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बचपन की यादों को कौन भूल सकता है भला। यही तो जीवन का वह समय होता है जब हम खुल कर अपने जीवन का आनंद लेते हैं। इसके बाद तो जैसे -जैसे उम्र बढती जाती है वैसे-वैसे जीवन का नन्द कम होता जाता है। फिर कुछ बाकी रह जाता है तो बस बचपन की यादें। सावन के महीने की बारिश भी बचपन का एक ऐसा हिस्सा है जो हर सावन में हमें याद आता है और हम फिर से बचपन की यादों में डूब जाते हैं। सावन और बचपन के सम्बन्ध को आइये पढ़ते हैं सावन पर छोटी कविता में :-
सावन पर छोटी कविता
हम दौड़ लगाते गलियों में
जब भी बारिश आ जाती थी
बहती हुई हवा कानों में
मधुर संगीत सुनाती थी,
जाने को उस समय में फिर से
मेरी बेचैनी बढ़ जाती है
जीवंत हो उठता है बचपन
जब सावन की बारिश आती है।
अब भीगने से हम डरते हैं
तब मिट्टी में खेला करते थे
गीले होकर जब घर जाते
माँ की डांट को झेला करते थे,
खूब शैतानी करते थे तब
अब माँ ये हमें बताती है
जीवंत हो उठता है बचपन
जब सावन की बारिश आती है।
छोटी सी जल की धारा में
नाव हमारी चलती थी
छोटे-छोटे से मन में तब
बड़ी आशाएं पलती थीं,
जो यारों के संग की थी मैंने
वो मस्ती मुझे बुलाती है
जीवंत हो उठता है बचपन
जब सावन की बारिश आती है।
बागों में हरियाली छाती थी
अम्बर में इन्द्रधनुष छाता था
मोर नाचता था पर खोले
वो दृश्य मुझे तो खूब भाता था,
देखने को वो सब कुछ अब
मेरी आँखें तरस जाती हैं
जीवंत हो उठता है बचपन
जब सावन की बारिश आती है।
अब न रहा वो बचपन
न ही किस्से रहे पुराने
बदले वक्त ने बदल दिए हैं
जीवन के सभी फ़साने,
उन सभी पलों की यादें मुझको
आकार आज रुलाती हैं
जीवंत हो उठता है बचपन
जब सावन की बारिश आती है।
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धन्यवाद।