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उत्तर प्रदेश में जब भी प्रधानी के चुनाव होते हैं तो अकसर गाँवों में क्या हाल होता है ये तो यहाँ के निवासी जानते ही हैं। मगर कई बार कुछ युवा लोग मिलकर किसी एक युवा को नेता बना कर उसे चुनाव लड़ने के लिए तैयार कर लेते हैं। तो कैसी होती है उनकी तैयारी? आइये जानते हैं प्रधानी पर कविता में :-
प्रधानी पर कविता
बंट रही मदिरा, कट रहे मुर्गे, पक रही है बिरयानी,
नौकरी नहीं मिली तो भैया लड़ रहे हैं परधानी।
आवारा जो घूमें, जुर्म से रंगे जिनके हाथ,
वही अपराधी घूम रहे हैं भैया जी के साथ।
उड़ा रहे हैं बाप का पैसा कुछ न करते काम
भैया जी ही लगते हैं उनको तो चारों धाम
गिना रहे हैं लाभ जो कल तक, करते थे सबकी हानि
नौकरी नहीं मिली मिली तो भैया लड़ रहे हैं परधानी।
भैया जी हैं काबिल चमचे सबको ये बतलाते हैं
अपना सच बतलाने से न जाने क्यों घबराते हैं।
हमें बदलना है समाज बस दिल में लगी है आग
कहने वालों के चरित्र पर लगे हैं कितने दाग।
जीत गए तो यही करेंगे कल अपनी मनमानी
नौकरी नहीं मिली मिली तो भैया लड़ रहे हैं परधानी।
बरसाती मेंढक जैसे जो टर्र-टर्र करते आज
पैरों पर गिरते न आती आज है इनको लाज
पकड़े हैं जो पैर खींच कर उसी को हमको गिराएंगे
बस चुनाव की खातिर हमको भैया जी भरमाएंगे
मत देने से पहले जानो, कैसी कटती इनकी जवानी
नौकरी नहीं मिली मिली तो भैया लड़ रहे हैं परधानी।
किसको न्याय दिलाया अब तक किसका किया भला
इनकी कृपा से अब तक सोचो किसको क्या है मिला
कौन बताये जनता को इनकी नियत का खोट
इन्हें लूटने की खातिर ही मांग रहे ये वोट,
ऐसे पैसे बहा रहे हैं, जैसे बहता है पानी
नौकरी नहीं मिली मिली तो भैया लड़ रहे हैं परधानी।
वोट उसी को देना, जिसने किया किसी का काम
देखना मत रुतबा, अहुदा और न ही किसी का नाम
खुद को बदलेंगे तब ही संभव है सबका विकास
जो काबिल हैं वो ही जीतें, बस टूटे न ये विश्वास
बदलो अपनी सोच साथ ही बदलो अबकी कहानी
नौकरी ढूंढते मिलें हमें, भैया जी जीतें न परधानी।
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