Home » कहानियाँ » इंसानियत पर कहानी :- इंसानियत के महत्त्व पर भावनात्मक कहानी

इंसानियत पर कहानी :- इंसानियत के महत्त्व पर भावनात्मक कहानी

by Sandeep Kumar Singh
5 minutes read

आज के जीवन में इंसानियत के कम होते और पैसों के बढ़ते महत्त्व पर एक भावनात्मक कहानी। इंसानियत पर कहानी :-

इंसानियत पर कहानी

 

इंसानियत पर कहानी

अंमित और रिया की शादी को 3 साल हो चुके थे। उनके घर में अमित, रिया और अमित कि माँ ही थी। अमित की माँ थोड़े पुराने खयालातों की थी। लेकिन उन्होंने कभी भी रिया के रहन-सहन पर कोई सवाल नहीं उठाया था। अमित और रिया की शादी रिश्तेदारों ने ही करवाई थी। इसलिए उन्हें एक दूसरे कि जिंदगी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था।

उनके सपने एक दूसरे से कुछ-कुछ मेल खाते थे और आज वो अपने सपनों का घर बनवा रहे थे। घर पर काम करने वाले सारे आदमी बहुत ख़ुशी-ख़ुशी घर बनाने का काम कर रहे थे। कारन बस एक था उनके साथ अमित का व्यव्हार। अमित उनके साथ बिलकुल घर के सदस्य जैसा व्यव्हार करता था। उनके साथ चाय पीने बैठ जाता, कभी उनके लिए पानी ले जाता और कभी गुजरे हुए ज़माने कि बातें करने लगता।

रिया को अमित की ये आदत बिलकुल भी पसंद न थी। उसे वो लोग अपने स्टैण्डर्ड से नीचे के लगते। उसने अमित को कई दफा रोकने की कोशिश भी की लेकिन वो तो ऐसा ही था। वो अपनी नहीं बदल सकता था।

काम चल रहा था कि अचानक एक दिन एक मजदूर के सिर पर एक ईंट गिर गयी। जैसे ही अमित को इस बारे में पता चला वो अपने कमरा से भागता हुआ आया। उस मजदूर के सिर से बहुत खून बह रहा था। अमित को उस समय कुछ न सूझा तो उसने अपनी कार निकाली और उस लहूलुहान हुए मजदूर को कार कि पिछली सीट पर लिटा दिया। इतनी देर में रिया भी आ गयी और अमित के साथ कार की अगली सीट पर बैठ गयी और कार घर से बहार निकल गयी।

“तुम पागल हो गए हो क्या? हमारी नई गाड़ी पर इसे लेकर जा रहे हो?”

रिया ने खून से गन्दी होती बैकसीट को देखते हुए अमित से कहा। रिया के चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही थी। लेकिन अमित ने उसकी चिंता कि परवाह न करते हुए गुस्से में बोला,

“हाँ पागल हो गया हूँ मैं। क्या, जानती क्या हो तुम मेरे बारे में? तुम्हें पता भी है…….”

इतना कह कर अमित एकदम चुप हो गया। रिया कुछ सुनना चाहती थी जो अमित ने कहा ही नहीं था। कुछ देर कार में सन्नाटा था। बस सड़कों पर चल रही गाड़ियों के हॉर्न और हवा की सरसराहट की आवाज ही आ रही थी।

“क्या नहीं जानती मैं तुम्हारे बारे में? आखिर क्या है ऐसा जो तुम्हारे दिल में है? मैं जानना चाहती हूँ।”

एक बार फिर से वही सन्नाटा था। तभी अमित ने धीमी सी आवाज में बोलना शुरू किया,

बचपन में मैं बहुत ही नटखट और शैतान हुआ करता था। इतना शैतान कि पढ़ाई में बिलकुल भी ध्यान नहीं देता था। मेरे पिता जी मुझसे बहुत तंग थे। उन्होंने मुझे बहुत बार समझाने कि कोशिश की कि मैं पढ़ाई कि तरफ ध्यान दूँ। लेकिन मैं उनकी एक न सुनता था। और एक दिन उन्होंने तंग आकार मेरा नाम स्कूल से कटवा दिया। उस दिन मैं बहुत खुश था। पर ये ख़ुशी ज्यादा दिन न टिकी।

