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हिंदी कविता बगुला में, बगुले पक्षी के माध्यम से छ्द्म वेशधारी धूर्त लोगों से सावधान रहने की सीख दी गई है। सफेद पंखों वाला बगुला, झीलों तालाबों और नदियों के किनारे एक टाँग पर चुपचाप खड़ा रहता है। उसे देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई साधु तपस्या कर रहा हो। बगुले का यह आचरण केवल मछलियों को धोखा देने के लिए होता है। जैसे ही कोई मछली बगुले के निकट आती है, बगुला उसे झट से निगल जाता है। ऐसे ही कुछ लोग समाज में सज्जनता का मुखौटा पहनकर भोले भाले लोगों को ठगते रहते हैं। हमें लोगों की बातों पर आँख मूँदकर विश्वास नहीं करना चाहिए। ढोंगी लोगों से दूरी बनाकर रखने में ही हमारी भलाई है।
हिंदी कविता बगुला
झील किनारे एक टाँग पर
खड़ा हुआ है बगुला,
तप करता कोई संन्यासी
जैसे तो दूध – धुला।
बिना हिले लेकिन यह ढोंगी
ढूँढ रहा है मछली,
निगल उसे जाता यह झट से
जल से ज्योंही उछली।
संत समझ इसको जब मेंढक
पग छूने को आते,
फँस कर इसके चंगुल में वे
अपनी जान गँवाते।
देख दुःखी बगुले को झींगे
आकर दया दिखाते,
दबे चोंच में पर अगले पल
वे अपने को पाते।
सुख से जीवन जीने का यह
चुनकर ढंग अनोखा,
कपट आचरण से वह बगुला
देता सबको धोखा।
छुपे मानवों में भी रहते
ऐसे कपटी बगुले,
जो औरों को ठगने पर ही
रहते हैं सदा तुले।
बाहर से ये उजले दिखते
पर मन होता काला,
ये विषधर उनको भी डसते
जिनने इनको पाला।
धूर्त लोग ये रहे भुनाते
औरों की मजबूरी,
अतः जरूरी ऐसों से हम
रखें बनाकर दूरी।
आँख मूँदकर हमें भरोसा
नहीं किसी पर करना,
हाथ मलेंगे पछतावे में
जीवन भर हम वरना।
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