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पर्यावरण संरक्षण बनाम मानव संरक्षण :- पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रेरित करता लेख

by ApratimGroup
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आज धरती के हालात कुछ बदल चुके हैं। इसके साथ ही मानव जीवन के जीने का ढंग भी बदल सा गया है। क्यों हो रहा है ऐसा और क्या है इसके नुक्सान आइये जानते हैं पर्यावरण संरक्षण बनाम मानव संरक्षण लेख में :-

पर्यावरण संरक्षण बनाम मानव संरक्षण

पर्यावरण संरक्षण बनाम मानव संरक्षण

पर्यावरण हमारे अचार-व्यव्हार का दर्पण होता है जिसमें समस्त प्राणी जगत अपनी रोजमर्रा जिंदगी की अनेकों गतिविधियों को सम्पूर्ण करता है। पर्यावरण अर्थात जिस भौतिक परिवेश में सभी जीव-जंतु, सम्पूर्ण वनस्पति जगत, नदियाँ-नाले एवं पहाड़ इत्यादि आते हैं। 5 जून को संपूर्ण विश्व में पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिसमें बिगड़ चुके पर्यावरण के सुधर के लिए अनेकों सेमिनार, वृक्षारोपण समागम किये जाते हैं।

परन्तु क्या पर्यावरण की रक्षा करना सिर्फ एक दिन तक ही सीमित है? ऐसा कदापि नहीं है क्योंकि पल-पल इसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। अगर पर्यावरण है तो हम हैं नहीं तो हमारा कोई अस्तित्व हो ही नहीं सकता। क्योंकि जननी नहीं तो बालक नहीं। इसलिए अगर हम पर्यावरण को शुद्ध रखते हैं तो हम स्वयम को स्वस्थ रखने का ही प्रयास करते हैं।

आज मानवी क्रूरता के चलते पर्यावरण का अंधाधुंध शोषण हो रहा है। मनुष्य ने अपनी लोलुपता के कारन आज खुद को तबाही के आखिरी मुकाम पर खड़ा कर लिया है। बहुत ही चिंताजनक बात है कि जिस धरती की कोख से हमें अपने जीवन निर्वाह के लिए अनेकों अमूल्य निधियां मिलती हैं हम इसी माँ को बाँझ बनाने में प्रयासरत हैं। आज खेत-खलिहानों में दिन-ब-दिन लगायी जा रही आग भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्ट कर उसे बंजर बना रही है। यही नहीं मनुष्य द्वारा संपन्न किये जा रहे इस कृत्य द्वारा वायु प्रदुषण में भी अत्यंत बढ़ोत्तरी हुयी है।



इसी के चलते आज सांस से सम्बंधित कई कष्टदायक बीमारियाँ पैदा हो गयी हैं। इस आग के द्वारा भूमि में रहने वाले अनेकों मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं। जिससे फसलों की पैदावार में कमी आती है। इसके द्वारा पैदा हुए धुएं से पूरा आकाश पट जाता है। जिससे अनेकों लोगों को सड़क दुर्घटनाओं के कारण असमय ही मृत्यु रूपु सुरसा के मुख में समाना पड़ता है। संक्षिप्त में कहें तो आज मनुष्य की इस लोलुप प्रवृत्ति से वायु, जल, धरती, नदियाँ, सागर कुछ भी तो प्रदुषण मुक्त नहीं है। जिसके परिणाम स्वरुप आने वाले समय में न तो पृथ्वी पर पीने के लिए साफ़ पानी बचेगा न ही सांस लेने के लिए शुद्ध वायु।

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण पृथ्वी के पर्यावरण मिजाज में काफी गड़बड़ी पैदा हुयी है और प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोत्तरी हुयी है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि प्राकृतिक आपदाएं मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ किये गए खिलवाड़ का ही परिणाम है। मनुष्य की इन्हीं गलत गतिविधियों के चलते ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट बढ़ने से ग्लोबल वार्मिंग में भी बढ़ोत्तरी हुयी है। यही कारण है कि आज ऋतुओं के व्यव्हार में काफी हद तक असमानता पैदा हो चुकी है। मनुष्य की प्रकृति दोहन प्रवृत्ति के कारन ही ओजोन परत रुपी हमारा रक्षा छव दिन प्रतिदिन फटता जा रहा है।

जिसके परिनाम स्वरुप विषाक्त किरणें धरती के अंचल पर पहुँच कर कई नामुराद बिमारियों को जन्म दे रही हैं। ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कीटनाशक के अंधाधुंध इस्तेमाल में जमीन एवं पानी दोनों को गंदा कर दिया है। जो भोजन मनुष्य स्वस्थ रहने के लिए ग्रहण करता है लेकिन प्रकृति के विपरीत आचरण करने के कारण यह भी जहरीला हो चुका है। अगर समय रहते इस दिशा में सही निर्णय न लिए गए तो मनुष्य अपने विनाश का खुद ही सबसे बड़ा जिम्मेदार होगा।



पर्यावरण संरक्षण के लिए यदि आपके पास भी है कोई विचार तो इस से सम्बंधित अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें।

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धन्यवाद।

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