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पुस्तक समीक्षा तुकतुक की रेल | Book Review Tuktuk Ki Rail

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पुस्तक समीक्षा तुकतुक की रेल

पुस्तक का नाम : तुकतुक की रेल
लेखक : हरजीत सिंह ‘तुकतुक’
विधा : व्यंग्य कविता
प्रकाशक : प्रलेक प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड
702, जे /50, एवेन्यू – जे, ग्लोबल सिटी,
विरार (वेस्ट), ठाणे , महाराष्ट्र – 401303
संस्करण : 2021
पृष्ठ : 140
मूल्य : ₹ 200 /-(पेपरबैक)

तुकतुक की रेल : युगीन विसंगतियों पर तीक्ष्ण प्रहार

श्री हरजीत सिंह ‘तुकतुक’ एक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि हैं। ‘तुकतुक’ सन् 1989 से कविताएँ लिख रहे हैं और अभी तक अनेक मंचों से कविता-पाठ कर  चुके हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन के अलावा उन्होंने अनेक भारतीय तथा अंतर्राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर कविताओं का वाचन किया है। ‘तुकतुक’ को कई राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। सन् 2000 में जीवन ज्योति संस्थान ने ‘तुकतुक’ को ‘हास्य सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 2016 में विश्व हिन्दी न्यास ने अमेरिका बुलाकर ‘तुकतुक’ का सम्मान किया। सन् 2020 में ‘तुकतुक’ को ‘विश्व हिन्दी ज्योति भूषण’ के सम्मान से अलंकृत किया गया। 

              ‘तुकतुक की रेल’ श्री हरजीत सिंह’ तुकतुक’ का प्रथम काव्य संग्रह है जिसकी व्यंग्य रचनाएँ मनोरंजन प्रदान करने के साथ ही विभिन्न सामाजिक विसंगतियों पर तीखा कटाक्ष करती हैं। कवि अपनी बात कहते – कहते ऐसा कुछ कह जाता है जो मन को अन्दर तक कचोट जाता है। वस्तुतः सच्चा व्यंग्य वही होता है जो लोगों का मनोरंजन ही नहीं करता अपितु अपने समय की कमियों की ओर भी ध्यान आकर्षित करता है। व्यंग्य, साहित्यकारों का वह अस्त्र है ; जिसके माध्यम से वह समाज में व्याप्त कटुताओं को काटना चाहता है। व्यंग्यकार सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक आदि विसंगतियों, विद्रूपताओं, विषमताओं, विकृतियों को लक्ष्य बनाकर अपना लेखन करता है। ऐसा वह अपनी सूक्ष्म पर्यवेक्षण क्षमता और शब्द सामर्थ्य के बल पर करता है। व्यंग्यकार अपनी रचनाओं से पाठक को समाज में व्याप्त कुरूपता के बारे में सोचने को विवश करता है। व्यंग्यकार वर्तमान समय की विडम्बनाओं का प्रतिकार करना चाहता है जिसके कारण उसकी रचनाओं में आक्रोश और असंतोष का स्वर होता है। ‘तुकतुक’ की कविताएँ भी व्यंग्य विधा की इस कसौटी पर खरी उतरती हैं। 

             ‘तुकतुक की रेल’ कविता संग्रह के सात अध्यायों में कुल तैंतीस कविताएँ संलग्न हैं जिन सभी में हास्य के साथ ही मर्मस्थल पर चोट पहुँचाने की क्षमता है। 

                        समीक्ष्य संग्रह का पहला अध्याय ‘ पंचतंत्र ‘ नाम से है। इसकी ‘कुत्ता बीमार हो गया’ कविता में बीमार कुत्ते को देखने वाले डॉक्टर का यह कथन मानव के जहरीलेपन पर कितना सटीक व्यंग्य करता है – 

“डाक्टर बोला,
इसका रोग मेरी समझ में नहीं आता है
लगता है इसे किसी आदमी ने काटा है।”  (पृष्ठ 23)

                        अध्याय दो ‘ स्वदेस ‘ है। इसमें देश की समस्याओं पर कवि ने अपना मौलिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। ‘तिरंगा’ कविता में सात वर्षीय बालक को बिना शर्ट के और फटी पैंट में ‘तिरंगा’ बेचते देखकर कवि का मन कराह उठता है। कवि का यह कथन कितना मर्मस्पर्शी है – 

“हम अपने भविष्य की ट्रेनिंग
ठीक से नहीं कर पा रहे हैं,
हम बचपन से ही उसे
तिरंगा बेचना सिखा रहे हैं।”     (पृष्ठ 43)

                       अध्याय तीन ‘ शादी के साइड इफेक्ट ‘ है। इसमें कवि ने वैवाहिक जीवन में आने वाली कठिनाइयों के माध्यम से समाज की कमियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है। उदाहरण के लिए ‘मेरा भगतसिंह’ कविता में बच्चा कोख में ही आत्महत्या कर लेता है क्योंकि वह हमारे समाज की दूषित हवा में साँस लेने से मना कर देता है। कवि का हमारी बिगड़ती व्यवस्था पर प्रहार करते हुए कहना है – 

“कहीं ऐसा न हो हम हवाओं में
इस कदर आक्रोश भर दें,
कि बच्चे हिन्दुस्तान में
पैदा होने से मना कर दें।”    (पृष्ठ 77)

