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‘अपनापन पर कविता ‘ में सभी मनुष्यों के साथ अपनापन बनाए रखने की बात कही गई है। धरती के सभी मानव एक ही ईश्वर की संतान हैं अतः सभी में आपसी भाईचारा होना चाहिए। भौतिक विकास के साथ ही हमें मानवीय मूल्यों को बचाए रखना है जिससे समाज में नैतिकता बनी रहे और कोई भी व्यक्ति अन्याय व अत्याचार का शिकार न हो। हमें सभी को अपनी ही तरह समझकर सबके साथ सद्भावना रखनी चाहिए।
अपनापन पर कविता
एक ब्रह्म की संतानें हम
आपस में गहरा नाता,
एक गगन का हाथ शीश पर
एक गोद धरती माता।
है वसुधा परिवार हमारा
सभी लोग लगते अपने,
हमने सबके सुख – वैभव के
रात दिवस देखे सपने।
बिना भेद के मानवता को
हमने सदियों से पूजा,
जो भी हमसे गले मिला है
उसे नहीं समझा दूजा।
आज धर्म के नाम जलाते
क्यों हम औरों की बस्ती,
सत्ता के खातिर लोगों की
लगे जिन्दगी क्यों सस्ती।
घृणा द्वेष अन्याय झूठ क्यों
आज हुए हम पर भारी,
स्वार्थ लोभ में क्यों अन्धे हो
भूले नैतिकता सारी।
तार – तार होती मर्यादा
छिन्न-भिन्न रिश्ते बन्धन,
माँ बहनों की लाज लुट रही
मानवता करती क्रन्दन।
भ्रष्टाचारी दावानल में
आज देश है दहक रहा,
नव पीढ़ी का कदम नित्य ही
नैतिक – पथ से बहक रहा।
भौतिकता के इस विकास पर
करना होगा फिर चिन्तन,
दया क्षमा को भूल कहीं हम
हो जाएँ ना निष्ठुर- मन।
हो भौतिक – उत्थान जगत का
किन्तु मनुजता भी साधें,
अपने सुख के साथ- साथ हम
हित औरों का आराधें।
नहीं दनुज-से कर्म करें हम
होकर मनु की संतानें,
सबसे सद् व्यवहार करें हम
सबको ही अपना मानें।
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धन्यवाद।