अगली ही सुबह मेरे पिता जी ने मुझे अपने साथ काम पर चलने के लिए कहा। ये सुन कर तो मेरे पैरों तले जमीन निकल गयी। काम के नाम से मैं डर गया मगर अब कोई चारा नहीं था। मुझे उनके साथ काम पर जाना पड़ा।”

अमित पुरानी यादों में खो चुका था। उसकी बात आगे बढ़ती रही उसने बताना जारी रखा कि वो अपने पिता जी के साथ जिस काम पर गया था वो काम मजदूरी था। ये सुन रिया को कुछ-कुछ समझ आने लगा। लेकिन रिया ने फिर से समझाने कि कोशिश की,

“अमित वो बीते हुए समय की बात है। अब तुम्हारे हालात वो नहीं हैं जो उस समय थे फिर क्यों करते हो तुम ऐसा? हमारा एक स्टैण्डर्ड है…..”

“स्टैण्डर्ड?” रिया को टोकते हुए अमित ने सवाल पूछने के लहजे में कहा और आगे कहना जारी रखा,

“इसी स्टैण्डर्ड ने ही आज इंसानियत को दिखावे के परदे में इस कदर लपेट दिया है कि इन्सान को इन्सान का दर्द नहीं बल्कि अपना स्टैण्डर्ड दिखाई देता है। उसे अपना अंधेरों में बीता हुआ कल नहीं दिखता बल्कि झूठा चमचमाता हुआ आज दिखाई देता है।”

रिया को आज अमित का एक बदला हुआ रूप देखने को मिला। उसने ऐसी उम्मीद न की थी। घर में ऐसे मामलों पर कभी छोटी-मोती बहस हुआ करती थी लेकिन आज तो बात साफ़ होने पर थी। आखिर कौन किसके हिसाब से चलेगा आज इसका फैसला आने वाला था।

“इसी दिखावे के कारन मैंने अपने पिता को खो दिया। उस दिन जिस दिन मैं पहली बार काम पर गया था। ठीक इसी तरह उनके सिर पर भी चोट लगी थी और तुम जैसा ही कोई उस घर को बनवा रहा था। अगर उस समय उन लोगों ने एम्बुलेंस बुलाने की जगह अपनी कार में मेरे पिता जी को हॉस्पिटल ले जाने की कोशिश की होती तो शायद आज वो हमारे साथ होते।”

रिया सब समझ चुकी थी। उसे अपनी गलती का अहसास हो चुका था। इतनी देर में हॉस्पिटल भी आ गया। अमित ने कार हॉस्पिटल के गेट के आगे रोकी और उसी वक़्त रिया कार से उतर कर मदद मांगने के लिए अन्दर चली गयी।

कहानी यहीं ख़तम नहीं होती। अमित के पिता के मरने के बाद उसके काम के पहले दिन ने ही उसका भविष्य तय कर दिया था। मगर उसे अपना ये भविष्य मंजूर न था। उसने घर की जिम्मेवारी सँभालने के लिए उसने काम तो किया लेकिन अपनी पढ़ाई भी जारी राखी और खुद को एक अछे मुकाम पर ले गया।

इसीलिए वो इंसानियत का मतलब जानता था और इंसानों की कदर करता था न कि पैसों की।

इंसानियत पर कहानी आपको कैसी लगी? कमेंट कर के हमें जरूर बताएं। यदि आपके पास भी है ऐसी कोई कहानी तो हमें लिख भेजिए blogapratim@gmail.com पर।

पढ़िए भावनाओं से जुड़ी ऐसी ही कुछ और कहानियां ( Emotional Stories ) :-

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

3 comments

Avatar
गौतम कोठारी अक्टूबर 7, 2018 - 3:13 अपराह्न

अद्भुत
ज्ञानवर्धक

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अक्टूबर 8, 2018 - 5:57 अपराह्न

धन्यवाद गौतम जी।

Reply
Avatar
Aryan अक्टूबर 7, 2018 - 10:23 पूर्वाह्न

Best Hindi Story kadar insaan ki hi honi chahiye paisa to jagah badalte rahta hai

Reply

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.