सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है
ज़माने भर के लोगों को गलत साबित कर एक नयी मिसाल प्रस्तुत करने वाले पिता-पुत्र द्वारा बनाये ब्रुकलिन ब्रिज की कहानी में हम ऐसा ही कुछ पढ़ने वाले हैं कि किस प्रकार हिम्मत जुनून इंसान से कुछ भी करवा सकता है।
अगर सर पे जुनून हो तो दुनिया का ऐसा कौन सा काम है जो नहीं किया आ सकता, असंभव कुछ भी नही । ऐसे कई लोग हुए हैं जिन्होंने उन लोगों को गलत साबित किया है जिन्होंने उन्हें ये बताया हो कि वो कोई काम नही कर सकते। ये चीजें तो आम-तौर पर प्रभावित और प्रेरित होकर हर कोई कर सकता है। लेकिन समस्या तब आती है जब वह किसी ऐसी कमजोरी से जूझते हैं जिसे पूरा नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में भी जो हिम्मत नहीं हारते और उनके पास जो बचा हो उसी का प्रयोग कर सफलता प्राप्त करते हैं। ऐसी महान शख्सियतों के लिए मैं इतना ही कहना चाहूँगा,
“गुमनामियों के अँधेरे में ही दफन हो जाती है उनकी पहचान
जिनके पास काम ना करने के अनगिनत बहाने हैं ,
नजरअंदाज कर कमजोरियों को जो सपनों में भरते हैं जान
आज ज़माने भर में उन्हीं के हर जगह उन्हीं के अफ़साने हैं।”
ब्रुकलिन ब्रिज की कहानी
जॉन रोब्लिंग का सपना
ये घटना है सन 1870 की जब एक अमेरिकी इंजिनियर जॉन रोब्लिंग (John Roebling) के दिमाग में एक ऐसा विचार आया जो आज से पहले किसी के दिमाग में नहीं आया था।
ये विचार था एक ऐसा शानदार पुल बनाने की जो दो द्वीपों को आपस में जोड़ सके। उस समय पूरे विश्व में ऐसा कोई पुल नहीं था जो दो द्वीपों को जोड़ता हो। इस पुल का नाम था – “ब्रुकलिन ब्रिज”।
इसलिए दुनिया भर के सभी इंजिनियरों ने इसे पागलपन करार देते हुए नकार दिया। जॉन रोब्लिंग ने उन सभी इंजिनियरों से बात कि जिन्हें वह जानते थे लेकिन कोई भी उनकी सहायता करने के लिए आगे नहीं आया।
जॉन रोब्लिंग को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अब वे क्या करेंगे। बहुत दिनों तक सोच-विचार के बाद उन्होंने अपने पुत्र वाशिंगटन से बात की। फिर दोनों विचार-विमर्श के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि वो अपना सपना तो जरुर पूरा करेंगे चाहे उनको इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
उन्होंने कुछ इंजिनियर बुलाये और उन्हें इस बात पर काम करने के लिए राजी किया कि इस प्रोजेक्ट में अगर कोई नुकसान होता है तो उसकी भरपाई दोनों पिता-पुत्र करेंगे। जो इंजिनियर इस बात से सहमत थे वे रुक गए और बाकी वहां से यह कहते हुए चले गए कि ये लोग पागल हो गए हैं। पैसा और वक़्त दोनों बर्बाद करेंगे।
ब्रुकलिन ब्रिज के निर्माण की सुरुवात और मुश्किलें
अंततः 3 अनवरी, 1870 को काम शुरू हुआ। अभी कुछ ही दिन हुए थे काम शुरू हुए कि एक ऐसी घटना घट गयी जिसने सबके विश्वाश को तोड़ कर रख दिया। जॉन रोब्लिंग की अचानक मृत्यु हो गयी। इस घटना के बाद फिर सब कहने लगे कि ये प्रोजेक्ट कभी पूरा नहीं हो सकता। ऐसे समय में जॉन रोब्लिंग के पुत्र वाशिंगटन ने हिम्मत नहीं हारी और काम रुकने नहीं दिया।
