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आप पढ़ रहे हैं ” कर्मयोगी चिड़िया पर कविता ” :-
कर्मयोगी चिड़िया पर कविता
जानती है चिड़िया
यह कि
उड़ जाएँगे बच्चे
आने पर पंख
और ऐसे में
नहीं रहेगा उनसे
आगे को
कोई भी सम्बन्ध,
लेकिन
लुटा रही है चिड़िया
अपनी ममता
नन्हे – नन्हे बच्चों पर
बिना किसी स्वार्थ के
जैसे लुटाता है फूल
सबको
अपनी गंध।
तिनका – तिनका
चुनकर वह
बनाती है घोंसला
सेती है अण्डे
निकलने पर बच्चे
लाती है दिन भर
भर – भरकर
चोंच में दाना,
हो जाती है
निहाल वह
देख – देख
बच्चों की सूरत
उनके
लालन-पालन में ही
चिड़िया ने
सच्चे सुख को
है पहचाना।
पूरी तरह
निर्भर हैं बच्चे
चिड़िया पर
जोहते हैं वे बाट
चिड़िया के आने की
अपनी कच्ची चोंचे खोले,
चिड़िया की दुनिया भी तो
सिमट जाती है
अपने बच्चों में
हृदय का
सारा संचित प्रेम वह
बच्चों पर
जाती है उँडेले।
चिड़िया
नहीं रखती
अपने बच्चों से
किसी भी प्रकार के
प्रत्युपकार की भावना,
करती है वह
अपना निर्धारित काम
निभाती है दायित्व
और
जानती है
गीता के
निष्काम कर्मयोग को
जीवन में साधना।
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