Home » Apratim Post » गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी | Shri Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी | Shri Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi

by Sandeep Kumar Singh
9 minutes read

( Shri Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi ) गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी – ” हिन्द की चादर, गुरु तेग बहादुर ” जी ने धर्म की रक्षा करने के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। सिख धर्म में गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी के बाद जब गुरु तेग बहादुर जी ने शहीदी प्राप्त की तो जालिम मुगलों के जुल्मों तले रह रहे लोग अपने अधिकारों के लिए उनसे टक्कर लेने और कुर्बानियां देने के लिए तैयार हो गए। आइये जानते हैं उन्हीं महान शख्सियत गुरु तेग बहादुर जी के बारे में ( गुरु तेग बहादुर जी इनफार्मेशन इन हिंदी ) गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी में :-

Shri Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi
गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी

गुरु तेग बहादुर जीवनी

जन्म और बचपन

गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल, 1621 ई0 को अमृतसर में श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी और माता नानकी जी के घर हुआ। आपके बचपन का नाम त्यागमल था। आप गुरु हरगोबिंद साहिब जी के सब से छोटे सुपुत्र थे। गुरु तेग बहादुर जी बचपन से ही संत स्वरुप, अडोल चित, गंभीर और निर्भय स्वभाव के मालिक थे। आप कई-कई घंटे भक्ति में लीन रहते थे। गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अपनी देख-रेख में आपको विद्या दिलवाई। 1634 ई0 में आप अपने पिता के साथ करतारपुर आ गए।

यहाँ अपने पिता के साथ मिल कर करतारपुर के युद्ध में अपनी तलवार के खूब जौहर दिखाए। आपकी तेग ( तलवार ) की बहादुरी देख आपके पिता जी ने आपका नाम त्याग मल से तेग बहादुर रख दिया।

विवाह और भक्ति

आप का विवाह करतारपुर निवासी श्री लाल चंद की सुपुत्री माता गुजर कौर के साथ 1634 ई. में हुआ। आप एकांत में रह कर परमात्मा का नाम जपते रहते थे। गुरु हरगोबिन्द जी के ज्योति जोत समाने के बाद आप गाँव बाबा बकाला में आ गए और वहीं 20 साल तक बैठ आकर सिमरन करते रहे।

गुरुगद्दी संभालना

सिखों के आठवें गुरु ‘ गुरु हरि कृष्ण ‘ जी के ज्योति ज्योत समा जाने से पहले वो सब भक्तों को ‘ बाबा बकाला ‘ कह कर आप को गुरुगद्दी सौंप गए थे। जिस समय गुरु हरि कृष्ण जी ने बाबा बकाला की तरफ इशारा किया, तब कई पाखंडी अपने आप को गुरुगद्दी का मालिक बताने लगे। इस तरह वहां 22 ढोंगी गुरु बन बैठे। इनमें से धीरमल प्रसिद्द था।

एक साल के बाद मक्खन शाह लुबाना, जो कि गुरु से प्रेम करने वाला एक व्यापारी था। एक दिन उनका सामान से भरा हुआ जहाज आंधी और तूफान की चपेट में आ गया। यह सब देख उन्होंने प्रार्थना की कि अगर उनका जहाज किनारे तक पहुँच जायेगा तो वह गुरु नानक देव जी की गद्दी पर विराजमान सतगुरु के पास 500 मोहरें भेंट स्वरुप चढ़ाएंगे। सतगुरु की कृपा से जहाज ठीक-ठाक ठिकाने पर पहुँच गया।

किये गए वादे के अनुसार मक्खन शाह लुबाना मोहरें भेंट करने पंजाब आये। भक्तों के बताने पर वे बाबा बकाला साहिब गये। परन्तु वहां 22 गुरुओं को बैठे देख कर वे असमंजस में पड़ गए। फिर उन्होंने सोचा कि गुरु तो अंतर्यामी हैं, अपने आप बता देंगे। उन्होंने हर एक के आगे 2 मोहरें रख कर शीश झुकाया। जिसे पाकर सब ढोंगी खुश हो गए। पर मक्खन शाह जी के दिल को चैन न मिला क्योंकि उन्होंने वादा तो 500 मोहरें देने का किया था।

जब उन्हें उनमें से कोई भी सच्चा गुरु न मिला तो उन्होंने भक्तों से पूछा क्या यहाँ और भी कोई गुरु रहता है? तब किसी के बताने पर वे एकांत में बैठे गुरु तेग बहादुर जी के पास गए और जहाँ उन्हें माता गुजर कौर जी ने गुरु जी से न मिलने दिया। मक्खन शाह उस समय माता गुजर कौर को गुरु की दुहाई देने लगे जिसे सुन कर माता गुजर कौर ने उन्हें गुरु जी से मिलने दिया।

