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मन की ज्वाला – प्रेरक कविता | Motivational Poem -Man Ki Jwala


आप पढ़ रहे है मन की ज्वाला – प्रेरक कविता ।

मन की ज्वाला – प्रेरक कविता

मन की ज्वाला - प्रेरक कविता

इक ज्वाला सी आग में है और
इक ज्वाला सी तन में,
हालात से बेबस हो ‘ज्वाला’
इक भड़की है अब इस मन में।

ये वक़्त की कैसी मजबूरी
हर ख़ुशी से रहती है दूरी,
चेहरे से मुस्कान नदारद है
कोई ख्वाहिश न होती पूरी,
अब वो मजा कहाँ उजियारी में
जो है इस ज्वाला के दहन में,
हालात से बेबस हो ‘ज्वाला’
इक भड़की है अब इस मन में।

दवा हो या हो दुआ कोई
कहाँ असर अब करती है,
तहजीब भी इज्जतदारी की
गरीबों में बसर अब करती है,
जो कपडे फ़टे गरीब के वो
चलते है अमीरों के फैशन में,
हालात से बेबस हो ‘ज्वाला’
इक भड़की है अब इस मन में।

कर के कोशिश पूरी अपनी
अब सोच नई अपनाएंगे,
जिस नजर से देखी है दुनिया
वो हम सबको दिखलाएंगे,
दिखला देंगे वो अब हम
जो है अब हमारे मन में,
हालात से बेबस हो ‘ज्वाला’
इक भड़की है अब इस मन में।

है नगर बसाना इक ऐसा
सब प्रेमभाव से रहते हों,
न नफरत हो कोई आपस में
सब नाम प्रभु का जपते हों,
मानवता हर ओर बसे
खुशहाली हो वतन में,
हालात से बेबस हो ‘ज्वाला’
इक भड़की है अब इस मन में।

“ज्वाला” – ये शब्द “बदलाव” के विचार से संबंधित है।

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