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हिंदी कविता – क्या मिला
जब प्रतियोगिता हो सिर्फ
खुद की केवल खुद से ही,
तब हारकर भी क्या हारे
और जीतने से भी क्या मिला।
हे प्रभु, जब आदि भी आप हो
और अंत भी आप ही हो,
तब इतनी बड़ी सृष्टि और
ब्रह्मांड रचने से क्या मिला।
अज्ञानी थे जो पहले भी और
अज्ञानी ही हैं अब भी,
फिर उन्हें स्कूल और
कॉलेज में पढ़ने से क्या मिला।
अभिमान ही बढ़ाता रहे
किस काम का है वो ज्ञान,
कई उपाधियाँ अपने नाम के
आगे लगाने से क्या मिला।
मिल गये जख्म मुझे भी
मिल गये जख्म तुझे भी,
झगड़ा करने से क्या फायदा
दुश्मनी से क्या मिला।
खुद को ही गर पसंद न आये
और न आत्म-संतुष्टि मिले,
औरों को सुनाने के लिए ऐसा
गीत गाने से क्या मिला।
मोहब्बत तो वो खुशबू है जो
महका देती है रूह भी,
पूछो न तुम ये हमसे की
हमें मोहब्बत से क्या मिला।
रोज रचनाओं में अनेकों बातें
बतातें रहतें है “आचार्य गण”
फिर भी ज्ञान अधुरा रह जाए
तो लिखने से क्या मिला।
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मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।
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