पहले अपनाये गए ढंग के अनुसार यहाँ भी मक्खन शाह ने दो ही मोहरें भेंट की। जिसे देख गुरु जी ने कहा,”गुरु की अमानत दे ही दी जाए तो भला है। ये दो मोहरें! क्यों बाकी अमानत कहाँ है?” यह सुन मक्खन शाह लुबाना ने 500 मोहरें भेंट कर कोठे पर चढ़ गये और ऊँची-ऊँची आवाज में कपड़ा हिला कर बोलने लगे,”गुरु लाधो रे, गुरु लाधो रे।” जिसका अर्थ है – सच्चा गुरु मिल गया, सच्चा गुरु मिल गया। इस तरह सभी लोगों को पता चल गया कि गुरु तेग बहादुर जी ही नौवें गुरु हैं और आप 44 साल की उम्र में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।

जब इस बात की खबर सबको हो गयी तब ढोंगियों की दुकाने बंद हो गयी। सबसे ज्यादा दुःख तो धीरमल को हुआ। इस बात से आहत धीरमल अपने साथियों के साथ गुरु तेग बहादुर जी को मारने निकल पड़ा। उसने शीहे मसंद से गुरु जी पर गोली चलवाई जिस से गुरु जी जख्मी हो गए लेकिन हिले नहीं। धीरमल ने सारी चढ़ाई गयीं भेंट लूट ली और सारा सामान लेकर वहां से चल दिया।

इस बात का पता जब मक्खन शाह लुबाना को हुआ तब गुरु जी के हुए निरादर का बदला लेने के लिए अपने साथियों के साथ धीरमल और उसके साथियों को लूट कर ले गए सामान सहित पकड़ कर वापस ले आये। परन्तु गुरु तेग बहादुर जी ने धीरमल को माफ़ कर दिया और सारे सामान के साथ वापस भेज दिया।

गुरुद्वारा थड़ा साहिब का इतिहास

सन 1665 ई. में गुरु जी मक्खन शाह जी को लेकर बाबा बकाला से अमृतसर श्री हरिमंदिर साहिब के दर्शन के लिए आये। वहां रहने वाले पुजारियों को लगा कि गुरु जी के आने से उनकी रोजी-रोटी बंद हो जाएगी। इस विचार के साथ उन्होंने हरिमंदिर साहिब के दरवाजे बंद कर दिए और वहां से चले गए। गुरु जी बाहर थड़े ( चबूतरे ) पर बैठ कर उनके वापस आने का इन्तजार करते रहे। जहाँ पर आज गुरुद्वारा थड़ा साहिब है।

काफी समय इंतजार करने के बाद जब पुजारी भी न आये तो आप बाहर से ही नमस्कार कर वल्ला की तरफ चले गए। गाँव वल्ला के लोगों ने आपकी बहुत सेवा की। वहां से होते हुए आप बाबा बकाला आ गये और फिर करतारपुर के रास्ते कीरतपुर पहुँच गए।

आनंदपुर साहिब की स्थापना

कीरतपुर पहुँच कर गुरु तेग बहादुर जी ने 2200 रुपये देकर वहां से कुछ दूर माखोवाल गाँव की जमीन कहलूर के राजा दीप चंद से खरीद ली। जो कि सतलुज नदी के पास ही स्थित है।

(राजा दीप चंद के बाबा राजा तारा चंद को दाता बंदी छोड़ श्री गुरु हर गोबिंद साहिब जी ने ग्वालियर के किले में जहाँगीर की कैद से रिहा करवाया था। रिहा करवाए गए 52 राजाओं में से वे एक थे।)

खरीदी गयी जमीन पर 16 जून 1665 ई. में ‘चक नानकी’ नाम का गाँव बसाया गया। बाद में इसका नाम बदल कर आनंदपुर साहिब रख दिया गया। 6 महीने के अन्दर यह स्थान सिख धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। इसके बाद गुरु तेगबहादुर जी को यह जगह छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।

सिख धर्म का प्रचार

जिसके बाद मालवा और बांगर में आप सिख धर्म का प्रचार करते हुए आगे बढ़ गए। जहाँ उन्होंने लोगों की सहायता के लिए कुएं खुदवाए, पेड़ लगवाए और तालाबों की खुदवाई करवाई। इसके बाद आगरा, बनारस, गया से होते हुए आप पटना पहुंचे। अपने परिवार को यहाँ छोड़ कर आप मुंघेर से होते हुए आप ढाका की तरफ चले गए। जोकि सिख धर्म के प्रचार का एक प्रमुख केंद्र था।

