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फरवरी महीने का इतिहास | फरवरी, साल का इकलौता ऐसा महीना जिसमें होते हैं सबसे कम 28 दिन। हाँ हर चौथे साल 29 फरवरी भी आती है। लेकिन कभी सोचा है क्यों होते हैं फरवरी में सिर्फ 28 या 29 दिन? हो सकता है आप में से कई लोगों ने सोचा भी हो। हमने भी यही सोचा और ढूंढ लाये इसका जवाब। तो आइये जानते हैं क्यों होते हैं फरवरी में 28 दिन, फरवरी महीने का इतिहास में :-
फरवरी महीने का इतिहास
फरवरी महीना
फरवरी साल का दूसरा और सबसे छोटा महीना होता है। यह एक मात्र महीना है जो बिना अमावस या पूर्णिमा के भी निकल सकता है। फरवरी का महीना जिसमें पूर्णिमा नहीं थी, वर्ष 2018 में बीता है और अगली बार ऐसा अवसर वर्ष 2037 में आएगा। वहीं बिना अमावस के फरवरी का महीना वर्ष 2014 में बीता था और अब अगली बिना अमावस के फरवरी वर्ष 2033 में आएगी।
यह एकमात्र ऐसा महीना है जो हर छह साल में एक बार और हर 11 साल में दो बार, या तो अतीत में वापस जाता है या भविष्य में आगे जाता है, जिसमें 7 दिनों के पूरे चार सप्ताह होते हैं।
फरवरी का नामकरण
फरवरी शब्द की उत्पत्ति रोमन महीने के फेब्रुअरिअस ( Februarius ) नाम से हुई है। रोमन महीना फेब्रुअरिअस ( Februarius ) लातिन भाषा के शब्द फेब्रुम (Februm) से बना है, जिसका अर्थ है शुद्धि।
कैसे हुआ फरवरी का जन्म
बहुत पुरानी बात है उस समय जनवरी और फरवरी नाम के महीनों का कोई अस्तित्व नहीं था। क्योंकि रोमन के लोग शीत ऋतू को महीनों में नहीं गिनते थे। ये महीने तो रोमन शासक नूमा पोम्पिलिअस (Numa Pompilius) ने 713 ई.पू. ग्रेगोरियन कैलंडर में जोड़े। उस समय एक साल में 354 दिन होते थे। रोमन में साम्राज्य में सम संख्या को अशुभ माना जाता था। इसलिए नूमा पोम्पिलिअस (Numa Pompilius) ने वर्ष में एक दिन बढ़ा कर विषम यानि कि 355 दिन कर दिए। परन्तु यह बात राज ही रह गयी कि फरवरी माह को सम संख्या ( 28 दिनों ) के साथ क्यों छोड़ दिया गया। यह कारन इस तथ्य से संबंधित हो सकता है कि रोमन फरवरी में मृतकों का सम्मान और शुद्धि के संस्कार करते थे।
कितने दिन थे पहली फरवरी में
मजे कि बात यह थी कि नूमा पोम्पिलिअस (Numa Pompilius) के शासन में फरवरी में 23 या 24 दिन हुआ करते थे। अधिवर्ष (Leap Year) में फरवरी महीना 27 दिनों का कर दिया जाता था। और आज की तरह 4 साल बाद नहीं बल्कि 2 साल बाद ही आता था। इतना ही नहीं राज्य में काम करने वाले कर्मचारी इसे अपनी सहूलियत के हिसाब से आगे पीछे भी कर लेते थे।
कब मिला फरवरी को दूसरे महीने का स्थान
फरवरी महीना उस समय से लेकर 450 ई.पू. तक साल का आखिरी महीना हुआ करता था। यह बदलाव रोमन साम्राज्य के 10 लोगों की समिति ने किया। उन्होंने ने फरवरी को दूसरा महीना घोषित किया। तब से लेकर आज तक यह अंग्रेजी वर्ष का (ग्रेगोरियन कैलेंडर का) दूसरा महीना ही होता है।
जूलियन कैलेंडर में फरवरी
साल में दिनों के कम ज्यादा होने के कारन सारे आयोजन अपने समय से पहले या बाद में आते थे। इसलिए इसके बाद जूलियस सीजर द्वारा प्रस्तावित जूलियन कैलेंडर प्रचलन में आया। जो 46 ई.पू. में रोमन कैलंडर को सुधार कर बनाया गया था। इसमें 365 दिन एक साल में रखे गए। हर चौथा साल अधिवर्ष (Leap year) मतलब 366 दिन का होता था।
यही से शुरू हुआ था फरवरी में 28 दिनों का होना और अधिवर्ष (Leap year) में 29 दिनों का होना।
ग्रेगोरियन कैलंडर
ग्रेगोरियन कैलंडर पोप ग्रेगोरी तेरहवें ने अक्टूबर 1582 में शुरू किया। यह कैलेंडर जूलियन कैलेंडर जैसा ही था। इसमें फर्क बस इतना था कि 100 से भाग होने वाले वर्ष , जैसे कि 1700, 1800, 1900 और 2000 यदि 400 से भाग होते हैं तो उन्हें अधिवर्ष (Leap Year) की तरह गिना जायेगा। इनमें से 1700, 1800 और 1900 400 से भाग नहीं होते इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर में ये अधिवर्ष (Leap Year) नहीं माने जाते। जबकि जूलियन कैलेंडर में हर चौथा वर्ष अधिवर्ष (Leap Year) होता है।
जूलियन कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर के इसी अंतर के कारन इन दोनों में 13 दिन का अंतर आ चुका है। वर्ष 2100 में 1 दिन का और अंतर बढ़ जायेगा।
क्या है अधिवर्ष (Leap Year) का वैज्ञानिक कारन
धरती सूरज का एक चक्कर 365 दिन और 6 घंटे में लगाती है। 365 दिनों को अलग किया जाए तो 6 घंटे बचते हैं। इन्हीं 6 घंटों को 4 साल तक इकठ्ठा करने के बाद बनते हैं 24 घंटे। 24 घंटे में होता है पूरा एक दिन। यही एक दिन हर चौथे साल फरवरी के महीने में जोड़ दिया जाता है। इस तरह बनता है 29 फरवरी वाला अधिवर्ष (Leap Year) ।
तो यह था फरवरी महीने का इतिहास और फरवरी महीने की यथासंभव एकत्रित की गयी जानकारी। फरवरी महीने का इतिहास में इतनी जानकारी के अतिरिक्त यदि आप कुछ जानना चाहें तो कमेंट बॉक्स में जाकर जरूर लिखें।
धन्यवाद।