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Short Moral Story On Discipline In Hindi छात्र के जीवन में अनुसहासन का बहुत महत्त्व होता है। यदि वह अनुशासनहीन हो जाता है तो वह अपना लक्ष्य कभी नहीं पा सकता। अनुशासनहीन होने पर वह अपनी शक्ति को व्यर्थ के कामों में लगाने लगता है और उसका जीवन उसके साथ ही दूसरों के लिए भी भी एक समस्या बन जाता है। ऐसे में अच्छा यही है कि अनुशासन में रह कर अपने जीवन को अपने लिए और दूसरों के लिए उपयोगी बनाया जाए। ऐसी ही शिक्षा दे रही है यह अनुशासन पर कहानी :-
Short Moral Story On Discipline
अनुशासन पर कहानी
गुरुकुल में रहते हुए अंजनेय को 4 साल होने वाले थे लेकिन अभी तक वह अनुशासन में रहना नहीं सीखा था। हृष्ट-पुष्ट शरीर था उसका और दिमाग भी बहुत तेज था। परेशानी थी तो बस इसी चीज की कि उसके जीवन में कोई लक्ष्य नहीं था और इस कारण वह अपनी शक्ति गलत कामों और शैतानियों में व्यर्थ कर देता था।
हर रोज नई तरह की शैतानियाँ वो अक्सर ही करता रहता एक बार तो वो एक सोते हुए सहपाठी को उठा कर गुरुकुल के बहार छोड़ आया था और सुबह उसके गम होने से चारों तरफ हाहाकार मच गया था। जब सब को अंजनेय की इस उद्दंडता के बारे में पता चला तो गुरुदेव उस पर बहुत क्रोधित हुए।
पानी सर के ऊपर हो चुका था। गुरु जी द्वारा उसे समझाने के सभी प्रयास विफल हो चुके थे। अंततः एक योजना बनायीं गयी और अंजनेय को एक कार्य सौंपा गया। कार्य था गुरुकुल के पास से बहने वाली नदी का रास्ता रोकना। यूँ तो यह कार्य इतना आसान न था। परन्तु अंजनेय का मानना था कि ऐसा कोई काम नहीं जो वो कर नहीं सकता।
अंजनेय ने अगली सुबह अपना काम शुरू किया। पहले उसने छोटे-छोटे पत्थर रखने शुरू किये। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि नदी छोटे पत्थरों को गिरा कर अपना रास्ता बना रही है। इसके बाद उसने बड़े-बड़े पत्थरों से नदी का रास्ता रोका। दोपहर बाद जब उसने नदी का बहाव रोक दिया तो प्रसन्नता पूर्वक गुरुकुल चला गया और सबको बड़े गर्व से बताने लगा। गुरु ने अंजनेय की तरफ देखा तो सही लेकिन कुछ कहा नहीं।
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थकावट के कारण अंजनेय जल्दी सो गया। सुबह हुयी तो अंजनेय के कानों में शोर सा सुनाई दिया। आवाजें सुनते ही उसने आँखें खोलीं। लेकिन उसे साफ़-साफ़ कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। फिर उसे कुछ गीलेपन का आभास हुआ। उसने अपने चारों तरफ देखा तो पानी उसके कमरे में फैला हुआ था। वो एक दम से उठा और बहार जाकर देखा तो पूरे गुरुकुल में पानी फैला हुआ था।
“अंजनेय तुमने नदी का बहाव तो रोक दिया लेकिन अब वही पानी हम सबके लिए चिंता का विषय बन गया है। शीघ्र ही इसका कोई निवारण करो, और हाँ स्मरण रहे नदी का बहाव भी रुक जाना चाहिए।” कहते हुए गुरु जी अपने कक्ष में चले गए।
उस दिन अंजनेय बिना कुछ खाए पिए ही गुरुकुल से बाहर चला गया और दिन-रात एक कर उसने पत्थरों का ढेर सारा अंबार लगा नदी का बहाव रोक दिया और दूसरी सुबह वापस आ गया। गुरुकुल में सभी को आदेश था कि कोई भी अंजनेय की किसी भी प्रकार से सहायता नहीं करेगा।
