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श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोSस्त्वकर्मणि ।। अर्थात कर्तव्यकर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफलका हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो। बस इसी बात को हमने कविता के माध्यम से यही बताने का प्रयास किया। कैसे? आइये जानते हैं इस कविता ‘ कर्म ही जीवन है ‘ में :-
कर्म ही जीवन है
नियत में रख मेहनत अपनी
होठों पर रख मुस्कान,
बिन स्वार्थ कर्म तू करता जा
तुझे फल देंगे भगवान।
मत पड़ना कमजोर कभी तू
हालात कभी जो बिगड़ते जाएँ
ज्ञान यही कहता है कि
मुश्किलों से हम लड़ते जाएँ,
संघर्ष का नाम ही जीवन है
यहाँ होता न कुछ आसान
बिन स्वार्थ कर्म तू करता जा
तुझे फल देंगे भगवान।
न हार अंत है जीवन का
तू करता रह प्रयास
ये जग होगा तेरा एक दिन
तू मन में रख विश्वास,
बार-बार टकरा कर लहरें
सागर की तोड़े चट्टान
बिन स्वार्थ कर्म तू करता जा
तुझे फल देंगे भगवान।
नित खोज में भोजन की चिड़िया
घर छोड़ के अपना जाती है
कभी लेकर आती दाना-पानी
कभी खली हाथ ही आती है,
फिर भी रोज नई आशा से
भारती है एक उड़ान
बिन स्वार्थ कर्म तू करता जा
तुझे फल देंगे भगवान।
न अहंकार मन में आये
तू दीन का देना साथ
गिरने मत देना कभी किसी को
तू थाम के रखना हाथ,
उसकी इस धरा पर होते
सब हैं एक सामान
बिन स्वार्थ कर्म तू करता जा
तुझे फल देंगे भगवान।
इस जग में जो भी आया है
एक दिन उसको जाना होगा
उससे पहले लक्ष्य को अपने
तुझको तो पाना होगा,
जीवन को सफल है जिसने किया
वही है सच्चा इन्सान
बिन स्वार्थ कर्म तू करता जा
तुझे फल देंगे भगवान।
‘ कर्म ही जीवन है ‘कविता के बारे में अपने बहुमूल्य विचार हम तक अवश्य पहुंचाएं।
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धन्यवाद।
3 comments
Hello sir, very nice. My daughter has to recite a poem on "karm hi jeevan hai" topic at her school. Do I have your permission? She is in Class 2.
बहुत ही प्रेरणादायी कविता ।
Karm ka mahatva ek Kavita