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भावनाओं का महत्त्व :- भावना – एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ इन्सान के जज्बातों और हालातों के अनुसार बदलता रहता है। भावनाएं ही हैं जो इन्सान को एक दुसरे से जोड़ कर रखती हैं। भावनाएं ही हैं जिससे भगवान की प्राप्ति की जा सकती है। इन्सान के द्वारा किये गए कर्म तब तक बेकार हैं जब तक उसके साथ सही भावना न जुडी हो।
भावनाओं में बहुत शक्ति होती है। इंसान की भावना दृढ़ और सच्ची हो तो प्रभु भी उसकी भावना को सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं। ये कोई कहने कि बात नहीं है। इतिहास गवाह है जब भी किसी भक्त ने इश्वर में सच्ची आस्था रखी है । भगवान् ने कभी भी उनके विश्वास को टूटने नहीं दिया। सच्ची भावनाओं का महत्त्व दर्शाती ऐसी ही दो कहानियां हम आपके सामने लाये हैं –
भावनाओं का महत्त्व
महात्मा बुद्ध की कहानी :-
एक बार की बात है महात्मा बुद्ध मगध में कुछ दिन के लिए ठहरे हुए थे। उनके प्रवचन सुनने दूर-दूर से लोग आते थे। कुछ दिन ठहरने के बाद महात्मा बुद्ध ने दूसरी जगह जाने कि सूचना सबको दी। बस फिर क्या था, सब लोग वहां एकत्रित हो गए। महात्मा बुद्ध के जाने कि सूचना प्राप्त करते ही सब महात्मा बुद्ध को उपहार देने लगे और जिसकी जैसी इच्छा थी वो देने लगे।
महात्मा बुद्ध सब कुछ पास में ही रखवा रहे थे। तभी एक बूढी औरत वहां जूठा आम लेकर आई और बोली,
” मेरे पास जो भी पूँजी है यही है, इसे स्वीकार कर मुझे कृतार्थ करें।”
महात्मा बुद्ध ने वो आम ले लिया और प्यार से खाने लगे। ये देख सब हैरान रह गए और उनमे से एक शिष्य बोला,
” प्रभु, आपको इतने लोगों ने भेंट दी। आपने सब अलग रखवा दिया और इस बूढी औरत के जूठे आम को इतने प्यार से खा रहें हैं।”
तब महात्मा बुद्ध बोले,
“सब लोग भेंट इस मंशा से दे रहे हैं की उनका कुछ भला होगा। और वो सिर्फ उतना दे रहे हैं जिससे उनको कोई नुकसान न हो। लेकिन उस औरत ने तो अपना सब कुछ दे दिया जो उसके पास था। उसने अपने बारे में कुछ भी नहीं सोचा। उसके इस कृत्य के पीछे उसकी सच्ची भावना थी। इसलिए मैंने वो जूठा आम खाया। यही भावनाओं का महत्त्व है।”
इसी तरह हम भी जब पूर्ण भावना से प्रभु के हो जाएँगे तो प्रभु स्वयं हमारा जीवन पार लगा देंगे।
श्री राम की कहानी :-
ऐसी ही एक कथा भगवान राम और शबरी की। वन में शबरी कई सालों से अपने प्रभु राम का इंतजार कर रही थी। अंततः श्रीराम जी ने उन्हें वनवास के समय दर्शन दिए प्रभु के स्वागत के लिए शबरी बेर लेकर आई। उनमे से कुछ बेर खट्टे थे। प्रभु खट्टे बेर न खाएं इसलिए शबरी हर बेर को चख कर देती। श्रीराम ने वह बेर बड़े ही चाव से खाए। क्योंकि उन बेरों से शबरी की भक्ति भावना जुडी थी।
ऐसा माना जाता है कि उस समय लक्ष्मण ने वो बेर न खा कर फेंक दिए थे। जो बाद में संजीवनी बूटी बन गए और उन्हें उस बेर का सेवन संजीवनी बूटी के रूप में करना पड़ा जब वे मेघनाद के बाण से मूर्छित हो गए थे। इस तरह शबरी ने भी भक्ति भावना की एक अद्भुत मिसाल पेश की।
इन दोनों उदाहरणों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भगवान को खुश करने के लिए दान दक्षिणा करने का दिखावा करने की जरुरत नहीं है। भगवान को खुश रखने के लिए सब से ज्यादा जरुरी है भक्ति भावना।
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आशा करते हैं आप भी हमारी इस बात से सहमत होंगे। भावनाओं का महत्व उस से जुड़ी इच्छा पर ही निर्भर है। जितनी इच्छाएं कम होंगी उतना भावनाओं का महत्त्व ज्यादा होगा। अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर शेयर करें।
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धन्यवाद।
1 comment
Aaj ke samay mai hamare sabhi padhe-likhe navyuvakon ko dharmik sanskiti se bhi sanskarwan hona bhi ati aavashyak hai.