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कई बार हमारे जीवन में ऐसा पड़ाव आता है कि हम अपना बीता हुआ कल देख अपने भविष्य के बारे में चिंता कारने लगते हैं। ऐसे समय में हम अपने अस्तित्व कि तलाश करने लगते हैं और अपने अंतर्मन में देखने लगते हैं। उसी अंतर्मन में देखने कि व्याख्या को बताया गया है अंतर्मन की व्याख्या कविता में :-
अंतर्मन की व्याख्या
अंतर्मन में झाँक रहा
अंदर ही अंदर खुद को ढूंढ रहा
हूँ क्यूँ मै हताश? क्यूँ निराश?
क्या कुछ हूँ मैं भूल रहा ?
क्यूँ परेशान मै? क्यूँ चिंतित हूँ?
किसके लिए हूँ सोच रहा?
अंतर्मन में झाँक रहा
अंदर ही अंदर खुद को तलाश रहा..
क्या पाने की इच्छा है?
क्या टूटा कोई सपना है ?
किस कर्म पर हूँ बढ़ रहा?
या छूटा कोई अपना है ?
किसकी है तलाश ?कहा है प्रकाश ?
खुद के अन्धकार का अब कर विनाश
अंतर्मन में झाँक रहा
अंदर ही अंदर खुद को तलाश रहा..
क्यूँ सब कुछ पाने की है शीघ्रता
क्यूँ विचारों से मन है डोल रहा
चाहुँ मै उड़ना ऊपर आशमाँ से
क्यों खुद से ही मै बोल रहा
क्यूँ परिणाम में हो रहा विलम्ब है
संघर्षी जीवन का अभी हुवा आरम्भ है
अंतर्मन में झाँक रहा
अंदर ही अंदर खुद को तलाश रहा..
क्यूँ ये अग्नि प्रज्वलित न हुई अभी
क्यूँ ये प्यास अब तक बुझी नहीं
क्यूँ तप्त लौह अब तक पिघला नहीं
लक्ष्य है दूर अभी पर है नामुमकिन नहीं
ऐसा तो नही कि चांद पर
अब तक कोई गया ही नहीं
अंतर्मन में झाँक रहा
अंदर ही अंदर खुद को तलाश रहा..
सागर से गहरा मन है
पर्वत से ऊँचे हैं विचार
मन पर तू कर विजय
खुद से न कभी तू हार
न हो कभी निराश, जीत का आवाह्न कर
लक्ष्य है दूर भले ही किन्तु मिलेगा जरूर
अंतर्मन में झाँक रहा
अंदर ही अंदर खुद को तलाश रहा..
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मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
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