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‘ परिवर्तन पर कविता ‘ में बताया गया है कि इस दृश्यमान संसार में निरन्तर बदलाव होते रहते हैं। जड़ – चेतन सभी अपना स्वरूप निरन्तर बदलते रहते हैं। समय का पहिया बिना रुके लगातार घूमता रहता है। हर नया क्षण, बीते हुए क्षण से अलग होता है। समय के साथ ही हमारे जीवन में भी जाने अनजाने परिवर्तन होते रहते हैं। बचपन, यौवन और बुढ़ापा इसी परिवर्तन के रूप हैं। इस परिवर्तनशील जगत में जीवन की सार्थकता इसी में है कि हम सभी के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें।
परिवर्तन पर कविता
चक्र समय का घूम रहा है
गति से एक निरन्तर,
पीछे छूटे पदचिह्नों को
देखे नहीं पलटकर।
निकल गया जो एक बार यह
नहीं लौट कर आता,
कर आवाजें सभी अनसुनी
दूर कहीं खो जाता।
चलता रहता समय एक – सा
कर सबमें परिवर्तन,
इसके कारण रूप बदलते
दुनिया में जड़ चेतन।
एक जगह जैसे नदियों का
नहीं ठहरता पानी,
वैसे ही जीवन की पल पल
बदले रामकहानी।
कभी मनाता खुशियाँ मानव
कभी दुःखों को झेले,
कभी अकेला होकर जीता
कभी लगाता मेले।
यह दुनिया तो एक सफर है
हम सब इसके राही,
लगी यहाँ रहती लोगों की
हर दिन आवाजाही।
बनते हैं सम्बन्ध नए तो
जाते टूट पुराने,
जन्मों के साथी बन जाते
जो थे कल अनजाने।
बचपन यौवन और बुढ़ापा
हमको यही बताते,
मानव – जीवन में परिवर्तन
हर क्षण होते जाते।
दृश्यमान सारे पदार्थ ही
नष्ट एक दिन होते,
बनकर फसलें कल कट जाते
बीज आज जो बोते।
शाश्वत सत्य समझ स्वीकारें
हम जग में परिवर्तन,
और प्रेम से हिलमिल जी लें
चार दिनों का जीवन।
इस कविता का विडियो यहाँ देखें :-
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