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मकर संक्रांति पर कविता – मकर संक्रांति पर कविता में पढ़िए लोहड़ी के बाद आने वाली मकर संक्रांति के मनभावन दृश्य का वर्णन। जनवरी में आने वाले इस त्यौहार के बाद सर्दी अपने घर वापस चली जाती है और सूरज का प्रकोप बढ़ने लगता है। बसंत के आगमन कि तैयारियां हो जाती हैं। तो आइये पढ़ते हैं “ मकर संक्रांति पर कविता “ :-
मकर संक्रांति पर कविता
ठंडी-ठंडी हवाओं संग में,
सब मिटे अंतर्मन के द्वेष।
मकर राशि मे हो जाता है,
जब सूर्य देवता का प्रवेश।
गुड़ डलियों की मिठास में,
फिर घुलता सम्पूर्ण देश है।
प्रेम भाव बांट आपस में,
खिलता हमारा परिवेश है।
हल्की-हल्की धूप साथ में,
मीठी-मीठी खुशियां लाये।
भीनी-भीनी सुगंध तिल की,
घर आंगन सबका महकाये।
रेवड़ी,गुड़ संग मूंगफली के,
लोहड़ी मनाता पंजाब है।
दक्षिण भारत पोंगल मना,
सजाता अपने हर ख्वाब है।
नीले-नीले इस अम्बर में,
पतंगों की बहारें छाती है।
तितली के रंगों सी मोहक,
खुशियां अपार ही लाती हैं।
दुर्विचारों का नाश करके,
अंतर्मन की भ्रांति मिटे।
पुष्प वाटिका सी महकती,
यह मकर संक्रांति दिखे।
जीवन में हम सबके आएं,
तरक्की के आयाम हजार।
हृदय-तल से हो मुबारक,
मकर संक्रांति का त्योहार।
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मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
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