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विदुर कौन थे के पहले भाग में हमने पढ़ा कि धर्मराज को किस तरह मांडव्य ऋषि ने मानव रूप में जन्म लेने का श्राप दिया। यदि आपने वह कहानी अब तक नहीं पढ़ी हैं तो पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । ” विदुर का जीवन परिचय ” में हम जानेंगे कि ऋषि माण्डव्य के श्राप के कारण धर्मराज का मानव जन्म किन परिस्थितियों में हुआ।
विदुर का जीवन परिचय
महाराज शांतनु और उनकी पत्नी सत्यवती के दो पुत्र हुए। जिनका नाम चित्रांगद और विचित्रवीर्य था। महाराज शांतनु के बाद भीष्म की देखरेख में चित्रांगद को राजगद्दी पर बिठाया गया। परन्तु कुछ ही समय बाद वे एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। उसके बाद विचित्रवीर्य को राज्य का शासन सौंप दिया गया। परन्तु विवाह के बाद उनकी भी मृत्यु हो गयी।
दोनों भाइयों की मृत्यु के बाद अब रानी सत्यवती के सामने यह प्रश्न खड़ा हो गया कि उनका वंश आगे कैसे बढ़ेगा। उन्होंने भीष्म को विवाह करने के लिए मनाने का प्रयास किया लेकिन भीष्म तो विवाह न करने की प्रतिज्ञा ले चुके थे।
उस समय रानी सत्यवती ने भीष्म को बताया कैसे वे महाराज शांतनु से विवाह करने से पहले ही माँ बन चुकी थीं। उनके पुत्र का नाम व्यास है। अब जबकि भीष्म विवाह नहीं कर सकता तो संतान प्राप्ति के लिए व्यास ऋषि की सहायता लेनी पड़ेगी।
भीष्म को सहमती पर रानी सत्यवती ने व्यास को बुलाया और सारी समस्या उन्हें सुना दी। व्यास ऋषि ने अपनी माता के आज्ञा का पालन किया। जब व्यास ऋषि अंबा के पास गए तो व्यास ऋषि की कुरूपता देख उसने आँखें बंद कर ली। जिस कारण धृतराष्ट्र अंधे पैदा हुए। वहीं जब वेव अंबालिका के पास गए तो व्यास ऋषि को देख उसके रंग ही उड़ गए और बदन पीला पड़ गया। जिस के फलस्वरूप उनका पुत्र पांडु का रंग पीला हो गया।
जब सत्यवती को व्यास ऋषि ने इस बारे में बताया तो वे चिंता में पड़ गयी। उन्हें एक स्वस्थ पुत्र चाहिए था। जो राज्य का शासन अच्छे से संभाल सके। इसलिए रानी सत्यवती ने एक बार फिर व्यास ऋषि और अम्बिका को संतान प्राप्ति के लिए मिलवाया।
अंबिका पहले ही व्यास ऋषि को देख कर डर गयी थी। इसलिए उन्होंने अपनी जगह अपनी एक दासी जिसका नाम परिश्रमी था, को व्यास ऋषि के पास भेज दिया।
इस तरह विदुर धृतराष्ट्र और पांडु के भाई थे। आगे चल कर जब वे बड़े हुए तो तो उनका विवाह सुलभा नाम की स्त्री से हुआ। महाभारत में इनके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। हाँ लेकिन इतना जरूर लिखा है कि वे भगवान कृष्ण के सच्चे भक्त थे। जब भगवान कृष्ण पांडवों की ओर से संधि का प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास गए थे तब उस समय वे विदुर के घर पर ही रुके थे।
विदुर जी ने कई बार पांडवों का साथ दिया और उन्हें कौरवों के षडयंत्र से बचाया। या यूँ कहें कि उन्होंने सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ा। इतना ही नहीं जब द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था तो उस समय सबके मौन रहने पर भी उन्होंने कौरवों का विरोध किया था। उनको सबके सामने बताया कि उन्होंने गलत किया है।
अंत में जब महाभारत का युद्ध होना तय हो गया तब युद्ध के विरोध में विदुर जी ने अपने पद का त्याग कर युद्ध से बाहर ही रहे। वृद्ध होने पर वे धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के वन में रहने चले गए। वहीं उन्होंने अपना अंतिम समय बिताया।
तो ये थी जानकारी कि विदुर कौन थे ? आशा करते हैं आपको विदुर का जीवन परिचय अच्छा लगा होगा। इस बारे में अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें।
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धन्यवाद।