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टूटता वादा – एक ही समाज के दो पहलुओं को दिखाती कविता

by Sandeep Kumar Singh
2 minutes read

ये कविता ” टूटता वादा ” हमें प्रीती शर्मा ने अमृतसर के जंडियाला गुरु इलाके से भेजी है। जोकि इस समय अंग्रेजी विभाग में अध्यापन का कार्य कर रही हैं। इस कविता में समाज के दो पहलु दिखाए गए हैं।

यह दिखाया गया है कि किस तरह एक औरत जब अपने सपने संजोती है तो उसके अपने चाहने वाले उसे प्रेरित करते हैं। लेकिन जब वो सपनों को साकार करने के लिए आगे बढती है और समाज उस पर कोई गलत आरोप लगा देता है तो उसे प्रेरित करने वाले भी उसी समाज का एक हिस्सा बन जाते हैं और उस औरत को गलत कहने लगते हैं। इसलिए ये कविता दो हिस्सों में लिखी गयी है।

टूटता वादा

(पहला भाग जहाँ उस औरत को प्रेरित किया जाता है)

चल चल तू बढ़ती चल तू ,
सतरंगी ख्वाबों के संग
साहस उम्मीदें हसीं को लेकर
चल चल तू उड़ती चल तू ,
सीखने को है बहुत कुछ अभी
अम्बर को अपना करना है,
ख्वाबों की तश्करी संग
रंग निराला भरना है।

किया जो वादा खुद से तुमने
खुद को पहचान दिलाने का,
कल्पना चावला, किरण बेदी,
डॉ. राधा कृष्णन जैसा मुकाम पाने का ,
इस वादे को पूरा करने,
चल चल तू बढ़ती चल तू
चल चल तू उड़ती चल तू।

इस वादे को पूरा करने
वो पहुंची एक अनोखी नगरी
भांति-भांति के फूल लगे थे
और हरे-भरे वृक्ष और पौधे,
हर्षोल्लास से लगी वो भरने
रंग नए इस उपवन में
दीन ईमान और सच्चाई ही
भरी थी बस उसके मन में।

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(दुसरा भाग जब उसके सपने टूट कर चकनाचूर हो जाते हैं और वो अकेली रह जाती है।)

टूटता वादा - एक ही समाज के दो पहलुओं को दिखाती कविता

क्या पता था पतझड़ आएगी
और अपना कहर वो ढाएगी
किया वार अहम् के खंजर से
छीन पहचान ये कैसा किया काम रे
आग से उज्जवल पंछी को
दिया कीच का नाम रे।

उड़ते हँसते पंछी को
डाला आरोपों के जाल में
न है कोई सुनने वाला
न कोई पूछे है किस हाल में,
हालत थी ये आज सितम की
भूल गए थे बात अमृता प्रीतम की

रो रही थी बेटी आज
वारिश शाह के पंजाब की
भूल गयी थी वादा अब वो
फिकर थी तो बस आरोपों के जाल की
टूट गए सपने सारे अब
रही न कोई आस
समाज की जंजीरों से
अधूरी रह गयी सफलता की प्यास।

पढ़ें उदास जिंदगी की कविता :- ढल चुका है सूरज हो चली है शाम धीरे-धीरे।

आपको ये कविता कैसी लगी हमें जरूर बताएं…! अगर आप भी ऐसी बेहतरीन कविताये लिख सकते है तो email – blogapratim@gmail.com पर या हमें Facebook Page पर संपर्क करे!

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धन्यवाद्।

आपके लिए खास:

11 comments

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मिंकू मुकेश सिंह अगस्त 3, 2017 - 4:19 अपराह्न

सर्वश्रेष्ठ आदरणीय

दोहरी मानसिकता की परिचायक आपकी कविता दिल मे उतर गई।

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Akshay sharma नवम्बर 27, 2016 - 10:28 अपराह्न

Nyc and absolute ryt line ….. I am so happy …

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Preety नवम्बर 28, 2016 - 3:58 अपराह्न

Thanku akshay ji.

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Girish नवम्बर 20, 2016 - 10:01 अपराह्न

True story of typical indian society . Every person hv equal rights but our society always snatch womens rights but this is not universal truth but common problem in our typical society. Well done preeti ji

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Preety नवम्बर 20, 2016 - 10:21 अपराह्न

Right and hope this will end in future .thanku Girish ji

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Ruhi नवम्बर 20, 2016 - 9:43 अपराह्न

Right society diplomatic hai gud attempt. Mam

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Preety नवम्बर 20, 2016 - 10:13 अपराह्न

Thanku ruhi ji

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Vinod नवम्बर 20, 2016 - 9:42 अपराह्न

Jo eda kre ladies nal kuto ohnu

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Preety नवम्बर 20, 2016 - 10:15 अपराह्न

I think my pen is powerful weapon to beat them thanku for liking my poem vinod ji

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Ankush नवम्बर 16, 2016 - 11:43 पूर्वाह्न

Nyc and true preety g

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Preety नवम्बर 20, 2016 - 10:14 अपराह्न

Thanku ankush ji

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