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कहते हैं इंसान गलतियों का पुतला है। लेकिन एक सफल इन्सान वही है जो समय-समय पर अपनी गलतियों से सीख लेता रहे और उन्हें सुधारता रहे। गलतियाँ सुधारने के लिए सबसे पहले उन गलतियों के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है।
हम खुद अपनी सारी गलतियों का पता नहीं लगा सकते। इसलिए जब हमें कोई हमारी गलती बताये तो उसे ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने के बावजूद लोगों कि नजरों में गिर जाएँगे। कोई हमारे जीवन का पालनहार नहीं होता। हमें स्वयम ही अपने जीवन का किनारा ढूंढना पड़ता है।
हमारे माता-पिता और गुरुजन हमे इस कार्य को पूरा करने में हमारी सहायता करते हैं। इनके इलावा जीवन में कई मित्र और कई ऐसे लोग मिलते हैं जो हमे सही कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं और हमारी गलतियों को बता कर उसे दूर करने में सहायता करते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण ये नहीं है कि वो हमें बताते हैं।पर महत्वपूर्ण यह है कि हम उनकी बातों पर ध्यान देकर अपनी गलतियों से सीख लेते हैं की नहीं। ऐसी ही परिस्थिति को पेश करती एक कहानी आपके समक्ष रखने जा रहा हूँ :-
गलतियों से सीख
परीक्षाएं आने वाली थीं। लेकिन परीक्षा देने कि अनुमति मात्र उन्हीं विद्यार्थियों को थी जिन्होंने वार्षिक परीक्षा से पहले हुयी परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त किये हैं।
ऐसे कई विद्यार्थी थे जिनके अच्छे अंक नहीं आये थे। उन सब के सामने यह शर्त एक दीवार कि भांति कड़ी हो गयी थी। जिसे सिर्फ तोड़ कर ही पार किया जा सकता था।
कुछ विद्यार्थीयों के पहले हुयी परीक्षाओं में अच्छे अंक नहीं आये थे। परन्तु इन परीक्षाओं के पहले जितनी भी दैनिक, साप्ताहिक या मासिक परीक्षाएं हुयीं उनमें वे औसत अंक से पास होते रहे।
औसत अंक आने का कारण उनकी परीक्षाओं में की गयी गलतियाँ थीं। उनके अध्यापक ने उन्हें कई बार अपनी गलतियाँ सुधरने की सलाह दी। लेकिन उनके कान पर जूँ न रेंगती। उन्हें तो मतलब था पास होने से।
लेकिन उनके अध्यापक को उनमें एक अद्भुत प्रतिभा दिखती थी क्योंकि फेल हुए विद्यार्थीयों का अचानक से लगातार पास होना कोई छोटी बात नहीं होती। यही सबूत होता है कि वह विद्यार्थी कितनी मेहनत कर रहा है।
जो विद्यार्थी पहले पास नहीं हुए थे उनके लिए विद्यालय कि तरफ से एक सुनहरी मौका दिया गया। जिसके अनुसार एक परीक्षा रखी गयी जिसमे कक्षा अध्यापक अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी चीज की परीक्षा ले सकता है। सभी ये सुनते ही खुश हो गया। लेकिन उसके कक्षा अध्यापक के मन में और ही कुछ चल रहा था। उन्होंने विद्यालय द्वारा दिए गए निर्देशों में थोड़ा बदलाव कर दिया।
उन्होंने कहा कि आप सब को एक निबंध की परीक्षा देनी है। इतना सुनते ही सभी विद्यार्थी खुश हो गए लेकिन आगे जो होने वाला था। उससे सभी को एक झटका लगने वाला था। अध्यापक ने कहा कि पास वही विद्यार्थी मन जाएगा जो अपनी परीक्षा में एक भी गलती नहीं करेगा। ये सुनते ही सबके होश उड़ गए लेकिन उन सब के पास और कोई विकल्प भी नहीं था। इसलिए सभी विद्यार्थियों ने वह निबंध रटना शुरू कर दिया।
निश्चित दिन पर सभी एकत्र हुए और परीक्षा की तैयारियां होने लगीं। लगभग सभी विद्यार्थी निबंध याद कर के आये थे और वे खुश थे कि उन्हें मात्र एक ही निबंध मिला था। परीक्षा आरम्भ हुयी। सबने बिना समय व्यर्थ किये लिखना शुरू कर दिया और समय खतम होने से पहले ही परीक्षा दे दी। सब लोग बहुत खुश थे। और ख़ुशी- ख़ुशी ओने घर चले गए। अध्यापक ने उतर पुस्तिकाएं जाँची और नतीजा तैयार किया।
