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आजादी पर कविता :- स्वतंत्रता दिवस पर शहीदों को समर्पित देशभक्ति कविता


15 अगस्त, भारत के इतिहास में वो तारीख जब भारत पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गया। लेकिन ये आज़ादी हमें आसानी से नहीं मिली। इसके लिए एक बहुत बड़ी कीमत चुकाई गयी है। 200 बरस की गुलामी में बहुत सारे हिन्दुस्तानियों का रक्त बहा। उसके बाद जाकर कहीं हमें यह आजादी हमें नसीब हुयी है। हम ऋणी हैं उन शहीदों के जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए देश की आजादी के लिए मौत को गले लगा लिया। आइये पढ़ते हैं उन्हीं शहीदों को समर्पित आजादी पर कविता :-

आजादी पर कविता

विडियो देखिये या आजादी की कविता नीचे पढ़िए  :-

आजादी पर कविता ( यूँ ही नहीं मिली आज़ादी ) | स्वतंत्रता दिवस पर कविता | Azadi Par Kavita

यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने,
कुछ हंस कर चढ़े हैं फांसी पर
कुछ ने जख्म सहे शमशीरों के,
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

जो शुरू हुई सन सत्तावन में
सन सैंतालीस तक शुरू रही
मारे गए अंग्रेज कई
वीरों के रक्त की नदी बही,
मजबूत किया संकल्प था उनका
भारत माता के नीरों ने
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

देश की रक्षा की खातिर
थी रानी ने तलवार उठायी
पीठ पर बांधा बालक को
पर जंग में न थी पीठ दिखाई,
कुछ ऐसे हुई शहीद की जैसे
त्यागे हैं प्राण रणधीरों ने
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

ऊधम सिंह और मदन लाल
ने खूब ही नाम कमाया था
घुस कर लंदन में अंग्रेजों को
उनका अंजाम दिखाया था,
यूँ मातृभूमि से प्यार किया
जैसे खुदा से किया फकीरों ने
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

जोश ही जोश भरा था लहू में
मजबूत शरीर बनाया था
हालात पतली कर दी थी
अंग्रेजों को खूब डराया था,
आजाद वो था आजाद रहा
न पकड़ा गया जंजीरों में
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह
हंस कर फांसी पर जब झूले
बजा बिगुल फिर आजादी का
हृदय में सबके उठे शोले,
लोगों के खौफ से डर कर ही
इन्हें जलाया सतलुज के तीरों पे
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

है गर्व मुझे उन वीरों पर
भारत माँ के जो बेटे है
हो जान से प्यारा वतन हमें
शिक्षा इस बात की देते हैं,
इसी आजादी की खातिर ही
दी है जान देश के हीरों ने
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने,
कुछ हंस कर चढ़े हैं फांसी पर
कुछ ने जख्म सहे शमशीरों के,
यूँ ही नहीं मिली आजादी
है दाम चुकाए वीरों ने।

आजादी पर कविता के बारे में अपने विचार हम तक व हमारे पाठकों तक अवश्य पहुंचाएं।

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धन्यवाद।

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