फूली-फूली चुनि गई, कालि हमारी बार।।
कबीर
अर्थ :- मृत्यु रूपी माली को आता देखकर अल्पवय जीव कहता है कि जो पुष्पित थे अर्थात् पूर्ण विकसित हो चुके थे, उन्हें काल चुन ले गया। कल हमारी भी बारी आ जाएगी। अन्य पुष्पों की तरह मुझे भी काल कवलित होना पड़ेगा।
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ।।
कबीर
अर्थ :– काल की चक्की चलते देख कर कबीर को रुलाई आ जाती है। आकाश और धरती के दो पाटों के बीच कोई भी सुरक्षित नहीं बचा है।
जिस मरनै थै जग डरै, सो मेरे आनंद।
कब मरिहूँ कब देखिहूँ, पूरन परमानंद।
– कबीर
अर्थ :- जिस मरण से संसार डरता है, वह मेरे लिए आनंद है। कब मरूँगा और कब पूर्ण परमानंद स्वरूप ईश्वर का दर्शन करूँगा। देह त्याग के बाद ही ईश्वर का साक्षात्कार होगा। घट का अंतराल हट जाएगा तो अंशी में अंश मिल जाएगा।
सब जग सूता नींद भरि, संत न आवै नींद।
काल खड़ा सिर ऊपरै, ज्यौं तौरणि आया बींद।।
– कबीर
अर्थ :- सारा संसार नींद में सो रहा है किंतु संत लोग जागृत हैं। उन्हें काल का भी नहीं है, यद्यपि सिर के ऊपर खड़ा है किंतु संत को हर्ष है कि तोरण में दूल्हा खड़ा है। उन्हें काल का भय नहीं है, काल यद्यपि सिर के ऊपर खड़ा है किंतु संत को हर्ष है कि तोरण में दूल्हा खड़ा है। वह शीघ्र जीवात्मा रूपी दुल्हन को उसके असली घर लेकर जाएगा।
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