सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है
आप पढ़ रहे हैं कविता लोमड़ी का घर :-
कविता लोमड़ी का घर
एक लोमड़ी भूली – भटकी
निकट गाँव के जब आई,
ढकी पहाड़ी पेड़ों से इक
पड़ी उसे तब दिखलाई। 1।
चढ़कर उसी पहाड़ी पर वह
लगी देखने इधर-उधर,
नजर तभी उसको आए थे
बने कई मिट्टी के घर।2
लगी सोचने वह घर होते
सचमुच में कितने सुन्दर,
हर मौसम से बच रह सकते
कई लोग इनके अन्दर।3।
कितना अच्छा हो यदि अपना
हो जंगल में कोई घर,
आए दिन बिगड़े मौसम का
नहीं रहेगा तब तो डर। 4।
नहीं भिगोएगी तब वर्षा
सर्दी ना ठिठुराएगी,
और न तब भीषण गर्मी की
हमको तपन सताएगी। 5।
लौट लोमड़ी आई वन को
आँखों में सपना लेकर,
घर के बारे में ही अब वह
सोचा करती थी अक्सर। 6।
एक बार उसने लोमड़ से
बनवाने को घर बोला,
होगा इससे जीवन सुखमय
यह कह उसका मन तोला। 7।
लोमड़ बोला – ठीक बात है
बनवाएँगे हम भी घर,
दौर अभी बारिश का लेकिन
जाने भी दो इसे ठहर। 8।
यदि आई बरसात कहीं जो
बह जाएगा सब गारा,
और व्यर्थ में ही जाएगा
किया गया श्रम भी सारा। 9।
वर्षा के इस मौसम को है
अब कुछ दिन में ही जाना,
इसके बाद करेंगे चालू
हम घर अपना बनवाना। 10।
लोमड़ की इन बातों से वह
हुई लोमड़ी भी सहमत,
लगी बिताने फिर दिवसों को
ले मन में घर की चाहत। 11।
जैसे ही वर्षा बीती तो
ठण्ड कड़ाके की आई,
ठिठुर लोमड़ी ने लोमड़ से
बात वही फिर दुहराई। 12।
लोमड़ बोला कोई भी घर
नहीं एक दिन में बनता,
दो से तीन महीने का तो
समय बनाने में लगता। 13।
अगर आज से भी घर अपना
शुरू करेंगे बनवाना,
तब भी अबकी सर्दी में तो
मुश्किल इसका बन पाना। 14।
फिर ऊपर से ठण्ड पड़ रही
देह काँपती है थर – थर,
काम करेंगे ऐसे में तो
सर्दी लगने का है डर। 15।
अच्छा होगा इस सर्दी को
हम ऐसे ही दें जाने,
कम होने पर ठण्ड लगेंगे
अपना घर फिर बनवाने। 16।
सिकुड़ लोमड़ी शीतलहर से
लम्बी रातों में जगती,
हो अधीर सर्दी जाने का
इन्तजार करने लगती। 17।
जैसे तैसे बीती सर्दी
तो वासन्ती ऋतु आई,
लोमड़ तो अब देखा करता
जो बहार वन में छाई। 18।
इन दिवसों में घर बनवाना
याद न पहले – सा आता ,
पेड़ों की छाया में उनको
समय बिताना था भाता । 19।
चली बाद में लेकिन जब लू
तन को जैसे झुलसाती,
याद लोमड़ी को तब घर की
बड़े जोर से थी आती।20।
एक दिवस दोनों बैठे थे
घनी झाड़ियों के अन्दर,
कहा लोमड़ी ने लोमड़ से
काम शुरू घर का दें कर। 21।
बोलो कब तक ठाले बैठे
समय बिताते जाएँगे,
ऐसे में तो जीवन भर ही
घर न बना हम पाएँगे। 22।
काम छेड़ देंगे जो घर का
नहीं अधूरा छोड़ेंगे,
एक बार जो शुरू किया तो
पीछे मुँह ना मोड़ेंगे। 23।
समय बीतते देर न लगती
वर्षा फिर से आएगी,
बाद इसी के आकर सर्दी
हमको खूब सताएगी। 24।
टोक बीच में बोला लोमड़
है कहना ठीक तुम्हारा,
पर गर्मी से पोखर का तो
गया सूख पानी सारा। 25।
कहो बिना पानी के कैसे
बना सकेंगे हम गारा
और बिना गारे के घर भी
बन सकता नहीं हमारा। 26।
जैसे अब तक धैर्य रखा है
कुछ दिन और रखो रानी ,
घर तो हमको बनवाना है
कहीं पास पर हो पानी। 27।
गर्मी का भी धीरे-धीरे
मौसम था बीता जाता,
देख लोमड़ी रही गगन में
फिर काला बादल छाता । 28।
पानी बरसा बहुत जोर से
भरे सभी नाले पोखर,
बात लोमड़ी ने फिर छेड़ी
बनवाने को अपना घर। 29।
बात लोमड़ी की सुन बोला
सिर को खुजलाता लोमड़,
अबके तो पानी ने कर दी
सभी जगह कीचड़ – कीचड़ । 30।
देख भयंकर ऐसी बारिश
होती मुझको हैरानी,
ढहा अधूरे घर को देगा
जो ऐसे बरसा पानी। 31।
नहीं नहीं यह ठीक नहीं है
जल्दी में घर बनवाना,
ऐसे में तो पड़ सकता है
अपने को मुँह की खाना। 32।
अपने रंग दिखा कितने ही
लगे बीतने फिर मौसम,
किन्तु समस्याएंँ लोमड़ की
तनिक न होने पाई कम। 33।
गए वर्ष पर वर्ष बीतते
बना न पर लोमड़ का घर,
कुछ ना कुछ ही रही शिकायत
उसकी मौसम को लेकर। 34।
उचित समय आने का लोमड़
इधर देखता था राहें,
उधर लोमड़ी के भी मन की
मरती जाती थीं चाहें। 35।
मौसम के आघातों को सह
आज लोमड़ी बेचारी,
लिए आँख में सपना घर का
भटक रही मारी – मारी। 36।
आने वाली बाधाओं से
बच्चो ! कभी नहीं डरना,
जो भी हैं हालात उसी में
काम तुम्हें अपना करना। 37।
बाट जोह अनुकूल समय की
वर्तमान भी जो खोते,
लक्ष्य सदा ही उन लोगों से
दूर दूर जाते होते। 38।
पढ़िए यह शिक्षाप्रद पद्य कविताएं :-
- शिक्षाप्रद बाल कविता | झूठ के पाँव (पद्य कथा) | हिंदी कविता
- धूर्त से मित्रता ( पद्य कथा ) | धूर्त मित्र के ऊपर सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’ की पद्य कहानी
- शेर और खरगोश कविता ( पद्यकथा ) | Sher Aur Khargosh Kavita
” कविता लोमड़ी का घर ” आपको कैसी लगी? अपने विचार कमेन्ट बॉक्स में जरूर लिखें।
धन्यवाद।