जीवन की सीख
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कहते हैं यदि सीखने कि इच्छा हो तो इंसान हर जगह से शिक्षा ग्रहण कर लेता है। शिक्षा प्राप्ति का मुख्य स्त्रोत अपनी अंदरूनी जिज्ञासा ही है। जब तक इंसान किसी भी वस्तु या कार्य में अपनी जिज्ञासा नहीं दिखता तब तक उसको पूर्ण शिक्षा की प्राप्ति नहीं होती। जीवन की सीख लेके हम अपने जीवन को सुधारने और आगे बढ़ने का ज्ञान होता है।
कहते है इन्सान का जीवन ही उसका सबसे बड़ा गुरु है। हमें जीवन की सीख जो मिलती है, वही हमें असल मायनो सब मुस्किलो को पार करके सफल बनना सिखाता है। विद्यालय की शिक्षा ऐसी होती है कि इन्सान एक बार ग्रहण कर ले तो उसे यह पता चल जाता है कि आगे आने वाली मुश्किलों और कठिनाइयों का सामना कैसे करना है।
विद्यालय में पास होकर हम हमेशा ऊपर की कक्षा में जाते हैं। लेकिन जिंदगी एक ऐसा विद्यालय है जहाँ हम अपनी एक गलती के कारण फिर वहीँ पहुँच जाते हैं जहाँ से हमने शुरुआत की होती है। उदाहरण लें एक व्यापारी की।
एक व्यापारी जिसने जब अपने व्यापर का श्री गणेश किया था तब उसके पास कुछ भी नहीं था और अपनी मेहनत और बुद्धिमता के कारण जल्दी ही उसने बहुत पैसे कमाए और अपने शहर का सबसे प्रसिद्द व्यापारी बन गया। अब उसके अन्दर घमंड ने प्रवेश कर लिया था। जहाँ पहले वह सभी से बड़ी विनम्रता के साथ बात करता था। अब उसकी हर बात में अकाद होती थी।
यह सब देखते हुए जो ज़मीर वाले व्यापारी थे उन्होंने उस व्यापारी के साथ व्यापार करना बंद कर दिया। जो बचे हुए व्यापारी अब भी व्यापार कर रहे थे। वह अव्वल दर्जे के चापलूस थे। उनके काम करने का एक ही लक्ष्य था। वह उस व्यापारी कि चापलूसी कर उससे उधार माल लेते थे।
समय इसी तरह चलता रहा और वह व्यापारी दिवालिया होने कि कगार पर आ गया। जब उसे इस बात का एहसास हुआ तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वह इतना गरीब हो चुका था जितना कि वह व्यापार शुरू करते समय भी नहीं था।
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उसके सामने जिंदगी का वह मंच था जहाँ उसे सब कुछ शुन्य से आरंभ करना था। और कोई होता तो शायद हिम्मत हार जाता परन्तु वह एक बार फिर से तैयार था अपना वह साम्राज्य बनाने को जो वह खो चुका था। सबसे पहले उसने अपने कर्जदारों से किसी तरह पैसे निकलवाए। फिर छोटे स्तर पर अपना व्यापार जल्द ही शुरू किया।
लेकिन इस बार उसे पहले से ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी इसका कारण था उसका पुराना व्यव्हार, जो बदल तो चुका था लेकिन इस बात को दूसरों तक पहुँचाने में उसे काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी। लेकिन अपनी पिछली गलतियों को न दोहराते हुए वह देर से ही सही एक बार फिर एक प्रसिद्द व्यापारी के साथ उन लोगों के लिए एक उदहारण बन गया था जो सब कुछ आने पर अपनी जडों को भूल जाते हैं जहाँ से उन्होंने शुरुआत की होती है।
जैसे-जैसे इन्सान रुपी वृक्ष ऊपर कि ओर बढ़ता है उसे अपनी मजबूती बनाये रखने के लिए अपनी जड़ों को भी नीचे तक पहुँचाना पड़ता है अर्थात उसे अपना विनम्र स्वाभाव बना कर रखना पड़ता है। नही तो वक़्त की तेज आंधियां उसे उखाड़ फेंकती हैं और दुबारा अपना अस्तित्व बनाने के लिए उसे पहले से अधिक संघर्ष करना पड़ता है।
ये सब लिखते हुए मुझे चाणक्य के ये वचन याद आ गए,
“अगर सीखना है तो दूसरों कि गलतियों से भी सीखो। स्वयं गलतियाँ करके सीखने के लिए आपकी उम्र कम पड़ जाएगी।”
दोस्तों उम्मीद है इस कहानी से आपने भी कुछ न कुछ जरुर सीखा होगा। आप अपने विचार हमें अवश्य बताएं। हमें आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।
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- सकारात्मक सोच पर कहानी “इन्सान की सोच ही उसके जीवन का आधार है”
- शिक्षाप्रद कहानी “ईमानदारी का फल”
धन्यवाद।