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ये कविता ” टूटता वादा ” हमें प्रीती शर्मा ने अमृतसर के जंडियाला गुरु इलाके से भेजी है। जोकि इस समय अंग्रेजी विभाग में अध्यापन का कार्य कर रही हैं। इस कविता में समाज के दो पहलु दिखाए गए हैं।
यह दिखाया गया है कि किस तरह एक औरत जब अपने सपने संजोती है तो उसके अपने चाहने वाले उसे प्रेरित करते हैं। लेकिन जब वो सपनों को साकार करने के लिए आगे बढती है और समाज उस पर कोई गलत आरोप लगा देता है तो उसे प्रेरित करने वाले भी उसी समाज का एक हिस्सा बन जाते हैं और उस औरत को गलत कहने लगते हैं। इसलिए ये कविता दो हिस्सों में लिखी गयी है।
टूटता वादा
(पहला भाग जहाँ उस औरत को प्रेरित किया जाता है)
चल चल तू बढ़ती चल तू ,
सतरंगी ख्वाबों के संग
साहस उम्मीदें हसीं को लेकर
चल चल तू उड़ती चल तू ,
सीखने को है बहुत कुछ अभी
अम्बर को अपना करना है,
ख्वाबों की तश्करी संग
रंग निराला भरना है।
किया जो वादा खुद से तुमने
खुद को पहचान दिलाने का,
कल्पना चावला, किरण बेदी,
डॉ. राधा कृष्णन जैसा मुकाम पाने का ,
इस वादे को पूरा करने,
चल चल तू बढ़ती चल तू
चल चल तू उड़ती चल तू।
इस वादे को पूरा करने
वो पहुंची एक अनोखी नगरी
भांति-भांति के फूल लगे थे
और हरे-भरे वृक्ष और पौधे,
हर्षोल्लास से लगी वो भरने
रंग नए इस उपवन में
दीन ईमान और सच्चाई ही
भरी थी बस उसके मन में।
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(दुसरा भाग जब उसके सपने टूट कर चकनाचूर हो जाते हैं और वो अकेली रह जाती है।)
क्या पता था पतझड़ आएगी
और अपना कहर वो ढाएगी
किया वार अहम् के खंजर से
छीन पहचान ये कैसा किया काम रे
आग से उज्जवल पंछी को
दिया कीच का नाम रे।
उड़ते हँसते पंछी को
डाला आरोपों के जाल में
न है कोई सुनने वाला
न कोई पूछे है किस हाल में,
हालत थी ये आज सितम की
भूल गए थे बात अमृता प्रीतम की
रो रही थी बेटी आज
वारिश शाह के पंजाब की
भूल गयी थी वादा अब वो
फिकर थी तो बस आरोपों के जाल की
टूट गए सपने सारे अब
रही न कोई आस
समाज की जंजीरों से
अधूरी रह गयी सफलता की प्यास।
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धन्यवाद्।
11 comments
सर्वश्रेष्ठ आदरणीय
दोहरी मानसिकता की परिचायक आपकी कविता दिल मे उतर गई।
Nyc and absolute ryt line ….. I am so happy …
Thanku akshay ji.
True story of typical indian society . Every person hv equal rights but our society always snatch womens rights but this is not universal truth but common problem in our typical society. Well done preeti ji
Right and hope this will end in future .thanku Girish ji
Right society diplomatic hai gud attempt. Mam
Thanku ruhi ji
Jo eda kre ladies nal kuto ohnu
I think my pen is powerful weapon to beat them thanku for liking my poem vinod ji
Nyc and true preety g
Thanku ankush ji