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जीवन में एक मित्र का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। मित्रता ही एक ऐसा रिश्ता होता है जो हर रिश्ते में ढल जाता है। मित्र माता-पिता की तरह हमारा ख्याल रखता है। भाई बहन की तरह हमारी ताकत बनते हैं। परन्तु जब कोई मित्र हमें छोड़ कर चला जाता है तो ऐसा लगता है जैसे सभी रिश्ते एक साथ खो गए हों। जीवन में एक ऐसा अधूरापन सा आ जाता है जो शायद ही कोई पूरा कर पाए। ऐसी ही स्थिति से गुजरे हुए लेखक अपने मित्र को खो देने की वेदना को “ दिवंगत मित्र पर कविता “ के जरिये शब्दों में कुछ इस तरह बयान कर रहे हैं :-
ये कविता हमें पं. संजीव शुक्ल “सचिन” जी ने अपने अतीव प्रिय अनुज, अन्तरंग मित्र, #स्वर्गीय सन्दर्भ कुमार मिश्रा “वशिष्ठ” को श्रद्धांजलि स्वरुप भेजी है। हम अपने पाठको के साथ उनके दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते है।
दिवंगत मित्र पर कविता
चला गया है मेरा मीत, कैसे लिख दूं जीवन गीत।।
दृग से बहे नयनजल धार, मन पे पड़ा मरण की मार।।
यारी नैया है मजधार, मीत गया क्यो जीवन हार।।
मृत्युपाश से हारा मीत, कैसे लिख दूं जीवन गीत।।
आ फिर से तू भैया बोल,मृत्युपाश का बंधन खोल।।
ढूंढ रहा भाई का प्यार, उर से उठती है चित्कार।।
लगो गले व निभाओ रीत, कैसे लिख दूं जीवन गीत।।
सोच रहा आये संदेश, मित्र हमारा लौटा देश।।
फिर से गले लगेगा यार, निर्मोही तुझसे ही प्यार।।
मैं हारा है तेरी जीत, कैसे लिख दूं जीवन गीत।।
नही कहीं तुझसा है यार, मिला नहीं वैसा व्यवहार।।
आज व्यथित है तेरा यार, आकर दो कोई उपहार।।
मृत्युञ्जय क्यों बना न मीत,कैसे लिख दूं जीवन गीत।।
नियती का कैसा आघात, बोल करूं मैं किससे बात।।
सहूं भला कैसे यह पीर, आज हृदय है बड़ा अधीर।।
मौत हरा तू जाता जीत, कैसे लिख दूं जीवन गीत।।
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लेखक के बारे में:
यह कविता हमें भेजी है पं. संजीव शुक्ल “सचिन” जी ने। आपका जन्म गांधीजी के प्रथम आंदोलन की भूमि बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के मुसहरवा(मंशानगर ग्राम) में 07 जनवरी 1976 को हुआ था | आपके पिता आदरणीय विनोद शुक्ला जी हैं और माता आदरणीया कुसुमलता देवी जी हैं जिन्होंने स्वत: आपको प्रारंभिक शिक्षा प्रदान किए| आपने अपनी शिक्षा एम.ए.(संस्कृत) तक ग्रहण किया है | आप वर्तमान में अपनी जीविकोपार्जन के लिए दिल्ली में एक प्राईवेट लिमिटेड कंपनी में प्रोडक्शन सुपरवाईजर के पद पर कार्यरत हैं| आप पिछले छ: वर्षों से साहित्य सेवा में तल्लीन हैं और अब तक विभिन्न छंदों के साथ-साथ गीत,ग़ज़ल,मुक्तक,घनाक्षरी जैसी कई विधाओं में अपनी भावनाओं को रचनाओं के रूप में उकेर चुके हैं | अब तक आपकी कई रचनाएं भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपने के साथ-साथ आपकी “कुसुमलता साहित्य संग्रह” नामक पुस्तक छप चुकी है |
आप हमेशा से ही समाज की कुरूतियों,बुराईयों,भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर कलम चलाते रहे हैं|
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धन्यवाद।