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पर्यावरण का महत्व :- पर्यावरण संरक्षण पर छोटी कहानी | Paryavaran Ka Mahatva

by Sandeep Kumar Singh
4 minutes read

Paryavaran Ka Mahatva – भगवान् ने हमें ये पृथ्वी रहने के लिए दी है। लेकिन हम अपनी जरूरतों और सहूलियत के लिए पेड़ काट रहे हैं, प्रदुषण फैला रहे हैं।  इन सब का कारण बढती हुयी आबादी है। हमें पर्यावरण का महत्व समझना चाहिए। यदि हमने अपने पर्यावरण को साफ़ सुथरा न रखा तो आने वाले समय में मानव यानि कि हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। जैसे इस कहानी में एक चिड़िया के साथ हुआ। कैसे? आइये पढ़ते हैं ” पर्यावरण का महत्व ” ( Paryavaran Ka Mahatva ) कहानी में।

पर्यावरण का महत्व

पर्यावरण का महत्व

जून का महीना था। गर्मी के मौसम में चिलचिलाती धूप चारों ओर पसरी थी और साथ ही पसरा था चारों और सन्नाटा। ऐसा लग रहा था मानो मातम छाया है। सूर्य देवता ठीक बीच सिखर पर थे। तभी अचानक किसी और से उड़ता हुआ एक पक्षी आया। वो वहाँ लगे खम्भे की तार पर बैठ गया।

गर्मी से उसका बुरा हाल हुआ पड़ा था। पसीने से तरबतर, चक्कर खा कर गिरने ही वाला था कि उसने खुद को संभाला। ऐसा मालूम होता था कि वो शहर के बहार उस जंगल से आई थी जहाँ पेड़ों की कटाई का काम चल रहा था।

तभी वह ऊपर देखते हुए बोला,

“हे भगवान्! मेरे साथ इतना अन्याय क्यों? मेरा घर भी छीन लिया और पीने को एक बूँद पानी भी नसीब नहीं हो रहा। आखिर क्यों?”

“हाहाहाहा…..”

एक भयानक जोरदार आवाज हुयी।

आसमान में काले रंग के बादल छा गए और उनमें एक मुख की आकृति बन गयी और हँसते हुए बोली,

“ए नादान पक्षी, इसमें भगवान का कोई कसूर नहीं। ये तो खुद को समझदार समझने वाले इंसानों की बेवकूफी का नतीजा है। जिन्होंने इस धरती का प्रदूषण से बुरा हाल कर दिया है।”

पक्षी उसे देख घबरा गया और हकलाते हुए बोला,

“त…त….तुम कौन हो?”

“मैं कलयुग का दैत्य ब्लैक स्मोक हूँ।”

“लेकिन इंसान मेरी बर्बादी का कारण कैसे हैं ? वो तो अपने रहने के लिए ही जंगल काट कर घर बना रहे हैं।’

“हा…हा….हा…हा…वही तो, आबादी को बढ़ने से रोकने की जगह वो पेड़ काट रहे हैं और जब जगह ही ख़तम हो जाएगी तो आपस में लड़ मरेंगे ये सब।”

 

पक्षी इस बात पर हैरान और आगे बोला,

“चलो रहने के लिए घर नहीं कम से कम पीने को दो घूँट पानी तो मिले।”

तभी दैत्य ने इशारा करते हुए पक्षी से कहा,

“पानी!…वो शहर के उस किनारे पर वो फैक्ट्री दिख रही है?”

“हाँ दिख रही है। तो?”

“वहाँ से निकलने वाले केमिकल ने पास वाली नदी का सारा पानी विषैला कर दिया है। तुम्हें पानी तो मिलेगा लेकिन वो पीने लायक न होगा।”

अचानक पक्षी को कुछ अजीब महसूस होने लगा,

“ये मेरा दम क्यों घुट रहा है?”

“मेरी मौजूदगी के कारण….हा….हा….हा….हा….”

“लेकिन तुम मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?”

“हा…हा….हा…..हा…..मैं तो जन्मा ही इस सब के विनाश के लिए हूँ। इस संसार के अंत के लिए। ये मनुष्य पेड़-पौधे काट-काट कर और प्रदूषण फैलाकर मेरी ताकत बढ़ा रहे हैं। लेकिन ये इस बात को भूल रहे हैं कि एक दिन मेरी ये ताकत इतनी बढ़ जाएगी कि जिस तरह आज तुम्हारा अंत होने वाला है, इसी तरह सब इंसानों का अंत हो जाएगा। हा….हा….हा…”

उस दैत्य के इस हाहाकार के बीच उस पक्षी ने प्राण त्याग दिए और मानव जाति के लिए एक सवाल खड़ा गया।

क्या यही हमारा भविष्य है?

आज के दौर में बढ़ते प्रदूषण और पेड़ों की कटाई ने पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर दिया है। इसी कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या भी बढ़ रही है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम पानी या फिर पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने के कारण विलुप्त होने के कगार पर पहुच जाएँगे। लेकिन उस समय हमें बचाने वाला कोई नहीं होगा।



तो आइये आज हम प्रण लें कि हम अपनी धरती और पर्यावरण की रक्षा करेंगे। आने वाली पीढ़ी के लिए हरी-भरी और खुशहाल धरती ही हमारी ओर से एक बहुमूल्य उपहार होगी।

पढ़िए पर्यावरण संरक्षण पर शानदार रचनाएं :-

धन्यवाद।

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8 comments

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Mishika charak अगस्त 26, 2023 - 6:17 पूर्वाह्न

I like this story
Perfect story

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Aamol Das Goswani दिसम्बर 12, 2021 - 7:38 अपराह्न

A great story. It helped me a lot for preparing for my competition!! Keep it up!

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Sarju Prasad नवम्बर 25, 2019 - 5:07 अपराह्न

Ye AAP ki kabitaye hame prenda dety hai ki aap log apane swast Ko pryawarn se byakt kar sakate ho so great sir jii

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shamshad ansari दिसम्बर 21, 2018 - 4:05 अपराह्न

nice loking for paryavaran

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh दिसम्बर 25, 2018 - 2:23 अपराह्न

धन्यवाद शमशाद जी।

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पंकज तोमर जनवरी 12, 2018 - 10:08 अपराह्न

संदीप जी क्या मैं आपसे पर्सनली बातचीत कर सकता हूँ मेरा मोब. 8802968689 है।

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jay जून 3, 2017 - 11:18 पूर्वाह्न

bahut achi post hai sir ..

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जून 3, 2017 - 11:23 पूर्वाह्न

Thanks Jay…..

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