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संत तुकाराम की कहानी के इस उदाहरण से अच्छे व्यवहार का रहस्य बताया गया है। पढ़िए ये कहानी-
संत तुकाराम
संत तुकाराम, जिन्हें तुकाराम के नाम से भी जाना जाता है सत्रहवीं शताब्दी एक महान संत कवि और जो भारत में लंबे समय तक चले भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ थे।
तुकाराम का जन्म पुणे जिले के अंतर्गत देहू नामक ग्राम में सन् 1598 में हुआ। इनकी जन्मतिथि के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। इनकी बाल्यावस्था माता कनकाई व पिता बहेबा (बोल्होबा) की देखरेख में अत्यंत दुलार से बीती, किंतु जब ये प्रायः 18 वर्ष के थे इनके माता पिता का स्वर्गवास हो गया तथा इसी समय देश में पड़े भीषण अकाल के कारण इनकी प्रथम पत्नी व छोटे बालक की भूख के कारण तड़पते हुए मृत्यु हो गई।
विपत्तियों की ज्वालाओं में झुलसे हुए तुकाराम का मन प्रपंच से ऊब गया। इनकी दूसरी पत्नी जीजा बाई बड़ी ही कर्कशा थी। ये सांसारिक सुखों से विरक्त हो गए। चित्त को शांति मिले, इस विचार से तुकाराम प्रतिदिन देहू गाँव के समीप भावनाथ नामक पहाड़ी पर जाते और भगवान विट्ठल के नामस्मरण में दिन व्यतीत करते।
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संत तुकाराम के जीवन में इतनी परेशानियों के होने के बाद उन्होंने कभी संयम का त्याग नहीं किया। वे हर समय शांत रहते थे और दूसरों को भी शांत रहने का उपदेश देते थे। एक ऐसी घटना भी है जहाँ से हमें संत तुकाराम जी के स्वभाव के बारे में पता चलता है।
अच्छे व्यवहार का रहस्य
एक बार की बात है संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वभाव से थोड़ा क्रोधी था। उनके समक्ष आया और बोला, ”गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं, ना आप किसी पे क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं? कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए।“
संत बोले,” मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ !”
“मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?”, शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।
”तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो!”, संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले।
कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था? शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया।
उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया हो और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आये। शिष्य ने सोचा चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं। वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला,
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“गुरु जी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!”
“मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?”, संत तुकाराम ने प्रश्न किया।
“नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था? मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी।”, शिष्य तत्परता से बोला।
संत तुकाराम मुसकुराए और बोले, “बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है..”
शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था, उसने मन ही मन इस पाठ को याद रखने का प्रण किया और गुरु के दिखाए मार्ग पर आगे बढ़ गया।
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हमारा जीवन भी इसी प्रकार है। हमें नहीं पता कब हम इस नश्वर शरीर का त्याग कर देंगे। इसलिए हमें हर एक के साथ प्रेमभाव बना कर रखना चाहिए। हमेशा अपने स्वभाव में नम्रता और चित्त में शांति का वास रखना चाहिए। इस लेख से मिली शिक्षा को कमेंट बॉक्स में हमारे साथ जरूर शेयर करें।
धन्यवाद।
*Image Credit- By Anant Shivaji Desai, Ravi Varma Press
4 comments
संत तुकाराम का प्रेरक प्रसंग पढ़कर बहुत बढ़िया लगा
धन्यवाद मनोज जी….
Nice story
DHANYAWAD