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लोहड़ी उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्द त्यौहार है। जनवरी के महीने में जब सर्द ऋतू अपने चरम पर होती है। उस समय यह त्यौहार बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। आइये जानते हैं कैसा होता है लोहड़ी त्यौहार का इतिहास :-
लोहड़ी त्यौहार का इतिहास
लोहड़ी शब्द का अर्थ
लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुयी ये तो शायद ही किसी को पता हो लेकिन इसकी उत्पत्ति से जुडी हुयी दो बातें हैं। एक तो :- ल (लकड़ी) +ओह (गोहा = सूखे उपले) +ड़ी (रेवड़ी) = ‘लोहड़ी’। दूसरी यह कि यह शब्द तिल और रेवड़ी के मेल से बना तिलोड़ी है तो समय के साथ लोहड़ी बन गया।
कब मनाई जाती है लोहड़ी
लोहड़ी का त्यौहार मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाई जाती है। यह त्यौहार मुख्यतः 12 या 13 जनवरी को ही पड़ता है।
क्यों मनाई जाती है लोहड़ी
लोहड़ी को मनाये जाने के कई कारन हैं। जैसे कि यह त्यौहार शरद ऋतू के समाप्त होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसके साथ ही इसे मनाने के कारण एक पौराणिक और एक पंजाब की लोक कथा भी है। तो आइये पहले जानते हैं पौराणिक कथा।
पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री सती के पति भगवान शंकर को पसंद नहीं करते थे। इसी लिए उनका अपमान करने के उद्देश्य से उन्होंने एक यज्ञ रखा। जिसमे सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा गया। परन्तु भगवान् शंकर को नहीं। माता सती भगवान् शंकर के मना करने पर भी अपने पिता प्रजापति दक्ष के घर गयीं।
जिस दिन यज्ञ आरंभ हुआ और माता सती को यह ज्ञात हुआ कि उनके पिता ने उनके पति को यज्ञ में नहीं बुलाया है और न ही यज्ञ की सामग्री में उनका भाग निकाला है। जिस कारण उनका भरी सभा में अपमान हुआ है। यह अपमान सती जी ने सहन न करते हुए वहां बने यज्ञकुंड में जल कर अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद भगवान् शंकर क्रोध में आ गए और तांडव करने लगे। तब सभी देवताओं ने एक साथ विनती कर उन्हें शांत किया।
प्रजापति दक्ष ने भी भगवान् शंकर से माफ़ी मांगी। तब से यह लोहड़ी मनाने की प्रथा आरंभ हुयी। इस दिन विवाहिता पुत्रियों के मायके से उनकी माँ कपड़े, मिठाइयाँ, मूंगफली और रेवड़ी आदि भेजती हैं। जिसमें प्रजापति दक्ष का प्रायश्चित नजर आता है।
पंजाबी लोक कथा
मुग़ल शासक अकबर के समय पंजाब में उसका विरोध करने वाला एक वीर नौजवान था। जिसका नाम दुल्ला भट्टी था। अकबर के खिलाफ उसने कई विद्रोह किये। उसी समय की एक एक घटना घटी जिसके फलस्वरूप लोहड़ी का जन्म माना जाता है।
कथा के अनुसार एक गरीब ब्राह्मण की दो बेटियाँ थीं। जिनका नाम सुंदरी और मुंदरी था। ब्राह्मण ने उनका रिश्ता पास के गाँव में पक्का कर दिया। वह दोनों बहने बहुत सुन्दर थीं। यह बात जब वहां के मुसलमान शासकों को पता चली तो उनकी नीयत ख़राब हो गयी। इस बात के बारे में जब लड़के वालों को पता चला तो उन्होंने घर आये लड़कियों के पिता से मुसलमान शासकों के डर के कारन रिश्ता तोड़ दिया।
इस बात से निराश अपनी किस्मत को कोसते हुए सुंदरी और मुंदरी के पिता जब रास्ते से जा रहे थे तब उनकी मुलाकात दुल्ला भट्टी से हुयी। दुल्ला भट्टी को जब सारी बात का पता चला तो उसने दोनों लड़कियों को अपनी लड़की बना कर उनका विवाह करने का आश्वासन दिया। इसके बाद दुल्ला भट्टी ने सभी गाँव वासियों को जंगल में इकठ्ठा कर, एक जगह आग जला कर उन दोनों लड़कियों की शादी करवाई।
शादी के समय लड़कियों के कपडे पुराने और फटे हुए थे। उस समय सभी गाँव वालों ने उन्हें दान दिया। दुल्ला भट्टी के पास सिर्फ शक्कर ही थी। उसने वही शक्कर उन दोनों को शगुन के रूप में दिया। तब से पंजाब में यह त्यौहार मनाया जाने लगा। इसे मनाया भी आग जला कर जाता है।
कैसे मनाई जाती है लोहड़ी
लोहड़ी मनाने का ढंग कुछ-कुछ होली के त्यौहार जैसा ही है। लोहड़ी आने से कुछ दिन पहले ही बच्चे और नौजवान अपने आस-पड़ोस में लोहड़ी के कुछ गीत गा कर लोहड़ी मांगना आरंभ कर देते हैं। जिस दिन लोहड़ी होती है उस दिन एक जगह कुछ लकड़ियाँ और गोबर के उपले इकठ्ठा कर आग जलाई जाती हैं। इसके बाद सभी परिवार वाले और पड़ोसी मिल कर इसमें मूंगफली, रेवड़ी और गुड आदि डालते है।
जिनके घर पुत्र का जन्म हुआ हो या नया-नया विवाह हुआ हो उनके घर की रौनक तो देखने लायक होती है। उनके घर लोहड़ी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। उनके घर गीत गाये जाते हैं। नयी-नयी शादी हुयी हो या पुत्र ने जन्म लिया हो तो वधु के मायके से उपहार आते हैं। देर रात तक महफ़िल सजी रहती है।
इस तरह कहीं न कहीं ये त्यौहार हमें ऐसा अवसर देता है कि हम अपने समाज में रहने वाले लोगों के साथ कुछ समय बिता सकें। इसी के साथ इस त्यौहार के बाद दिन भी बड़े होने लग जाते हैं और वसंत ऋतू का आगमन नजदीक आ जाता है।
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तो ये था लोहड़ी त्यौहार का इतिहास । आशा करते हैं कि आपको इस लेख से पूरी जानकारी मिल गयी होगी। यदि इन जानकारियों के इलावा आपके पास भी इस त्यौहार से जुड़ी कोई जानकारी है तो बेझिझक कमेंट बॉक्स में लिखें।
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धन्यवाद।