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नौकरी पर कविता :- बेवफा नौकरी | Naukri Par Hasya Kavita

by Sandeep Kumar Singh
1 minutes read

प्राइवेट नौकरी करने वाले ही इस कविता में लिखी भावनाओं को समझ सकते हैं। कुछ या यूँ कहें ज्यादातर प्राइवेट संस्थानों में आजकल बेरोजगारी की बढ़ती संख्या का फायदा उठा कर कम तनख्वाह पर लोगो  को रखा जाता है और अच्छी तरह उनका शोषण किया जाता है।  ऐसा हर जगह नहीं होता लेकिन यदि आप को लगता है इस कविता में सच्चाई है तो अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। आइये पढ़ते हैं नौकरी पर कविता “बेवफा नौकरी” :-

नौकरी पर कविता

नौकरी पर कविता

कभी मैंने उसको छोड़ा
कभी वो मुझको छोड़ गयी,
बड़ी बेवफा निकली नौकरी
है मेरा दिल तोड़ गयी।

उसे बचाने के चक्कर में
सुने बॉस के ताने,
ओवरटाइम लगाया फिर भी
अहसान कहाँ वो माने,
खाली मुझको कर के मेरा
सारा टैलेंट निचोड़ गयी
बड़ी बेवफा निकली नौकरी
हाय मेरा दिल तोड़ गयी।

सारे रिश्ते दरकिनार कर
उसकी सेवा में जुटे रहे
शोषण किया हमारा उसने
हम घर खर्चों में लुटे रहे,
जुल्म नहीं जब हम सह पाए
वो अपना मुख मोड़ गयी
बड़ी बेवफा निकली नौकरी
हाय मेरा दिल तोड़ गयी।

संग बॉस के मिलकर उसने
छीना मेरा सुकून
काट-काट कर सैलरी
बताती रही कानून
मांगा अपना हक जब हमने
अपने हाथ वो जोड़ गयी,
बड़ी बेवफा निकली नौकरी
हाय मेरा दिल तोड़ गयी।

इस कविता का विडियो देखने के लिए नीचे क्लिक करें :-

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धन्यवाद।

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