अगले दिन जब सभी विद्यार्थी कक्षा में पहुँच गए तो उन्हें जाँची हुयी उत्तर पुस्तिकाएं दी गयीं। जिसे देख कर सबके चेहरे के रंग उड़ गए। जिसकी एक भी गलती थी वह भी फेल था। किसी को कुछ समझ नहीं आ रही थी। सबको बस यही लग रहा था कक्षा अध्यापक चाहते ही नहीं कि वो सब पास हों और वार्षिक परीक्षा दें। लेकिन सबका ये अनुमान तब गलत हो गया जब कक्षा अध्यापक ने उनकी उत्तर पुस्तिकाएं वापस लेते हुए उन्हें एक और मौका देने की बात कही। ये सुनते ही उन सबकी जान में जान आई जो फेल हुए थे।
अगले दिन परीक्षा फिर रखी गयी। सभी विद्यार्थी एक बार फिर पूरा निबंध रट कर आये थे। दोबारा परीक्षा ली गयी। लेकिन इस बार भी नतीजा वही रहा जो पिछली बार था। अब कुछ नहीं बचा था कहने को। सब सोच रहे थे कि अब उनके साथ क्या होगा। तभी अचानक कक्षा अध्यापक ने कहा कि आपको एक और मौका दिया जाएगा। लेकिन ये अंतिम मौका होगा। ये घोषणा कुछ इस तरह थी जैसे जंग में घायल फौजी को पता चल जाए की उनकी सेना जीत चुकी है। लेकिन यहाँ जीत प्राप्ति के लिए अब एक और रेखा खींच दी गयी थी।
एक बार फिर से वही कुछ दोहराया गया। और नतीजा फिर वही था। सब के चेहरे पर चिंता थी लेकिन कक्षा अध्यापक मुस्कुरा रहे थे। उनकी मुस्कान ऐसी थी मानो कह रहे हो कि तुम लोग किसी कीमत पर पास नहीं हो सकते। विद्यार्थियों के लिए वह मुस्कान एक ऐसे तीर से कम नहीं थी ओ उन्हें पीड़ा तो दे रही थी लेकिन जान नहीं ले रही थी।
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तभी अध्यापक ने सबको पहले वाली दोनों उत्तर पुस्तिकाएं दी और कहा कि तीनो उत्तर पुस्तिकाओं को मिलाओ और देखो गलतियां क्या-क्या हैं। उस समय जो हुआ वो अचम्भा था। सबने तीसरी उत्तर पुस्तिका में वही गलती की थी ओ पहली दो उत्तर पुस्तिकाओं में की थी। और सब इस बात पर पछता रहे थे कि उन्होंने पहली परीक्षा के बाद अपनी गलती क्यूँ नहीं सुधारी।
अब अध्यापक ने बच्चों के चेहरे के भावों को पढ़ते हुए बोलना आरम्भ किया। जिन्दगी में इसी तरह हम कई गलतियाँ करते हैं। लेकिन उनको नजर अंदाज करते हुए आगे बढ़ते रहते हैं। लेकिन किसी दिन वही गलती हमारी जिंदगी में सबसे बड़ी रुकावट बन जाती है। जिससे हम आगे नहीं बढ़ पाते। ये गलतियाँ ही परेशानियों को जन्म देती हैं और परेशानियाँ आगे चलकर इतनी बड़ी लगने लगती हैं कि हम खुद को कमजोर पाने लगते हैं और सोचते हैं कि अगर हमने पहले अपनी गलती सुधर ली होती तो आज ये दिन न देखना पड़ता।
इतना कहते हुए कक्षा अध्यापक ने कहा कि अब आप लोगों के पास कोई चांस नहीं है। कक्षा में सन्नाटा छा गया। आप सब वार्षिक परीक्षाएं दे सकते हैं। फिर क्या था सब के चेहरे पर ख़ुशी कि लहर दौड़ गयी। सबने अच्छे ढंग से परीक्षाओं कि तयारी की और पिछली गलतियों को सुधारा। इस बार कि वार्षिक परीक्षा ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए।
बस दोस्तों इसी तरह यदि हम अपनी गलतियों को नजर अंदाज करते हैं तो हम कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। थॉमस अलवा एडिसन ने 1000 बार कोशिश कि थी फिर जाकर कहीं बल्ब का अविष्कार किया। लेकिन उन्होंने ये काम अपनी गलतियों को सुधारते हुए किया। सफलता हरेक को मिलती है अगर नहीं मिलती तो अपनी कोशिशों में सुधर करो। भाग्य को कोसने से कुछ हासिल नहीं होता।
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गलतियों से सीख ये कहानी आपको कैसी लगी हमें जरुर बताये, धन्यवाद।
5 comments
Bhut achi motivation story thi bhut acha lga pdh kr thankyou.
प्रेरणास्पद कहानी।
शुभकामनाएँ।
धन्यवाद विनोद तिवारी जी।
Sundar ati sundar. Correct insan ko apni galtiyo se hamesha seekhna chahiye.
Dhanyawad MS Rawat..insan ko apni hi nhi doosron ki galtiyon se bhi seekhna chahiye