इस बार पानी गुरुकुल में तो नहीं आया लेकिन पास के गाँव में चला गया और इतना पानी चला गया कि अगर जल्द ही उसको रास्ता न दिया जाता तो पूरा गाँव बाढ़ की चपेट में आ सकता था।
अगली सुबह कुछ गाँव वाले आये और गुरु जी से आग्रह करने लगे कि उनके गाँव को डूबने से बचाएं। गुरु जी ने अंजनेय को बुलाया और कहा, “मैंने तुम्हें नदी के बहाव को रोकने के लिए कहा था परन्तु तुम्हारी मूर्खता के कारण उस नदी का जल पहले गुरुकुल में आया और अब पूरे गाँव को डुबाने वाला है।”
“परन्तु गुरु जी मैंने तो आपकी आज्ञा का पालन ही किया!” अपनी पक्ष रखते हुए अंजनेय ने कहा।
“मैंने जल का बहाव रोकने के लिए कहा था। यदि बहाव रुका होता तो गाँव के डूबने की स्थिति क्यों आती? बहाव रोकने का अर्थ है कि जल कहीं नहीं जाना चाहिए।”
– ऐसा कैसे संभव है गुरुदेव? जल की धारा को कैसे रोका जा सकता है? उसकी शक्ति के आगे हमारी शक्ति तो कुछ भी नहीं।”
– क्यों नहीं? पहले तुमने ही उसे रोका वो भी एक बार नहीं दो बार।
अंजनेय को गुरु जी की इस बात से उनकी मंशा का पता चल गया। वो समझ गया कि नदी के बहाव को नहीं रोका जा सकता था फिर भी उसे जानबूझ कर दो बार भेजा गया। परन्तु उसे ये समझ नही आया कि ऐसा किया क्यों गया। अब वो सबके सामने लज्जित था।
तभी गुरुदेव उसके पास आये और कहने लगे,
“हमारा जीवन भी नदी की धारा की तरह है। नदी की तरह हमारे अन्दर भी अपार शक्ति है। यदि हम नदी की तरह अनुशासन में रह कर आगे बढ़ते रहेंगे तो अपने लक्ष्य को जरूर प्राप्त कर लेंगे। परन्तु यदि हम दिशा हीन हो गए। तो हम दूसरों के लिए हानिकारक भी हो सकते हैं। फिर सब हमसे दूर भागेंगे और हमसे मुक्ति का उपाय सोचेंगे। अंतर सिर्फ इतना है कि नदी सोच नहीं सकती और हम सोच सकते हैं। इसलिए निर्णय लेना तुम्हारे हाथ में है तुम अनुशासन में रहना चाहते हो या फिर दिशाहीन होकर अपना जीवन व्यर्थ करना चाहते हो।”
इतना कह कर गुरुदेव तो चले गए लेकिन गुरु की ये बातें सुन अंजनेय को अपने अन्दर एक अजीब सी घुटन महसूस होने लगी। उसे समझ आ गया था कि वह अपने जीवन रुपी नदी की धारा में दिशाहीन होने के साथ-साथ अनुशासन हीन भी हो गया था। अपनी इस भूल को सुधारने के लिए वो सीधा नदी के तट पर गया और उस रूकावट को हटा दिया इसके साथ ही अपने जीवन से भी अनुशासनहीनता रुपी रूकावट को हमेशा के लिए निकाल दिया।
दोस्तों अनुशासन पर कहानी की तरह हमारे जीवन में हम कई बार अपने लक्ष्य की ओर ध्यान नहीं देते और अनुशासनहीन हो जाते हैं। इस से हम दूसरों को नाकारा लगने लगते हैं। अनुशासन में रह कर ही हम अपने आप को काबिल बना सकते हैं। तो बहने दीजिये अपने जीवन की धारा को अनुशासन में और बढ़ते रहिये अपने लक्ष्य की तरफ।
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धन्यवाद।
6 comments
इस कहानी को कब प्रकाशित किया गया
मालती जी यह कहानी 30 सितंबर 2018 को प्रकाशित की गई है।
Anushasan hi sab kuchh sikhata he very nice story
धन्यवाद महिपाल जी।
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा। यहां आकर गागर में सागर लगा।
धन्यवाद राजेन्द्र सिंह जी।