                         संग्रह का चौथा अध्याय ‘ओह माई गाॅड’ है। इसमें कवि की कल्पना शक्ति देखते ही बनती है। ‘पिछले जन्म की कहानी’ कविता में कवि कल्पना करता है कि वह पिछले जन्म में मिस्टर तिवारी था और सलमा नामकी मुस्लिम लड़की से प्यार करता था। लोगों को हिन्दू-मुस्लिम का यह प्यार पसन्द नहीं आया और उन्होंने युवक की हत्या कर दी। कवि का मानना है कि भगवान ने इस जन्म में उसे और सलमा दोनों को को सरदार बना दिया है जिससे  उनकी शादी सम्भव हो सकी। कवि का कहना है कि यह धार्मिक उन्माद मिटाना भगवान के भी वश में नहीं है – 

“पर भगवान ऐसा
कितने केसेज में कर पाएगा,
आखिर कितने हिन्दुओं और मुसलमानों को
सरदार बनाएगा।”     (पृष्ठ 92)

                    पुस्तक का पाँचवा अध्याय ‘ उत्सव ‘ है। इसमें विभिन्न त्योहारों और पर्वों के माध्यम से कवि ने अपनी व्यंग्यात्मक  बात कही है। रोज – रोज की भागदौड़ और कार्यालय की एक जैसी व्यस्तता में कवि को समझ में ही नहीं आता है कि नए साल में क्या नया होता है। ‘नया साल’ कविता में कवि इसी सत्य को प्रकट करता हुआ कहता है – 

“इस साल हमने बहुत सोचा विचारा
यहाँ तक कि अपना सर तक दीवार पे दे मारा,
बहुतों से पूछा, बहुतों ने बताया
फिर भी यह रहस्य समझ में नहीं आया।
कि कल और आज में अंतर क्या है
आखिर इस नए साल में क्या नया है। ”      (पृष्ठ 101)

                 छठा अध्याय ‘ दासबाबू की दास्तान ‘ है। इसमें राम इकबाल दास व्यक्ति के माध्यम से कुछ संवेदनात्मक और भावप्रधान व्यंग्य किए गए हैं। ‘दासबाबू और चांद’ कविता में दासबाबू, चांद में प्रियतमा का मुखड़ा देखते थे किन्तु विवाह के बाद में कोविड महामारी के कारण बेरोजगार हो जाते हैं और उनका एक साल का बच्चा जब रोटी माँगता है तो वे चांद में अब रोटी ढूँढते हैं। कवि की ये मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं – 

“इसलिए आँखों में आँसू लिए घूमते हैं
चांद में बच्चे के लिए रोटी ढूँढते हैं,
समय ने बदल दिए हैं सारे तौर
कल की आस्थाएँ  आज हैं कुछ और।”                 (पृष्ठ 125)

                     पुस्तक का सातवाँ और अंतिम अध्याय ‘ गोलमाल है ‘ नाम से है। इसमें कवि ने लीक से हटकर दुनिया के गोलमाल अर्थात् गड़बड़ियों को उजागर किया है। इस अध्याय में ‘खून नहीं था’ पंक्ति से प्रारम्भ होने वाले अट्ठाइस हाईकू हैं, जिनमें आम आदमी की विवशता के साथ ही सामाजिक और राजनीतिक संवेदनहीनता को दर्शाया गया है। उदाहरण के तौर पर एक हाईकू प्रस्तुत है – 

“खून नहीं था
बेच दिया था सारा
भूख लगी थी।”     (पृष्ठ 135) 

इस अध्याय की अंतिम कविता ‘ नर्सरी राइम्स ‘ है। इस रचना में कवि ने बढ़ती अव्यवस्था के लिए जनता को भी जिम्मेदार ठहराया है। कवि के ये कटाक्ष दर्शनीय हैं – 

“ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार
रामदीन के बच्चे चार।
आने वाला है पाँचवा भाई
और आप कहते हैं
बढ़ रही है महँगाई।” 


“हम्प्टी डम्प्टी सैट ऑन ए वाॅल
देख रहा था गोरे गोरे गाल।
वोट डालने गया ना भाई फिर कहता है कि
देश की यह हालत किसने बनाई। ”    (पृष्ठ 138)

                            उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ‘तुकतुक’ की कविताएँ हमें जीवन और समाज से साक्षात्कार कराती हैं। ये वर्तमान जीवन की कुरूपता और मिथ्याचारों से पाठक को परिचित कराकर उसकी चेतना को जाग्रत करने का प्रयास करती हैं। कविताओं की भाषा आमजन की भाषा है। कविताएँ छन्द मुक्त होकर भी लयात्मकता से युक्त हैं। अंग्रेजी भाषा के लोक प्रचलित शब्दों और वाक्यों का प्रयोग व्यंग्य की प्रहारक क्षमता को और भी प्रभावी बनाता है। कवि की बात कहने की सहज शैली पाठक के मन में गहरी छाप छोड़ती है। आशा है कि कवि श्री हरजीत सिंह ‘तुकतुक’ की यह ‘रेल’ लेखक को अपने लक्षित लक्ष्य पर पहुँचाने के साथ ही पाठकों को भी अपने गन्तव्य तक पहुँचाने में सफल होगी। व्यंग्य विधा के क्षेत्र में कृति ‘तुकतुक की रेल’ का निश्चित रूप से स्वागत होगा। 

तो आप भी आनंद लीजिए हरजीत सिंह तुकतुक जी की कविताओं का उनकी किताब से। जोकि आप नीचे दिए गए लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं।

प्रस्तुति :
सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’ 
3 फ 22 विज्ञान नगर, 
कोटा – 324005 (राज.)

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