पर कहते हैं ना नाव कितनी भी अच्छी हो बड़े-बड़े तूफ़ान अक्सर उसे डूबा ही देते हैं। जॉन रोब्लिंग के प्रोजेक्ट रुपी इस नाव पर भी उनकी मृत्यु के 2 साल बाद एक और तूफ़ान आ गया। वह थी एक ऐसी बीमारी जिसने वाशिंगटन को ऐसी हालत में पहुंचा दिया जिसमे उनके शरीर के सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया। हालत इतनी ख़राब हो गयी की वाशिंगटन बोल भी नहीं सकते थे।
इसके बाद प्रोजेक्ट का काम रुक गया और सभी इंजिनियर वहां से चले गए। वाशिंगटन भी इस हालत में खुद को लाचार पा रहा था। वह अपनी जिंदगी जैसे-तैसे बिता रहा था। लेकिन डूबी हुई नाव को बचाने का एक मौका उसे उस दिन मिला जब अचानक उसने एक दिन महसूस किया कि उसके हाथ कि एक ऊँगली अभी भी काम कर रही थी।
एमिली वारेन द्वारा पूल निर्माण पूरा करना
उसने किसी तरह यह बात अपनी पत्नी एमिली वारेन (Emily Warren) को बताई। उन्होंने आपस में संपर्क साधने के लिए कोड बनाये।वाशिंगटन की पत्नी ने वह सब चीजें पढ़ीं थीं जो एक पुल बनाने के लिए जरुरी थी। वाशिंगटन के कहने पर उसकी पत्नी एमिली वारेन ने एक बार फिर सभी इंजिनियर को बुलाया और उनसे काम दोबारा शुरू करने को कहा एमिली वारेन अगले 11 सालों तक अपने पति के दिए हुए निर्देशों का पालन करते हुए ब्रुकलिन ब्रिज को बनाना जारी रखा।
24 मई, 1883 को वह दिन आ ही गया जिसने एक नया इतिहास रच दिया। वाशिंगटन ने एक ऊँगली के दम पर और अपनी पत्नी एमिली वारेन के सहयोग से ब्रुकलिन ब्रिज रूपी वह करिश्मा तैयार कर खड़ा कर दिया था जिसे सब असंभव बोल रहे थे।
⇒पढ़िए- दुनिया के 7 अजूबे | Seven Wonders Of The World Detail Info In Hindi
ऐसे लोग सचमुच महान होते हैं जो कठिनाइयों के बावजूद भी सब कि सोच को गलत साबित कर देते हैं। दुनिया में असंभव कुछ भी नही है। असंभव बस एक शब्द है जो सभी शब्दकोष में मिल जाता है। अगर आप इसे अपनी जिंदगी प्रयोग करना चाहें तो बेझिझक करें। लेकिन सकारात्मक तौर पर, जैसे कि मेरे लिए कोई कार्य असंभव नहीं है, मैं हार जाऊं ये असंभव है आदि।
आप सब ऐसी कहानियों से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को एक ऐसी दिशा दे सकते हैं जो आपका नाम इतिहास में दर्ज करवा सकता है। अगर ये ब्रुकलिन ब्रिज की कहानी आप लोगो को पसंद आई तो कृपया सब के साथ शेयर करें। अपने विचार हमें कमेंट के माध्यम से दें।
पढ़िए हौसलों की कुछ ऐसी ही मिसालें जिन्होंने जिद से अपना जीवन बदल दिया :-
- एक ही पैर से माउंट एवेरेस्ट फतह करने वाली पद्मश्री विजेता “अरुणिमा सिन्हा की कहानी”
- आयरन लेडी पाकिस्तान | मुनिबा मज़ारी की कहानी
- धीरू भाई अंबानी के जीवन के एक घटना “आगे बढ़ना ही जीवन है”
धन्यवाद।
5 comments
very very motivational
Thanks Vipin Kumar ji…..
Thank You
Zindegi To Uhu Gujur Jata Hai,risk Leneku Kiyou Ghabarate Hai, Jo B Aaea Hai Is Dunia Me Ake Din Jana B Hoga , Jate Jate Asha Kaya Kara Jayenege Jo Dunia Ku Haam Per Naaja Hoga, Her Ake Insan Ku Ahi Sochona Chahiy , Musukil Ku Kamiyabi Samjhoge To Her Musukil Raha Unhu Duru Ho Jayega, Thank You
Nice…Raman kumar…keep it on….and thanks for such beautiful lines…..