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कल आज और कल पर एक ऐसी कविता जो बता रही है कि किस तरह हमें आज कल की बीती बातें छोड़ कर आने वाले कल को सुधारने का प्रयास करना चाहिए। खुद को बीते कल से जोड़ कर न रखते हुए हमें आगे बढ़ते रहना चाहिए। यही जीवन है और यही जीवन जीने का असली मंत्र है। तो आइये पढ़ते हैं यह ” कल आज और कल पर कविता ” :-
कल आज और कल पर कविता
बीते पल की बात करें क्या , लौट नहीं आने वाला।
आज खड़ा जो सम्मुख अपने, वह भी है जाने वाला।।
बात करें चल उस कल की जो, कल ही कल आजायेगा।
जीवन में फिर आशाओं के, दीप जलाकर जायेगा।।
अतीत बने जो पल तीखे थे, गीत न वह गाने वाला।
आज खड़ा जो सम्मुख अपने, वह भी है जाने वाला।।
बात पुरातन बीत गई जो, क्यों हम वह गाना गायें।
नये वर्ष में काम भला कर, आओ जग पे छा जायें।।
बुरे कर्म का बुरा नतीजा, सदियों जग देता ताना।
आज खड़ा जो सम्मुख अपने, वह भी है जाने वाला।।
कुछ अच्छे कुछ बुरे पलों को, वर्ष पुरातन दिखा गया।
जाते जाते ना जाने यह, क्या कुछ हमको सिखा गया।।
आना जाना रीत यही है, पल यही अमृत विष प्याला।
आज खड़ा जो सम्मुख अपने, वह भी है जाने वाला।।
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यह कविता हमें भेजी है पं. संजीव शुक्ल “सचिन” जी ने। आपका जन्म गांधीजी के प्रथम आंदोलन की भूमि बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के मुसहरवा(मंशानगर ग्राम) में 07 जनवरी 1976 को हुआ था | आपके पिता आदरणीय विनोद शुक्ला जी हैं और माता आदरणीया कुसुमलता देवी जी हैं जिन्होंने स्वत: आपको प्रारंभिक शिक्षा प्रदान किए| आपने अपनी शिक्षा एम.ए.(संस्कृत) तक ग्रहण किया है | आप वर्तमान में अपनी जीविकोपार्जन के लिए दिल्ली में एक प्राईवेट लिमिटेड कंपनी में प्रोडक्शन सुपरवाईजर के पद पर कार्यरत हैं| आप पिछले छ: वर्षों से साहित्य सेवा में तल्लीन हैं और अब तक विभिन्न छंदों के साथ-साथ गीत,ग़ज़ल,मुक्तक,घनाक्षरी जैसी कई विधाओं में अपनी भावनाओं को रचनाओं के रूप में उकेर चुके हैं | अब तक आपकी कई रचनाएं भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपने के साथ-साथ आपकी “कुसुमलता साहित्य संग्रह” नामक पुस्तक छप चुकी है |
आप हमेशा से ही समाज की कुरूतियों,बुराईयों,भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर कलम चलाते रहे हैं|
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धन्यवाद।
1 comment
Very nice Poem