ढाका में ही गुरु तेग बहादुर जी को उनके पुत्र गुरु गोबिंद सिंह ( जिनके बचपन का नाम गोबिंद राय था ) के जन्म की खबर मिली। इसके बाद गुरु जी 2 साल तक असम में रहे। वहां रहने के बाद एक बार फिर आप पटना से होते हुए अपने परिवार के साथ पंजाब वापिस आ गए।

गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी

उस समय कश्मीर के गवर्नर इफ्तार खां वहां के पंडितों के ऊपर अत्याचार कर उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बना रहा था। जिसके आतंक से भयभीत होकर कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर जी की शरण में आनंदपुर आये। उनकी अगुवाई कर रहे पंडित कृपाराम ने गुरु जी के आगे मदद की गुहार लगायी। जिस पर गुरु जी ने उन्हें सुझाव दिया कि किसी महान पुरुष का बलिदान ही इस धर्म को बचा सकता है। बलिदान देने पर लोगों में अन्याय के प्रति लड़ने का जोश आएगा और तभी जुल्म का नाश होगा।

इस विचार पर उनके पुत्र ने उनसे कहा कि बलिदान के लिए आपसे महान कौन हो सकता है। तब गुरु जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर बादशाह से कह दें कि यदि वह मुझे मुसलमान बनाने में सफल रहे तो आप सब भी मुस्लिम धर्म अपना लेंगे। जिसका पता औरंगजेब को चलने के बाद उसने हसन अब्दाल को गुरु तेग बहादुर जी को गिरफ्तार करने के लिए भेजा। जिसके बाद मुग़ल फ़ौज ने आपको आगरा से गिरफ्तार कर लिया और दिल्ली ले आये।

दिल्ली पहुँचने के बाद आपको इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए कहा गया। जब आपने इस्लाम धर्म कबूल करने से मना कर दिया तब आपको औरंगजेब के हुकम पर 11 नवम्बर, 1675 ई.में गुरु तेग बहादुर जी को उनके साथ आये तीन सिखों सहित चांदनी चौंक में शहीद कर दिया गया।

ये शहीदी भी कोई आम नहीं थी। सबसे पहले भाई मतिदास को आरी से चीर दिया गया। भाई सतिदास को रुई में लपेट कर जला दिया गया। भाई दयाला जी को उबलते हुए पानी में डाल कर शहीद किया गया।

गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के बाद वहां बहुत तेज आंधी तूफ़ान आया। जिसका फ़ायदा उठा कर भाई जैता जी ने बड़ी ही फुर्ती से श्री गुरु तेग बहादुर जी का पवित्र शीश उठाया और उसे लेकर श्री आनंदपुर साहिब की तरफ चल दिए।

एक सिख भाई लक्खी जी गुरु जी का पवित्र धड़ अपने घर ले गए और किसी को इस बात की खबर न हो इसलिए अपने मकान को आग लगा कर चोरी छिपे गुरु जी की पवित्र देह का संस्कार कर दिया।

इस तरह श्री गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।

यह थी ( Shri Guru Teg Bahadur Ji History In Hindi ) ‘ गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी ‘ जिस से हमें श्री गुरु तेग बहादुर जी के जीवन के बारे में बहुत सी बातें जानने को मिली। ‘ गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी ‘ आपको कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं। अपने सुझाव व शिकायतें भी आप कमेंट बॉक्स के जरिये हम तक पहुंचा सकते हैं।

पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग पर इन महापुरुषों का जीवन परिचय :-

धन्यवाद।

Image Source

आपके लिए खास:

7 comments

Avatar
Harpreet Kaur अक्टूबर 7, 2021 - 11:57 अपराह्न

Pr ki ke pass . Mtlb ?

Reply
Avatar
Raj Kumar अक्टूबर 6, 2021 - 11:40 पूर्वाह्न

guru teg bahadur ji ki shiksha aaj ke yug me kitni prasangik hai is par nibandh bhejen

Reply
Avatar
Anita सितम्बर 27, 2021 - 11:43 अपराह्न

Raja Dip Chnta ki Rani ka kya name tha

Answer please????

Reply
Avatar
Anita सितम्बर 27, 2021 - 11:37 अपराह्न

Guru teg bahaduri ji ki shahiadhi ke badh andhi tufan aane pr baee jeta ji guru ji ka shish otha kr aanndhpur shahib ki trf gye the _ pr ki ke pass leke gye the?

Answer please????

Reply
Avatar
Najar singh सितम्बर 25, 2021 - 8:53 अपराह्न

Guru Tag bahadur ji

Reply
Avatar
Hansika जुलाई 5, 2021 - 1:12 अपराह्न

I want to download pdf

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जुलाई 5, 2021 - 7:53 अपराह्न

We will upload pdf soon.

Reply

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.